Monday, December 27, 2010

हड़ताल-करप्शनः हर जगह बज रहा हमारा डंका!!!

अपनी मांग मंगवाने का अब सबसे आसान तरीका हो गया है हड़ताल। इसके भी अब तो कई प्रकार हो गए हैं। कोई भूख हड़ताल करता है, कोई टंकी पर चढ़ जाता है, कोई आत्महत्या की धमकी देता है, कोई रेल की पटरियों पर बैठ जाते हैं। अब तो न जाने हड़ताल के कितने ही रूप हो गए हैं। इतने रूप-रंग कि भगवान भी पीछे हो जाएं।

अब तो भगवान को छोड़ मन होता है हड़तालियों की पूजा की जाए। पहले के हड़ताल और अब के हड़ताल पर एक नजर दौड़ाए तो हाय तौबा करने का मन करता है। देश में ढंग का कानून न होने की वजह से हड़तालियों के हौसले बुलंद हैं। तभी तो वे सारे नियम कायदे, सारी मानवता को ताक पर रखकर खुले आम हुड़दंग मचाते हैं। अपनी मांग को मनवाने के लिए भाईलोगों को यह भी विचार नहीं आता कि आम लोगों को इससे कितनी परेशानी उठानी पड़ेगी। अपना उल्लू सीधा हो जाए, दुनिया जाए तेल लेने।

अरे..हां, अगर करप्शन की बात की जाए तो वाह-वाह करने का मन करता है। क्योंकि यह कारनामा किसी और देश में इतना नहीं हो सकता जितना हमारे यहां। किसी भी मामले में अगर भ्रष्टाचार की बात आती है तो उसमें हम सबसे अव्वल हैं। अगर कोई प्रतियोगिता करवा दी जाए तो निश्चित ही हम इसमें पहला पुरस्कार हासिल कर लेंगे। करप्शन करने की जो क्षमता हमारे अंदर है वह शायद ही किसी के अंदर हो।

नेता से लेकर अधिकारी तक सब अच्छे से जानते हैं कि कैसे घपला करके बड़ी आसानी से बच निकलना है। इसका सबूत सबके सामने है। पिछले दिनों में हुए कारनामों ने यह साबित कर दिया है कि कुछ भी हो जाए हम तो हाथ साफ करके निकल ही जाएंगे। वैसे हाथ की सफाई करना कोई हमसे सीखे। अगर किसी देश को हाथ की सफाई करने के लिए कोच चाहिए तो वह हमारे यहां आ सकता है।
देश की आजादी के बाद किसी क्षेत्र में तरक्की हुई हो या नहीं लेकिन इस क्षेत्र (करप्शन-स्ट्राइक) में तो हमने इतनी तरक्की कर ली है कि कोई हम पर उंगली नहीं उठा सकता। अब देश का हर बच्चा भी ऐसे खिलाड़ियों के बारे में इतना तो जान ही गया है कि कौन-कौन से ऐसे लोग हैं जो हमारे लिए एक मिशाल हैं।

यह लिखते हुए मुझे बड़ा ही दुख हो रहा है कि अब भ्रष्टाचार के खेल में ऐसे लोग भी शामिल हो रहे हैं जिनके कंधों पर कल तक हम उम्मीद की लाठी रखे थे।