Monday, December 27, 2010

हड़ताल-करप्शनः हर जगह बज रहा हमारा डंका!!!

अपनी मांग मंगवाने का अब सबसे आसान तरीका हो गया है हड़ताल। इसके भी अब तो कई प्रकार हो गए हैं। कोई भूख हड़ताल करता है, कोई टंकी पर चढ़ जाता है, कोई आत्महत्या की धमकी देता है, कोई रेल की पटरियों पर बैठ जाते हैं। अब तो न जाने हड़ताल के कितने ही रूप हो गए हैं। इतने रूप-रंग कि भगवान भी पीछे हो जाएं।

अब तो भगवान को छोड़ मन होता है हड़तालियों की पूजा की जाए। पहले के हड़ताल और अब के हड़ताल पर एक नजर दौड़ाए तो हाय तौबा करने का मन करता है। देश में ढंग का कानून न होने की वजह से हड़तालियों के हौसले बुलंद हैं। तभी तो वे सारे नियम कायदे, सारी मानवता को ताक पर रखकर खुले आम हुड़दंग मचाते हैं। अपनी मांग को मनवाने के लिए भाईलोगों को यह भी विचार नहीं आता कि आम लोगों को इससे कितनी परेशानी उठानी पड़ेगी। अपना उल्लू सीधा हो जाए, दुनिया जाए तेल लेने।

अरे..हां, अगर करप्शन की बात की जाए तो वाह-वाह करने का मन करता है। क्योंकि यह कारनामा किसी और देश में इतना नहीं हो सकता जितना हमारे यहां। किसी भी मामले में अगर भ्रष्टाचार की बात आती है तो उसमें हम सबसे अव्वल हैं। अगर कोई प्रतियोगिता करवा दी जाए तो निश्चित ही हम इसमें पहला पुरस्कार हासिल कर लेंगे। करप्शन करने की जो क्षमता हमारे अंदर है वह शायद ही किसी के अंदर हो।

नेता से लेकर अधिकारी तक सब अच्छे से जानते हैं कि कैसे घपला करके बड़ी आसानी से बच निकलना है। इसका सबूत सबके सामने है। पिछले दिनों में हुए कारनामों ने यह साबित कर दिया है कि कुछ भी हो जाए हम तो हाथ साफ करके निकल ही जाएंगे। वैसे हाथ की सफाई करना कोई हमसे सीखे। अगर किसी देश को हाथ की सफाई करने के लिए कोच चाहिए तो वह हमारे यहां आ सकता है।
देश की आजादी के बाद किसी क्षेत्र में तरक्की हुई हो या नहीं लेकिन इस क्षेत्र (करप्शन-स्ट्राइक) में तो हमने इतनी तरक्की कर ली है कि कोई हम पर उंगली नहीं उठा सकता। अब देश का हर बच्चा भी ऐसे खिलाड़ियों के बारे में इतना तो जान ही गया है कि कौन-कौन से ऐसे लोग हैं जो हमारे लिए एक मिशाल हैं।

यह लिखते हुए मुझे बड़ा ही दुख हो रहा है कि अब भ्रष्टाचार के खेल में ऐसे लोग भी शामिल हो रहे हैं जिनके कंधों पर कल तक हम उम्मीद की लाठी रखे थे।

Monday, November 15, 2010

गेंदबाजी भूल बल्लेबाजी में निखर गए भज्जी!

न्यूजीलैंड के खिलाफ जिस तरह से हरभजन सिंह ने बल्लेबाजी की उसे देखकर तो यही लगता है जैसे अब भज्जी अपना स्टाइल बदलना चाहते हों। अहमदाबाद में पहला शतक और अब हैदराबाद में 111 रन की नाबाद पारी खेलकर हरभजन शायद यही जताना चाहते हैं कि उनकी गेंदबाजी में अब भले ही वह धार न रही हो लेकिन बल्लेबाजी में वे विपक्षी टीम को धूल चटा सकते हैं।

आज हैदराबाद टेस्ट के चौथे दिन हरभजन सिंह ने गेंदबाजी तो की लेकिन उनकी गेंद को किवी बल्लेबाजों ने जमकर प्रहार किया। टीम इंडिया के पहली पारी में लीड लेने के बाद दूसरी पारी की शुरुआत करने जब किवी बल्लेबाजी करने उतरे तो यही लग रहा था कि भज्जी शानदार बल्लेबाजी के साथ अब गेंदबाजी में भी जलवा दिखाएंगे। लेकिन लोगों का यह मानना बिल्कुल गलत साबित हुआ।
दूसरी पारी के चौथे दिन के खेल खत्म होने तक न्यूजीलैंड ने चार विकेट पर 237 रन बनाए। जिसमें से प्रज्ञान ओझा को दो विकेट, श्रीसंथ को एक विकेट और सुरैश रैना को एक विकेट मिला। लेकिन भज्जी के खाते में एक भी विकेट नहीं जा पाया।

भाई किसी को लगता हो या न लगता हो लेकिन मेरा जहां तक मानना है भज्जी का मूड चेंज होता दिखाई दे रहा है। तभी तो जिस आक्रामक रवैये के साथ हर गेंद को बाउंड्री के बाहर पहुंचा रहे थे, उसे देखकर तो यही लग रहा था जैसे अब भज्जी ने दूसरी राह पकड़ ली हो। वो टीम इंडिया को यह शायद दिखाना चाहते हैं कि अब उन्हें वन डाउन या फिर टो डाउन पर उतारा जाए।

भज्जी ने जिस अंदाज में खेला वह वाकई में एक चमत्कार था। आंखों को विश्वास नहीं हो रहा था कि क्रीज पर भज्जी बल्लेबाजी कर रहे हैं। ऐसा लग रहा था जैसे सहवाग या सचिन चौका छक्का जमा रहे हों। खैर कोई बात नहीं भज्जी जी अगर आप अपना ट्रेंड चेंज करके ऐसे ही चौके-छक्के की बारिश करते रहेंगे तो आप वन डाउन पर जरूर आ जाएंगे।

Tuesday, November 9, 2010

कथनी-करनी में बहुत अंतर होता है ओबामा जी!

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का भारत दौरा काफी सफल रहा। पूरा देश ओबामा के बेबाक अंदाज का गुणगान कर रहा है। हम जो चाह रहे थे वह ओबामा ने आखिरकार बोल ही दिया। हमें ढेर सारे आश्वासन भी मिले।

लेकिन अब देखना यह होगा कि ओबामा ने जो कहा है वह कितना सही होता है। क्या भारत में ओबामा कोई चाल के तहत भारतीयों को आश्वासन दे रहे थे या फिर वास्तव में वे भारत के साथ दोस्ती गांठना चाहते हैं। यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

वैसे ओबामा और उनकी पत्नी का अंदाज देखकर तो यही लगा कि उन्हें यहां पर काफी मजा आया और वे भारत से जो चाहते थे उन्हें वो सबकुछ मिला भी। भारत से भारी-भरकम बिजनेस तो ओबामा ले गए साथ ही वे हमें कई सारे लालच भी दे गए हैं।

ओबामा के भारत दौरे के पहले दिन भारत यही चाहता था कि उसके पड़ोसी देश पाकिस्तान के लिए ओबामा कुछ बोलें लेकिन उस समय उन्होंने बड़ी चतुराई दिखाई और साफ-सुथरे निकल गए। ऐसे में वे जब दिल्ली पहुंचे तो उस समय हमारे नेताओं के हाल खराब थे कि ओबामा क्या वाकई में दो नाव की सवारी करना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने संसद को संबोधित करते हुए वो सब कुछ बोला जो हम चाहते थे।

ओबामा ने पाकिस्तान को मुंबई हमले के गुनहगारों को न सिर्फ सजा देने को कहा, बल्कि उसकी सरजमी पर फैले आतंकवादी कैंपों को भी जड़ से खत्म करने का भी संदेश दिया। हालांकि ओबामा ने यह भी कहा कि पाकिस्तान उनके लिए अहम है और भारत के लिए भी। खैर हम यही चाहते थे कि ओबामा पाकिस्तान को दो-टूक कहे कि वह अपने यहां से आतंकवादियों की सप्लाई बंद करे।

अब देखना है ओबामा की कथनी पर पाकिस्तान का रुख क्या होता है। क्या ओबामा के कहने पर पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ थोड़ा सख्त रुख अपनाएगा। या फिर वही कर रहे हैं, हो रहा है, कर देंगे वाला पुराना राग अलापेगा। ओबामा जी आप अपनी बात पर थोड़ा अडिग रहेंगे तो अच्छा होगा नहीं तो हम थोड़ा चिल्लाएंगे, थोड़ा हताश होंगे बस। कुछ कर तो पाएंगे नहीं।

Sunday, November 7, 2010

प्रोटोकॉल तोड़ ओबामा की अगुवाई में पहुंचे पीएम!

दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रपति बराक ओबाम तीन दिन के दौरे पर भारत आए। ओबामा के साथ-साथ वहां का पूरा लाव-लश्कर भी आया। हालांकि ओबामा भारत दौरे को काफी अहम मान रहे हैं, भारत भी अमेरिका से कुछ पाने की आस लगाए हुए है। लेकिन सबसे मजेदार बात यह है कि अमेरिका ने भारत में भी आकर दादागिरी दिखा दी।

जिस तरह से अमेरिका पूरी दुनिया के सामने अपनी दादागिरी का परिचय देता है ठीक उसी तरह से ओबामा ने भारत में कुछ इसी अंदाज का परिचय दिया। हालांकि यह अंदाज काफी गोपनीय रहा। अमेरिका ने ओबामा के भारत दौरे के पहले ही यहां पर अपनी सेना, अपने वाहन और न जाने क्या-क्या उपकरण भेज दिये थे।

इससे तो एक बात साबित हो गई कि अमेरिका को न तो हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर विश्वास है और यहां के लोगों पर। क्योंकि अमेरिकी अधिकारी मुंबई में जिस तरह से महाराष्ट्र मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण से उनका जन्मतिथी प्रमाण पत्र और कुछ कागजात की डिमांड की वह हमें चुल्लू भर पानी में डूबने के लिए काफी है।

इससे तो यही लगता है कि जिस तरह से अमेरिकी सरजमी पर हमारे नेताओं के कपड़े उतरवाकर चेकिंग की जाती है, उसी तर्ज पर भारत में भी अमेरिकियों ने हमें ही नंगा किया। लेकिन इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हमें तो अमेरिका की रहनुमाई की सख्त जरूरत है। अमेरिकी हमें कितना भी अपमानित करें, हमें कोई एतराज नहीं।

अब हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को ही देख लीजिए। किसी देश में ऐसा नहीं होता कि वहां का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री किसी मेहमान की आगवानी करने जाए। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री ने तो सारे प्रोटोकॉल तोड़ते हुए इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर जा पहुंचे।

वैसे ओबामा का भारत दौरा अमेरिका में बढ़ रही बेरोजगारी को दूर करने को लेकर ज्यादा ही लग रहा है। क्योंकि उन्होंने भारतीय उद्योगपतियों से जिस अंदाज में कहा कि आप हमारे यहां पर आए और अपना बिजनेस डेवलपमेंट करें। अब बताओ भारत में क्या कम बेरोजगारी है, हमारे बिजनेसमैन यहां पर अपना कारोबार नहीं लगा सकते लेकिन यह तो यह लोग कर नहीं सकते।

Thursday, November 4, 2010

हर दिन हम क्यों नहीं मनाते दिवाली

दिपावली आते ही हम घरों की, ऑफिसों की साफ-साफ, रंगाई-पुताई करने में पूरी तरह से व्यस्त हो जाते हैं लेकिन हमने क्या कभी सोचा है कि साल के 12 महीने को दिवाली समझ कर साफ-सफाई पर ध्यान दें तो हमारे और पर्यावरण के लिए कितना लाभदायक होगा।

लेकिन ऐसा हम तो कर ही नहीं सकते क्योंकि यह हमारे आन-बान-शान के खिलाफ है। पर्यावरण गया तेल लेने हम तो दिवाली पर ही घरों को साफ रखेंगे। हां बाकी दिन हम कचरें में व्यतीत कर लेंगे क्योंकि हमें आसपास कचरा काफी अच्छा लगता है।

कचरा और साफ सफाई दोनों अलग-अलग चीज है। ये दोनों चीजें अपनी-अपनी जगह पर शोभा बढ़ाती हैं। हालांकि साफ-सफाई से साल में एक बार घर की शोभा बढ़ती है लेकिन कचरे से तो हमारा पुराना ताल्लुकात है। यह प्रतिदिन चार-चांद लगाती है। हम तो चाहते हैं कि दिवाली पर यह साफ-सफाई की प्रथा ही खत्म कर देनी चाहिए, फालतू की मेहनत होती है।

हम तो ऐसे ही ठीक हैं। जो शुकून और शांति कचरे में मिलती है वह शायद कहीं नहीं मिलती। साफ-सफाई सिर्फ टेंशन देते हैं, एक दिन एनर्जी उपर से खत्म हो जाती है। दीवाली आते ही पता नहीं क्यों लोग एकाएक जाग जाते हैं और दनादन साफ-सफाई, रंगाई-पुताई में जुट जाते हैं चाहे भले ही साल भर ढंग से नहाया न हो लेकिन उस दिन घर को सजाएंगे जरूर।

रोड पर चलते, ऑफिस में बैठे कचरे में पिच-पिच करने, रेलवे स्टेशन पर डस्टबिन में कचरा न फेंककर प्लेटफॉर्म पर ही गंदगी कर देना। यह सम हमारी परंपरा है और हम इसके खिलाफ नहीं जा सकते, कोई कुछ भी कहे। रही एक दिन की बात तो भले ही साफ-सफाई कर दी जाती है लेकिन भाई यह रोज-रोज नहीं हो सकता। इतनी एनर्जी हममें नहीं है।

ऐसे हम भारतीय। जहां खाते हैं वहीं फेंकते हैं। कचरे का डिब्बा बगल में रहता लेकिन हम उसका उपयोग नहीं करते। आखिर कब तक ऐसा चलेगा। हमें तो हर दिन दिवाली मनानी चाहिए। साफ-सफाई पर ध्यान अगर हम दें तो न पर्यावण ठीक रहेगा बल्कि हम भी निरोग और पूरी तरह से स्वस्थ्य रहेंगे।

Monday, November 1, 2010

कंगारुओं को अब तो भगवान ही बचाएं!

वनडे हो या फिर टेस्ट मैच सभी में सामने वाले को धूल चटाने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम का अब वो जलवा नहीं रहा। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले तो भारत से बुरी तरह से मात खाने के बाद अब श्रीलंका ने भी उन्हें धूल चटा दी।

क्रिकेट प्रेमियों को अब यकीन हो गया है कि कंगारू जो मैच को किसी भी समय पलटने का मद्दा रखते थे वे आज एकदम हतास और असहाय से हो गए हैं। अब लगता है कि उनमें वो जोश और जज्बा नहीं रहा जो पहले देखा जा रहा था। ऑस्ट्रेलियाई टीम ने सबसे ज्यादा विश्वकप जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से कंगारुओं का शिकार हो रहा है उसे देखते हुए तो यही लगता है कि समय बदल गया है।

टेस्ट और वनडे मैच में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को पानी पिलाते हुए यह दिखा दिया कि आने वाले समय के चैंपियन हम हैं। लेकिन श्रीलंका ने भी आज जिस तरह से कंगारुओं को औकात दिखाई है, उसकी भी दावेदारी भी मजबूत बन गई है। वह चाहे आने वाला वर्ल्डकप जीतने की दावेदारी हो या फिर वनडे और टेस्ट की रैकिंग का।

हर जगह अब ऑस्ट्रेलियाई शेरों का हौसला खत्म होते दिख रहा है। भारत, द. अफ्रीका, श्रीलंका जैसी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को कड़ी टक्कर देने की होड़ में लग गई हैं। अब तो कंगारुओं को भगवान ही बचाएं।

Sunday, August 22, 2010

शनि भगवान से अब भाग रहे हैं लोग!

अभी तक मंदिरों में ही देखा जाता रहा है कि यहां पर मौजूद पंड़ित बाहर से आए लोगों से जमकर पैसा वसूलते हैं लेकिन इन दिनों शहरों में भगवान को आगे करके एक और तरीके से पैसा वसूला जा रहा है। यह कोई और नहीं बल्की जल्दी ही क्रोधित हो जाने वाले भगवान शनि हैं। इनके तेज और इनके स्वभाव से आज भी लोग डरे रहते हैं।

शनि भगवान के मंदिर में लोग जाकर जहां पर पूजा करते हैं वहीं आज खुद भगवान घर-घर जाकर चढ़ावा मांग रहे हैं। ऐसा लग रहा है भगवान को भी खाने के लाले पड़ गए हैं। आज कल शहरों में खासकर छोटे-छोटे बच्चे एक छोटी सी बाल्टी लेकर, उसमें भगवान शनिदेव की मूर्ति और उसमें तेल और अगरबस्ती लेकर रोड़ों पर भारी संख्या में देखे जा सकते हैं। यह आमतौर पर शनिवार को ही दिखाई देते हैं लेकिन इतने दिखते हैं कि देखने वाला बोर हो जाता है।

छोटे-छोटे बच्चे रस्ते पर चलते हर आदमी, हर दुकानदार के सामने जाकर पहले तो भगवान को आगे करने के साथ ही कुछ चढ़ावे के लिए भी बार-बार आग्रह करता है। इतना ही नहीं एक लड़के के जाने के तुंरत बाद ही पीछे से एक और लड़का उसी अंदाज में भगवान के नाम पर पैसा मांगता है। हद तो तब हो जाती है जब ये बच्चे तब तक नहीं जाते जब तक उस बाल्टी में कुछ पैसे न डाला जाए।

अब तो इतने बच्चे दिखने लगे हैं कि भगवान की तरफ लोग देखना तक बंद कर दिए हैं, जिस भगवान के दर्शन करने के लिए लोग महाराष्ट्र के शनि शिग्नापुर और अन्य जगह पर जाते हैं और अपनी मनोकामना पूरा करने के लिए भगवान के सामने मत्था टेकते हैं लेकिन अब तो हद ही हो गई है। अब भगवान स्वयं दर्शन दे रहे हैं। शनि भगवान के नाम पर जितना ही लोग डरते थे अब उतना ही भगवान से लोग पीछा छुड़ाने लग गए हैं।

सही भी है लोगों का जीना दूभर हो गया है, खासकर शनिवार को सड़को पर निकलना दूभर हो जाता है। अगर किसी दुकान पर खड़े होकर चाय पी रहे हो या फिर नाश्ता कर रहे हो तो फिर शनि भगवान को लेकर छोटे बच्चों का आना-जाना लगा रहेगा। और यह बच्चे इतने ढीठ़ होते हैं कि एकदम सिर पर चढ़ आते हैं, कुछ खा रहे हो या पी रहे हो तो मुंह ताकते रहेंगे। जब तक न दो यह बच्चे टस से मस नहीं होते।

हे भगवान क्या अब आपके घर खाने के इतने लाले पड़ गए हैं कि घर-घर जाकर पैसा मांगना पड़ रहा है। अभी तक लोग आपके पास जाते थे अब आप स्वंय लोगों को दर्शन दे रहे हैं लेकिन यह तरीका देख लोग आपसे पीछा छुड़ा रहे हैं।

Friday, August 20, 2010

दहेज लोभी दानवों से किसी तरह मिली मुक्ति

दहेज लोभी दानव कलयुग में कुछ ज्यादा ही पैर पसारने लगे हैं। आए दिन दहेज को लेकर घर की बहू-बेटियां प्रताड़ित हो रही हैं, जहां देखो वहां दहेज के नरभक्षी अपनी प्यास बुझाने के लिए हैवानियत की सारी हदें पार करने में जरा भी गुरेज नहीं करते, वे यह भी जानते हैं कि उनकी भी बेटी किसी दूसरे घर में जाएगी लेकिन वे दूसरे घर से आई हुई लड़की के ऊपर चंद रुपयों की खातिर ऐसे सितम बरपाते हैं जो मानवता को पूरी तरह से शर्मसार कर देने वाली होती है। दहेज की मांग न पूरा होने पर लड़कियों को जला देना, जहर देकर मार डालना, फांसी लगा देना आदि घटनाएं प्रतिदिन देखने को मिल ही जाती हैं।

दहेज लोभी दानवों का एक किस्सा हमारे घर के बगल में ही पिछले दिनों देखने को मिला। यहां पर हुआ कुछ इस तरह जिसे सुनकर आप भी इन दहेज लोभी राक्षसों को गाली दिए बिना नहीं रहेंगे। घर के बगल में रहने वाले एक काका अपनी सबसे छोटी लड़की की शादी करने के लिए काफी परेशान थे। उनकी पांच लड़की और एक लड़का हैं सभी की शादी हो गई है और मौजूदा समय में एक लड़की की शादी करनी बाकी है। शादी को लेकर काका काफी परेशान रहते थे, संयोग से इसी बीच किसी ने उन्हें एक शादी बताई कि लड़का एमआर है, और लड़के का पिता कोई पुलिस अधिकारी है। उसका इलाहाबाद में अच्छा मकान भी है। लड़के का पूरा परिवार पढ़ा-लिखा है, सब अच्छी-पोस्ट पर मौजूद हैं। इतना सुनकर काका तो फूले नहीं समाए और झटपट कि कहीं दूसरा कोई मौका न मार ले इसके पहले हम ही चढ़ाई कर देते हैं। बस क्या था काका कुछ लोगों को साथ लेकर उनके घर पहुंच गए।


हालांकि लड़का काफी स्मार्ट दिख रहा था, वह किसी दवा कंपनी में 15 हजार कुछ पाता था। काका ने लड़के और उसके पिता से बातचीत की तो वे मस्त हो गए कि ऐसा लड़का तो चिराग लेकर ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। सब कुछ बातचीत हो गई, अब बारी आई दहेज की तो लड़के वाले पहले ही समझ गए थे कि सामने वाला आसामी काफी दमदार है (काका मुंबई में एक बड़े सरकारी अधिकारी थे)। इसलिए साढ़े तीन लाख कैस और एक पांच लाख की कार की मांग कर डाली। काका ने भी सोचा चलो आखिरी लड़की है दिल खोलकर खर्चा करेंगे। उनके लिए इतना दहेज देना कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन लड़का सिर्फ एमआर था कोई आईएएस अधिकारी नहीं। इसके पहले काका दो बार लड़के के घर जाकर सब कुछ देख आए थे साथ में भारी-भरकम विदाई (बख्सीस) भी दिए थे।


सब कुछ फिक्स हो गया। अब बात आई लड़की को देखने की। काका ने कहा इलाहाबाद में एक होटल में कुछ कमरे बुक करा देते हैं, वहीं आकर आप लोग लड़की को देख लेना। होटल का कमरा बुक हो गया, काका ने पहले ही पूछ लिया था कि कितने लोग आएंगे, तो सामने से जवाब मिला था तकरीबन 15-20 लोग। काका ने पूरे पचास लोगों के खाने-पीने का अच्छा इंतजाम करवा दिया था। घर से मेरे पापा भी गए हुए थे और काका की बड़ी लड़की, उनकी बहू और कुछ और रिश्तेदार। तकरीबन इधर से 20 लोग हो गए थे। लेकिन हैरानी तो तब हो गई जब लड़के वाले पूरे 35 के लगभग आ धमके।

काका ने किसी तरह से इंतजाम करवा दिया। जमकर खातिरदारी हुई। लड़की को दिखाने की रश्म भी पूरी हो गई। काका ने जितने भी लोग आए थे सबके लिए अच्छे कपड़े और पांच-पांच सौ रुपए दिए लेकिन हैरानी वाली बात तो यह थी कि लड़के वाले जरा भी शर्म महसूस नहीं किए और सिर्फ एक डिब्बा सोहनपापड़ी लाए थे। लड़की को पहनाने के लिए एक अंगूठी और कुछ रुपया। लेकिन जितने लोग आए थे सबको बिदाई दिलवाने के लिए लड़के के बाप ने काका को जमकर चूसा।

बात यहीं नहीं रुकती अभी तो पिक्चर पूरा बाकी है। इसके कुछ दिन बाद लड़के के पिता ने गांव जाकर काका का मकान और हमारे घर का कच्चा मकान देखा। यहां पर भी ये भाई साहब कंजूसी की हदें पार करते हुए सिर्फ एक किलो मीठा लेकर गए थे। मैं किसी लालच वश ऐसा नहीं कह रहा हूं कि इन्होंने कुछ नहीं लाया मैं तो यह कहना चाहता हूं कि इतना लेने के बाद खर्च करने की भी हिम्मत जुटाओ। घर पर ही काका ने यह पूछा कि आप शादी कहां से करेंगे तो लड़के के बाप ने बोला हम तो गांव से शादी करेंगे। इसके बाद इन्होंने (लड़के के बाप) कहा कि अगले सप्ताह बरक्षा करने का शुभ मुहूर्त (बरक्षा जिसमें लड़के को जनेऊ और कुछ रुपए दिए जाते हैं) है आज ज्यादा कुछ नहीं सिर्फ जनेऊ लेकर आ जाना, बाकी तिलक हम नवंबर में करेंगे। शादी की भी तारीख दिसंबर में तय हो गई थी। इसी बीच लड़के की तरफ से जिस कार की डिमांड की गई थी उससे थोड़ा अलग की डिमांड कर दी गई। अब की बार जो कार मांगी गई वह पहले वाली की अपेक्षा लगभग 50 हजार मंहगी आती है। खैर काका ने यह भी मांग तहेदिल से स्वीकार कर ली। अब काका को लग रहा था कि यह रिश्ता हाथ से नहीं जाना चाहिए, अगर यह चला गया तो इतना अच्छा दामाद नहीं मिलेगा लेकिन वे शायद यह नहीं समझ पा रहे थे कि उनके साथ कितनी बड़ी साजिश रची जा रही है।

बरक्षा देने के लिए काका ने मेरे पिताजी और घर में एक सीनीयर है उनको लेकर लड़के के गांव गए। इसके पहले काका ने पांच प्रकार का फल, ढ़ेर सारी मिठाई, कुछ बर्तन और 51 हजार रुपए नगद ले गए थे। हालांकि मेरे पिताजी मना कर रहे थे कि जब उन्होंने बोला है तो आप कम ही पैसा दें। लेकिन सही ही कहा गया हो जो होना वह होकर ही रहता है। वहां पहुंचकर सबकुछ अच्छे से हो गया लेकिन जब निकलने की बारी आई तो फिर सबको विदाई देने को कहा गया। खैर काका यहां पर भी पीछे नहीं रहे और सबको पांच-पांच सौ रुपए दिए। लड़के के बाप को इतने से भी संतोष नहीं हुआ और यह दहेज लोभी दानव ने जो घर में नहीं थे उनकी भी विदाई काका से मांगी। काका ने सबको संतुष्ट किया।

लेकिन काका जब घर आए तो किसी तीसरे आदमी से खबर आती है कि ठीक से विदाई नहीं की। इसके बाद खबर आई कि इलाहाबाद से शादी होगी। इसके बाद काका का मूड बुरी तरह से ठनक गया। उन्होंने जो शादी के अगुआ थे उनको सारी बात बताई और फिर यह निश्चय हुआ कि कुछ ज्यादा ही तीन-पांच हो रहा है, लगता है शादी कैंसल करनी पड़ेगी। हालांकि इस बात के लिए मैंने भी काफी जोर दिया था कि ये साले काफी घटिया लग रहे हैं, दहेज लोभी है, काका को चूसकर खा जाएंगे। लेकिन मेरी बात का असर नहीं पड़ा। यह सब बात मैं काका के बेटे से की थी। वे मुंबई में रहते थे।

इसके बाद काका बुरी तरह से झल्ला गए और एक बार अगुआ के माध्यम से पूरी बात क्लियर करना चाह रहे थे। हमने और काका के लड़के ने तो साफ कह दिया था कि अगर ज्यादा इधर-उधर की बात हो तो तत्काल शादी रद्द कर दो। लेकिन काका ने एक बार बात करना उचित समझा। मेरा पिताजी, काका और घर के सीनियर ये लोग प्रतापगढ़ (जहां पर लड़के का घर और अगुआ का घर था) में अगुआ के घर गए, वहां पर लड़के के पिता को भी बुलाया गया। फिर उनसे हर बात को लेकर गर्मागर्म बहस हुई। लड़के के पिताजी ने माना कि हां मुझसे गलती हुई है लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। लेकिन काका ने कहा कि अब तो आप हर बात क्लियर कर लें तो ज्यादा अच्छा होगा।

अब यहां पर फिर दहेज का लोभ चरम पर पहुंचने वाला था, काका ने एक डायरी में उनकी डिमांड लिखनी शुरु कर दी। काका ने पूछा कितने लोग आप आएंगे, क्या-क्या चाहिए, कौन सी कंपनी का सामान हो, कितनी विदाई चाहिए.वगैरह.वगैरह। घर आने पर फिर काका का मूड गरम हो गया और अब यह सोचने लगे कि क्यों न एक बार लड़के और लड़की का कुंडली मिलवाया जाए। यह सोच काका एक पंड़ित के पास जा पहुंचे। पंड़ित ने दोनों की कुंडली देखते ही काका पर भड़क गया और बोला अगर यह शादी होगी तो भविष्य में दोनों को भयंकर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। काका ने कई पंड़ितों को कुंड़ली दिखाई लेकिन सबने यही बात कही।

इसके बाद काका के समधी (लड़के के ससुर जो कि इलाहाबाद में रहते हैं) ने लड़के पक्ष वालों के बारे में थोड़ी जानकारी निकाली, तो एक कड़वे सच का खुलासा हुआ। यह पता चला कि इनका न तो इलाहाबाद में कोई मकान है और बाप तो एक तरह का हरामी किस्म का इंसान है। जबकि लड़के वालों ने यह बताया था कि हमारा गांव के साथ इलाहाबाद में भी जगह-जमीन है। खैर इतना पता होने के बाद मेरे पिताजी और काका ने एक प्लान के तहत लड़के के गांव जाकर कुछ और हकीकत जाननी चाही। फिर क्या था दोनों गांव पहुंचे और आस-पड़ोस के लोगों से पूछताछ शुरु कर दी। तो यहां पर भी कुछ हैरान-परेशान कर देनी वाली बातें सामने आईं। यह पता चला कि लड़के का बाप एक नंबर का हरामी है, उसका गांव में इमेज गंदी है। वह रेप केस में फंस चुका है। काका को यह भी पता चला कि लड़का शादी के बाद नौकरी छोड़ना चाहता है, और दहेज में जो पैसा मिलेगा उससे बिजनेस करेगा। यह सब जानने के बाद काका का दिमाग बुरी तरह से खराब हो गया। इसके पहले पंड़ितों ने कुंड़ली पर भी एतराज जताया था।

सब कुछ पता चलने के बाद काका ने लड़के वालों को बताया कि दोनों की कुंडली नहीं मिल रही है इसलिए शादी नहीं कर सकते। जबकि इसके पहले काका का कम से कम दो लाख रुपए खर्च हो चुका था। लेकिन काका को इस बात की परवाह नहीं थी, उनको एक सुकून था कि चलो देर से ही सही कम से कम लड़के वालों की हकीकत तो पता चल गई। नहीं तो लड़की के जाने के बाद ये लोग पता नहीं क्या-क्या डिमांड करते। काका के इनकार के बाद लड़के वालों ने कहा कि हम कुंडली जैसी बातों को नहीं मानते हैं और आप भी इस चक्कर में न पड़े तो ज्यादा ही बेहतर होगा। लेकिन काका ने एक न सुनी। काका को तो अब उनसे पीछा छुड़ाना था।

मौजूदा समय में यह शादी कैंसल हो चुकी है, काका को अपने दो लाख का गम नहीं है, उन्हें सुकून है कि हमारी लड़की की जिंदगी बच गई। हमारी लड़की दानवों के घर जा रही थी लेकिन समय पर आंख खुल गई। भगवान ऐसे दहेज लोभियों से बचाए। इस पूरे घटना में मेरा सिर्फ यही कहना है कि जहां पर इस तरह के दहेज लोभी पड़े हैं उनके घर लड़की वालों को सोच-समझ के कदम रखना चाहिए। यह दहेज के दानव न सिर्फ अपने लड़के का सौदा करते हैं बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ी को भी गर्त में डालने का काम करते हैं। हालांकि हमारे इधर बिना दहेज दिए लड़की का ब्याह करना मुमकिन नहीं है लेकिन फिर भी इस तरह के लालची आदमियों की पहचान तो हो गई।

Sunday, August 15, 2010

क्या अब भी हम आजादी महसूस करते हैं?

आज हम 64वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं लेकिन क्या पता है हम कैसी आजादी में जी रहे हैं। यह शायद सबको पता होगा। देश में आज जो कुछ हो रहा है उसे देखकर जरा भी नहीं लगता कि हम आजाद देश के नागरिक हैं। न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका हर जगह मौजूदा समय में जो हालात देखे जा रहे हैं वह शायद पहले कभी रही होगी। न तो समय पर लोगों को न्याय मिल पा रहा है न ही कोई अधिकारी अपने कर्तव्यों का सही से निर्वहन करता दिख रहा है। रही बात हमारे नेताओं की तो उनकी बात भी करनी बेकार है।

हमारे नेता जिस तरह से सदन में गाली-गलौज करते हुए दिखते हैं वह हमारे लिए सबसे शर्मनाक है। हम कितनी आशाओं के साथ इन्हें अपना प्रतिनिधी चुनते हैं लेकिन सदन के अंदर जाते ही ये लोग जिस तरह का व्यवहार करते हुए दिखते हैं उससे हम क्या कल्पना कर सकते हैं कि अभी भी हमारे यहां पर कहीं न कहीं अशिक्षा की कमी है। हम उसी गुलामी वाले माहौल में जी रहे हैं।

दुनिया हमें सबसे विकसित देश के रूप में देख रही है लेकिन क्या हम उस रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं नहीं.। क्योंकि इसका एक उदाहरण अभी हाल ही में हमारे सामने आया। वह है कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए हो रहे काम में। पचासों देश और लाखों लोग हमारे मेहमान बनेंगे लेकिन उनके सामने अभी से जिस तरह का करप्शन नाम की आग उठी है वह हमें कितने पीछे ले जाएगी यह तो भविष्य ही बताएगा।

हम आज आजादी की बात करते हैं लेकिन महंगाई के ऐसे दौर से हम गुजर रहे हैं उससे न सिर्फ गरीब बल्कि अच्छे-भले मानुष भी झुलस रहे हैं। हर दिन पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ रहे हैं। सरकार घाटा बताकर इजाफा कर देती है। हम मंहगाई, करप्शन की जंजीरों में पूरी तरह से जकड़े हुए हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में गरीबों का पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है क्या कभी किसी ने यह भी सोचा कि जो गरीब हैं वो और गरीब हो जाएंगे। लेकिन गरीब से किसी का कोई लेना देना नहीं क्योंकि हमारे नेता तो अच्छे घरों में रहते हैं, अच्छा खाना खाते हैं, उन्हें गरीब के दुख: दर्द से क्या लेना देना।

हम विकास की बात करते हैं, आतंकवाद, करप्शन पर काबू पाने की बात करते हैं लेकिन जो यह बात करते हैं वही सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं। हमारी सुरक्षा को जिस तरह से ठेंगा दिखाया जा रहा है वह किसी भी गुलामी दौर से कम नहीं है। ट्रेन और हवाई जहाज में यात्रा करने से पहले आज हर इंसान डरता रहता है कि कहीं प्लेन क्रैस न हो जाए, कहीं ट्रेन नक्सलियों का निशाना न बन जाए। आज हम डर के शिकंजे में जी रहे हैं। पता नहीं कब और कहां पर आतंकवादी विस्फोट कर बैठें यह किसी को पता नहीं। हम बात करते हैं आजादी की, ऐसी आजादी किस काम की हर वक्त हम डर के आगोश में जिंदा रहें। घर से तो निकलते हैं लेकिन वापस आएंगे या नहीं यह कोई गारंटी नहीं।

आज भी हम अंग्रेजों के शासन काल में जी रहे हैं लेकिन उस समय एक चीज बढ़िया थी कि इतना करप्शन नहीं था। उस समय क्राइम पर सख्त सजा दी जाती थी लेकिन आज की बात हम करें तो कितना बड़ा अपराधी ही क्यों न हो उसे सजा तो क्या वह जेल में भी बंद होता है तो उसके लिए वीआईपी व्यवस्था होती है। कोर्ट में क्रिमिनल के खिलाफ केस चले तो वह जमानत पर फिर क्राइम करने के लिए छोड़ दिया जाता है। क्रिमिनल पर जुर्म साबित करने के लिए कई साल लग जाते हैं। ऐसी आजादी से तो अग्रेंजों का ही शासन ठीक था कम से कम इतना करप्शन और इतना क्राइम तो नहीं था।

कोई भी काम हो बिना पैसा दिए वह पूरा नहीं हो सकता। गरीब सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते भगवान को प्यारा हो जाता है लेकिन उसे न्याय नहीं मिल पाता। ऐसी आजादी में जी रहे हैं हम। कोर्ट की बात की जाए तो हम देखते हैं ३क्-३क् साल से केस चल रहे हैं लेकिन आज तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। इस बीच न्याय की चाह रखने वाला भले ही ऊपर चला गया हो।

हमने पिछले दिनों देखा ट्रैफिक पुलिस गाड़ी चेकिंग कर रहे थे, ये लोग खासकर स्कूली लड़कों को रोक रहे थे, उनसे गाड़ी का सारा कागजात मांग रहे थे। मैं बगल में खड़ा देख रहा था। पुलिस कागजात न रहने पर एक रसीद काटते थे खैर यह तो लीगल काम था लेकिन बगल में ही एक पुलिस दबे हाथों कुछ पैसे लेकर लोगों को जाने दे रहा था। मुझे यह देखकर काफी गुस्सा आया लेकिन उस समय मैं कुछ बोल न सका।

हर जगह करप्शन है, इस गुलामी से अब शायद ही आजादी मिल सके क्योंकि मैं यह भी देख रहा हूं कि बड़े-बड़े अधिकारी, नेता, मंत्री के यहां पर सीबीआई छापे मारती है और यहां पर करोड़ो रुपए बरामद होते हैं। अब जब यही लोग खा-खा के मोटे हो रहे हैं तो हमारे लिए तो यह आजादी नहीं हो सकती। आजाद तो हम तब होते जब ऊपर से नीचे तक सभी लोग बेदाग होकर काम करते।

Friday, August 13, 2010

कश्मीर में फहरा पाक का झंडा

आज यह देखकर एक बार फिर हैरानी हुई कि आखिर ये लोग किस हद तक जा सकते हैं। सरकार चाह कर भी इनके लिए कुछ नहीं कर सकती क्योंकि यह लोग खुद नहीं चाहते कि मुल्क में अमन-चैन आए। आज एक रैली निकाली गई जिसमें देखा गया कि कुछ युवक पाकिस्तानी झंड़े को हवा में लहरा रहे हैं। भारत में इस तरह के किसी भी देश के झंड़े को फहराना एक तरह का अपराध है।

पिछले कुछ दिनों से आग में जल रही घाटी में सुकून के वो पल कब आएंगे यह तो पता नहीं लेकिन आज जिस तरह से यहां पर देखा गया वह हैरान कर देने वाला था हालांकि पिछले कुछ दिनों पर नजर डाले तो यह अपने आपमें कोई पहली घटना नहीं है जब यहां के लोगों ने पाकिस्तानी झंड़े फहराए हैं। पहले भी कई बार इस तरह की हरकतें की जा चुकी हैं।

वैसे यह सब अलगाववादी नेताओं का किया धरा है जो अपने स्वार्थ को सीधा करने के लिए आम लोगों को पहले तो उकसाते हैं उसके बाद इन्हें आगे करके अमन और चैन के रास्तें में कांटे बिछा देते हैं। आम लोगों को चंद रुपए देकर पुलिस पर पत्थरबाजी करवाना, भारतीय झंडे को जलाना, पाकृति सौंदर्य को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाना आखिर कब तक चलेगा। इन लोगों को क्या मिलबैठकर बातचीत करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, स्वर्ग की घाटी को कब तक जलाया जाएगा।

प्रधानमंत्री चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं, यहां पर माहौल आज एक बार फिर से खराब हो गया है लेकिन आज ही क्यों पिछले कितने दिनों से यहां पर क्या हो रहा है वह भारत के लोग ही नहीं पूरा विश्व देख रहा है। दुनिया के सामने हमारी क्या इमेज बन रही होगी, इसकी किसी को खबर नहीं। अब तो सैलानी भी यहां पर आने से डरने लगे हैं।

अमरनाथ यात्रा आतंकी हमले के खौफ में किसी तरह से समाप्त हो गई लेकिन अब इन अलगाववादियों का खौफ बरकरार बना हुआ है। मेरे हिसाब से तो अब यहां पर सरकार को पूरी तरह से आगे आना चाहिए क्योंकि मुझे तो अब नहीं लगता कि बैठकर कोई रास्ता निकाला जा सकता है।

Monday, August 2, 2010

घाटी में कब लौटेगा अमन-चैन

धरती पर स्वर्ग की नगरी कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर के हालात अब देखे नहीं जा रहे हैं। पिछले कई महीनों से यहां पर जो हो रहा है उसके लिए हम किसको दोष दें यह समझ में नहीं रहा है। ताजा झड़प में आज भी चार लोग मौत की नींद सो गए और पिछले चार दिनों में तो पुलिस और लोगों में पथराव और गोलियां चलीं उसमें अब तक १७ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।

जहां तक मैंने सुना है इतनी जबरदस्त हिंसा पहले कभी नहीं हुई, अगर हुई भी तो वह कुछ ही दिनों के लिए। लोगों में इतना ज्यादा क्रोध, गुस्सा है कि वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। सुबह सोकर उठते हैं तो मन में यह विचार आता है कि भगवान आज तो वहां पर माहौल अमन और चैन भरा हो लेकिन ऑफिस आकर सबकुछ पिछले दिनों जैसा घटित होता है।

सरकार भी यहां के लोगों के सामने पूरी तरह से बेबस हो चुकी है, तभी तो बार-बार अपील करने पर भी कोई ऐसा नहीं है जो शांति का पैगंबर बनकर सामने आए। लोगों में अब भारी निराशा छा गई है कि यहां पर अब कब सुबह होगी। कब तक यह अंधेरा छाया रहेगा। हिंसा के डर से लोग घरों से निकलने में पूरी तरह सिहर रहे हैं। कई दिनों से दुकाने नहीं खुलीं, स्कूलों में ताला लटका है, सरकारी दफ्तरों में काम करने वालों की संख्या भी के बराबर हो गई है।

आखिर यहां पर लोग क्यों शांती नहीं आने देना चाहते हैं, क्यों लगातार कानून की सरेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। यह समझ से परे हैं, क्योंकि अगर सरकार इनके साथ बैठने को तैयार है तो फिर इन्हें हिंसा का रास्ता क्यों सबसे बेहतर मालूम पड़ रहा है। मुझे याद है कुछ दिन पहले केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि जैसे ही घाटी में थोड़ा माहौल शांत होता है, वैसे ही यहां से सेना हटा दी जाएगी। इतना आश्वासन देने के बावजूद भी यहां के लोगों के कानों में जूं तक नहीं रेंगा है। बस हिंसा, मार-धाड़, गाड़ी फूंकना, पत्थरबाजी करना, सरकारी मकानों को बुरी तरह से नष्ट करना, यही रह गया है।

ये लोग यह जरा भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आज तक हिंसा का रास्ता अपनाकर किस समस्या का हल निकला है। बैठकर अच्छे से बातचीत हो तो सब कुछ ठीक हो सकता है लेकिन इसके लिए किसी किसी को आगे आना होगा। सरकार को पूरी तरह से दोष नहीं दिया जा सकता है, अगर कोई मुद्दा है जिसको लेकर लोग हिंसा पर उतारू हैं तो उन्हें सामने आना होगा।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुला ने भी लोगों से आग्रह किया कि बैठकर समस्या का समाधान करते हैं लेकिन यहां सुनने को कोई तैयार नहीं है। खैर अब सरकार को कुछ तो करना होगा जिससे यहां पर फिर वहीं अमन-चैन सके जो पहले था। आज यहां पर सैलानी आने से पूरी तरह से डरते हैं कि कहीं कुछ घटना घट जाए। तो सरकार को सैलानिकों के दिलों में बैठे डर को भी निकालना होगा साथ ही यहां के लोगों में एक विश्वास की आस जगानी होगी कि हम आपकी हर उस बात को मानेंगे जो देश हित में होगा लेकिन सबसे पहले आप लोग हिंसा का रास्ता छोड़ें।

Sunday, July 25, 2010

बुरे फंसे अमित शाह..अब क्या होगा...

मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को आज जोर का झटका लगा है, जब उनके दाहिने हाथ कहे जाने वाले राज्य गृहमंत्री अमित शाह को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया है। मोदी ने अपना पूरा जोर लगाया था लेकिन उनकी चाल किसी भी तरह से कामयाब नहीं हुई और आखिरकार शाह को सलाखों के पीछे जाना ही पड़ा।

हालांकि अमित शाह ने अपना इस्तीफी मोदी को पहले ही सौंप दिया था जिसे उन्होंने स्वीकार करते हुए राज्यपाल को भी भेज दिया था लेकिन क्या इस्तीफा स्वीकार करने भर से अमित शाह पर लगे सारे दाग धुल जाएंगे। नहीं। अब तो उन्हें सीबीआई के सामने अपनी सफाई देनी होगी साथ ही यह भी बताना होगा कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर के समय क्या हुआ था।

अभी बीजेपी यह आरोप लगा रही है कि शाह को गिरफ्तार करने के पीछे कांग्रेस की चाल है। उसने ही सीबीआई का सहयोग करके अमित शाह पर शिकंजा कस रही है। बीजेपी ने तो यहां तक आरोप लगा दिया है कि सीबीआई केन्द्र सरकार के इशारे पर काम कर रही है। हालांकि कांग्रेस ने बीजेपी के इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि सीबीआई किसी के कहने से नहीं चलती बल्कि वह सही और गलत का फैसला खुद करती है।

उधर सीबीआई का कहना है कि सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में अमित शाह के खिलाफ पुख्ता सबूत पाए गए हैं। अमित शाह के फोन कॉल्स के डिटेल भी सीबीआई के पास मौजूद हैं। सीबीआई द्वारा दिए गए समन के बाद हालांकि शाह अंडरग्राउंड हो गए थे लेकिन आज पता नहीं क्या सोचकर वे मीडिया के सामने आए। मीडिया से मुखातिब होते हुए शाह ने कहा कि यह सब मुझे फंसाने की साजिश है, मैं बेकसूर हूं। मैंने कोई गलती नहीं की है लेकिन मुझे न्याय पालिका पर पूरा भरोसा है।

शाह जी न्यायपालिका पर तो सबको भरोसा रहता है लेकिन आपके खिलाफ सीबीआई के पास जो सबूत हैं उसका क्या। अब तो मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी आपसे पल्ला झाड़ लिया है लेकिन बीजेपी अभी भी आपके साथ कदम से कदम मिलाए हुए है अब तो बीजेपी मौन रैली और जनआंदोलन करके केन्द्र और सीबीआई का विरोध भी कर रही है। फिर भी ऐसा करने से न तो बीजेपी को कुछ हासिल होगा और न ही शाह को कोई राहत।

मीडिया के सामने जिस तरह से शाह ने कहा कि सोहराबुद्दीन मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब से भी ज्यादा खतरनाक था। इसके यहां से ढेर सारे हथियार भी बरामद किए गए थे। उन्होंने कहा कि सोहराबुद्दीन का मारा जाना एकदम सही था। खैर सोहराबुद्दीन तो मारा गया लेकिन शाह के लिए कांटे भी बो दिया। अमित शाह अब कितना भी हाथ-पैर पटकें लेकिन सीबीआई इतनी आसानी से उन्हें बरी नहीं करेगी। मामला धीरे-धीरे गंभीर ही होता जा रहा है। सीबीआई कोर्ट ने तो शाह को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।

Thursday, July 22, 2010

धोनी के हनीमून में विलेन बना हार

आज श्रीलंका के हाथों भारतीय क्रिकेट टीम को बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ा। ऐसी हार शायद ही किसी भारतीय क्रिकेट प्रेमी ने सोची होगी। सारे दिग्गजों से सजी भारतीय टीम धोनी को शादी का गिफ्ट नहीं दे पाई।

धोनी भी श्रीलंका में एक पंथ दो काम करने गए थे। सोचा था अपनी बचपन की सहपाठी साक्षी से शादी करके श्रीलंका दौरे पर क्रिकेट टीम की कप्तानी भी हो जाएगी साथ में हनीमून भी। लेकिन हो सकता है धोनी का हनीमून अच्छे से मन जाए लेकिन धोनी ने अपने सहयोगियों से जो गिफ्ट की मांग की थी वह नहीं मिल पाई। साक्षी भी सोच रही होंगी कि काश भारत में ही रह गई होती तो आज यह दिन न देखना पड़ता। धोनी भी साक्षी को जीत का गिफ्ट नहीं दे पाए।

लेकिन हम हार की बात करें तो सामने आता ही टीम में एकजुटता, सामंजस्य और एकाग्रता नाम की कोई विषयवस्तु नहीं देखी गई। सहवाग और युवराज को छोड़कर कोई भी खिलाड़ी न तो ठीक से बल्लेबाजी कर पाया न ही हमारे गेंदबाज गेंदबाजी। वैसे हम सिर्फ धोनी के सिर पर रात का ठीकरा नहीं फोड़ सकते, इस हार में सभी खिलाड़ी बराबर के हिस्सेदार हैं। वो फिर चाहे सचिन हों या फिर द्रविड़ या फिर खुद कप्तान धोनी। किसी ने भी अपनी जिम्मेदारी को ठीक से निर्वहन नहीं किया।

फिर भी यह हार कई मायनों में दुखदाई है। सबसे ज्यादा तो धोनी के लिए क्योंकि उन्होंने साक्षी से वादा किया था कि वह उन्हें जीत का गिफ्ट देंगे लेकिन उनके हनीमून को हार का गिफ्ट मिला। खैर कोई बात नहीं आगे और मैच होने हैं। साक्षी को हनीमून का गिफ्ट देने का और मौका है धोनी के पास। लेकिन इस बात कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना। अगर यह मौका चला गया तो फिर धोनी न तो फिर से हनीमून पर जाएंगे और न ही साक्षी के लिए यह पहला दौरा होगा।

इन सब बातों को दरकिनार करते हुए हम आज मुरली धरन को सबसे पहले बधाई देना चाहेंगे कि वे आज दुनिया के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बन गए हैं। स्पिन के जादूगर कहे जाने वाले मुरलीधरन ने आज अपना ८क्क्वां विकेट लेने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। इसके पहले भारत के अनिल कुंबले और इसके पहले ऑस्ट्रेलिया के शेन वार्न ने भी कुछ इसी तरह से अंतराष्ट्रीय क्रिकेट को गुड बाय कहा था। लेकिन मुरली ने जिस तरह से यह मुकाम हासिल किया वह अब शायद ही क्रिकेट जगत में देखने को मिले।

मुरली की हिम्मत और उनके स्टेमिना की दाद देनी होगी कि उन्होंने एक टारगेट को लगातार बनाए रखा और शेनवार्न को पीछे छोड़ते हुए आज यह मंजिल भारत के खिलाफ खेले गए टेस्ट में हासिल कर ली। गाले में हर वो दर्शक जो मैच देख रहा था उसके लिए यह दिन एक यादगार दिन रहेगा। लेकिन यह दिन सिर्फ श्रीलंकाई के लिए नहीं बल्कि पूरे विश्व में जितने भी क्रिकेट प्रेमी हैं सबके जहन में गाले टेस्ट बस गया है। अब न तो दूसरा वार्न पैदा होगा और न ही मुरली। आज क्रिकेट जगत के एन अध्याय का पूरा पन्ना खत्म हो गया जिसे हमेशा के लिए बंद कर दिया गया और यह पन्ना खुद मुरली ने अपने हाथों बंद किया।

Saturday, July 17, 2010

आज नहीं तो कल ये होना ही था

झारखंड़ के जमशेदपुर में जिस तरह से शराब के नशे में धुत जवान ने अपने ही साथियों को मौत की नींद सुला दिया वह तो एक न एक दिन होना ही था। कहने का तात्पर्य यह है कि पिछले कुछ दिनों पर झारखंड और छत्तीसगढ़ के नक्सली क्षेत्र में तैनात सीआरपीएफ जवानों की गतिविधियों पर नजर दौड़ाए तो निकलता है कि यहां पर नक्सलियों के हाथों सबसे ज्यादा परेशान सीआरपीएफ के जवान ही हुए हैं। नक्सली क्षेत्र में अब तक सीआरपीएफ के जवान ही मारे गए हैं।

ऐसे में जहां तक मेरा अनुमान है इन जवानों में अंदर ही अंदर विद्रोह की आग सुलग रही है। यह आग चाहे बड़े अधिकारियों द्वारा दिशा निर्देश को लेकर हो या फिर अपने जवानों के मारे जाने के बाद। वैसे बताया जा रहा है कि जवान को शराब पीने पर उसके अधिकारी ने जमकर फटकार लगाई थी।

माना जा रहा है कि अधिकारी की फटकार सुनकर जवान बुरी तरह से झल्ला गया और अपने ही साथियों पर अंधाधुंध फायरिंग करके ६ साथियों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन यह बात मेरी समझ से परे है। क्योंकि कल तक जो जवान साथ में बैठकर खाना खाते थे आज वही जवान अपने भाईयों की जान का दुश्मन कैसे बन सकता है।

कहीं न कहीं जवान अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रहे हैं, इसके पीछे का कारण साफ है। नक्सलियों से निपटने का दबाव उनके ऊपर ज्यादा रहता है। इस वजह से न तो वे ठीक से छुट्टी ले पाते हैं और न ही घर से ठीक तरह से कोई तालमेल हो पाता है। जवान दिन-रात नक्सलियों से निपटने की रणनीति बनाने में ही व्यस्त रहते हैं। साथ ही कुछ दिन पहले यह भी खबर आई थी कि जवानों के सामने चुनौती तो बहुत बड़ी है लेकिन उन्हें ठीक से खाना भी नसीब नहीं हो पा रहा है।

ऐसे में जवान मानसिक रूप से शराब पीकर हथियार नहीं उठाएंगे तो और क्या करेंगे। यह सीआरपीएफ के लिए एक सबक हो सकता है कि जवानों के लिए चुनौती का सामना करना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही उनके लिए सुख-सुवधाओं का होना भी। साथ में नक्सली जैसे क्षेत्रों में रहने वाले जवानों को तो समय-समय पर घर जाने की छुट्टी भी मिलना चाहिए, जिससे फायदा यह होगा कि हमारे जवान पूरी तरह से तरोताजा होते रहेंगे और उन्हें किसी भी प्रकार की मानसिक परेशानी नहीं होगी। इसके लिए सरकार को पूरी तरह से सबक लेते हुए आगे आना होगा जिससे इस तरह के वारदात को जल्द से जल्द रोका जा सके।

Friday, July 16, 2010

पाकिस्तानी तीर से हम आहत नहीं

पाकिस्तान कितना ही तीर चलाए, हम घायल जरूर होंगे लेकिन सिर नहीं उठाएंगे। पाकिस्तान का पैंतरा बदलना कोई नई बात नहीं है, कई सालों से हम ऐसे तीखे बयान सुनते आ रहे हैं लेकिन हमारे कान ऐसी बातें सुनने के आदी हो गए हैं। आस-पड़ोस कुछ भी कहे इससे हमें क्या। हम तो मौनी बाबा बनकर एक जगह जम गए हैं। फिर वह चाहे पाकिस्तान हो या फिर पड़ोसी भाई चीन।

आज हमारे विदेश मंत्री एसएम. कृष्णा ने भी यह साबित कर दिया है कि भारत कितना शांतिप्रिय देश है, जो कुछ नहीं सुनता। हमें चाहे जितना भी कोसा जाए, आरोप लगाए जाए कोई मतलब नहीं। कृष्णा पाकिस्तान गए, सोचा था थोड़ा बहुत संबंध अच्छा होगा लेकिन नतीजा उल्टा निकला। पाकिस्तान ने ऐसे तीर चलाए कि कृष्णा जैसे लोग भले ही घायल न हुए हो लेकिन भारत का एक आम इंसान जरूर आहत हुआ है।

तीन दिन की यात्रा के बाद कृष्णा के भारत आते ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा, यहां के लोग हमसे बातचीत में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे बल्कि वे दिल्ली फोन पर बातें करने में ज्यादा मशगूल थे। पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तो यहां तक कह दिया कि भारत बिना किसी तैयारी के यहां पर आया था। कृष्णा ने गंभीर मुद्दों पर बातचीत करने के लिए कहा था लेकिन उनका प्रतिनिधि मंडल बैठक में अंदर-बाहर ही होता रहा।

अब बताइए कुरैशी के इस बयान को भारत का एक आम नागरिक किस नजरिए से देखेगा। जहां तक मेरा अपना व्यक्तिगत विचार है, मैं कृष्णा को ही दोषी ठहराऊंगा। क्योंकि वे यह शायद भूल गए कि यह वही पाकिस्तान है जो आज तक यह नहीं स्वीकार कर सका कि मुंबई पर हमले के पीछे उसकी सरजमी का इस्तेमाल किया गया।

भारत द्वारा पर्याप्त सबूत दिए जाने के बाद भी पाकिस्तान उल्टा चोर कोतवाल को डाटे जैसी बातें करता आ रहा है। पाक का पैंतरा बदलना कोई नई बात नहीं है, बल्कि वह सालों से इस तरह की घटिया बयानबाजी करता आ रहा है। ऐसे में भारत को चाहिए था कि वह ऐसी कोई पहल न करें, जिससे भारत का एक आम नागरिक घायल हो, हालांकि हमारे देश के नेताओं को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है।

Wednesday, July 14, 2010

हमारे समाज के कैसे हो सकते हैं नक्सली

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने आज जो कहा वह बिल्कुल सही है कि नक्सली हमारे ही बीच का कोई है और इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को सारे रास्तों पर जाना होगा, सेना और सीआरपीएफ के इस्तेमाल से किसी समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला।

जी हां मुख्यमंत्री जी आपने बिल्कुल सही कहा, लेकिन जहां तक मेरा व्यक्तिगत विचार है, आपका यह सोचना बिल्कुल गलत और निराधार है। क्योंकि नक्सलियों को हम अब अपने बीच का नहीं कह सकते। कारण कि अगर नक्सली पने बीच के होते तो आज झारग्राम ट्रेन हादसे से लेकर दंतेवाड़ा जैसी क्रूरतम घटनाओं को अंजान न देते और बेकसूर लोगों को मौत की नींद न सुलाते।

नक्सलियों को अगर कोई समस्या है तो वह सरकार और प्रशासन से है। उसमें आम जनता का क्या कसूर है। आए दिन नक्सली अपना रास्ता साफ करने के लिए एक आम इंसान की हत्या कर देते हैं। सिर्फ शकमात्र से लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। ऐसे में नक्सलियों को हम अपने बीच का कैसे कह सकते हैं।

अगर नक्सली हमारे बीच के होते तो ये आम लोगों को हथियार न बनाकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ सीधा संघर्ष करते। सीएमजी कहते हैं, नक्सली हमारे समाज का हिस्सा हैं। हिंसा करने वाला समाज का हिस्सा कैसे बन सकता है। डर के मारे आम लोग भले ही नक्सलियों के खिलाफ आवाज न उठा सकें लेकिन उनके मन में नक्सलियों के प्रति सिर्फ ईष्र्या है और कुछ नहीं।

नीतिश कहते हैं कि सेना से नहीं बल्कि विकास से नक्सली समस्या का समाधान हो सकता है। ऐसे में हम पूछते हैं कि करो न विकास कौन रोक रहा है। रही बात केन्द्र से मदद की तो वो मिल रही है इसके बावजूद अगर राज्य सरकार रोना रोए तो वह उसकी समस्या है।

कुल मिलाकर मेरा मानना है कि नक्सल समस्या का समाधान विकास है और इसके लिए राज्य सरकार को खुद आगे आना होगा, न की किसी का मुंह ताकना। लेकिन यह भी देखना होगा कि विकास के काम में लगे हमारे अधिकारी क्या नक्सली इलाकों में काम कर पा रहे हैं, नहीं। पहले तो सरकार को नक्सलियों के मन में विश्वास जगाना होगा, फिर जाकर कहीं बात बनेगी। सरकार और नक्सलियों के बीच अभी तक विश्वास की भारी कमी देखी गई है और इसी का नतीजा रहा है कि सरकार बार-बार नक्सलियों को बातचीत के लिए आमंत्रित करती है लेकिन बीच में ही टाल-मटोल हो जाता है।

Tuesday, July 13, 2010

कब रुकेंगी सम्मान के नाम पर हत्याएं

जिसे हम सम्मान के नाम पर हत्या कह रहे हैं और ऑनर किलिंग का नाम दे रहे हैं दलअसल मेरे विचार से यह सिर्फ नासमझी है और कुछ नहीं। दुनिया कहां से कहां जा रही है लेकिन हम वही पुराने खयालातों में ही गोते लगा रहे हैं। वहीं पुरानी परंपराएं, वही पुराना सभ्यता और संस्कृति।

आज एक बार फिर उत्तर प्रदेश में सम्मान के नाम पर दो प्रेमी को मौत के घाट उतारने का मामला सामने आया है। नियम और कानून के साथ अब तो लोग ऐसे खिलवाड़ कर रहे हैं जैसे कोई फुटबॉलर गेंद से खेलता हो। सुप्रीम कोर्ट के बयान के बाद भी न तो कोई प्रशासन इसे गंभीरता से ले रहा है न तो लोगों के कानों में जूं रेंग रहा है।

प्रेम करना कोई गुनाह नहीं है लेकिन अब तालीबानी हुक्मरान हमारे यहां भी देखे जाने लगे हैं। उनके कहने पर ही अपने ही अपनों के कातिल बन रहे हैं। अगर प्यार करने वाले दो जाति के हों और दोनों चुपके से शादी कर ली, तो समझो इनका परिवार और समाज के बीच रहना मुश्किल हो जाएगा। इनका हुक्का पानी बंद करने के साथ गांव की पंचायत परिवार को न सिर्फ बहिस्कृत कर देती है बल्कि जोड़ी को ऐसे फरमान भी सुनाती है जो कानून की सरेआम धज्जियां उड़ाती हों।

खाप पंचायतों के तालिबानी फरमान से अब प्यार करने वाले पहले अंजाम की फिक्र करने में लग जाते हैं। उन्हें अंदर ही अंदर यह सालता है कि हम प्यार तो कर बैठें है लेकिन शादी के बंधन में कैसे बंधा जाए। जबकि कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस के. जी. बालाकृष्णनन ने कहा था कि प्यार करने वाले किसी खाप से नहीं डरते। हो सकता है इस शब्द को सुनने के बाद प्रेमी जोड़ों को थोड़ा बहुत तसल्ली मिली हो लेकिन इनका डर कम नहीं हुआ है।

खाप पंचायतों की हिंदू मैरिज एक्ट में बदलाव की मांग को भी कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया है वहीं खाप पंचायतों के तालिबानी फरमानों पर लगाम लगाने के लिए केन्द्र सरकार ने एक समूह भी गठित कर डाला है लेकिन नतीजा शायद ही निकल सके। क्योंकि सरकार में बैठे कुछ नेता भी खाप का समर्थन करते हैं। ऐसे में अब तो यह भी स्पष्ट हो रहा है कि जिसे हम ऑनर किलिंग कहते हैं दरअसल वह सम्मान के नाम पर हत्या है। जो भी लड़की अपने परिवार के खिलाफ शादी करती है वो भी दूसरे जाति के लड़के के साथ तो ऐसे में खुद लड़की के परिवार वाले और पंचायत दोनों मिलकर विवाहित जोड़े को मौत की सजा सुनाते हैं। कई मां बात तो बिना पंचायत के लड़की-लड़के को मौत की नींद सुला देते हैं।

हम जिसे सम्मान के नाम पर हत्या कहते हैं आखिर वह कब रुकेगी। कब इंसानों का सम्मान जागेगा। कब हम चेतेंगे, दुनिया कहां से कहां जा रही है और हम वहीं पुरानी अवधारणाओं को लेकर जी रहे हैं। हम विश्व स्तर पर जहां पर अपने विकास का डंका बजा रहे हैं वहीं ऐसी हैवानियत आखिर हमें किस दिशा में ले जाएगी। समय रहते अगर हमारी सरकार न चेती तो दुनिया के सामने एक बार फिर से हमेंशर्म से सिर झुका लेना होगा।

Monday, June 14, 2010

एंडरसन के भारत आने से क्या मिलेगा

भोपाल गैस त्रासदी के 25 साल से ज्यादा हो चुके हैं। पीड़ितों ने जो न्याय की आस लगाए बैठे थे वह तो नहीं मिली उल्टा राजनीतिक लोग सियासी दांव खेलना शुरु कर दिया है। गैस त्रासदी के सबसे बड़े आरोपी वारेन एंडरसन को चुपचाप भारत से बाहर कर दिया गया। पीड़ितों के ऊपर इससे ज्यादा कुठाराघात क्या होगा।

अपने लोग अपनों की पीड़ा नहीं समझ सके और इतने बड़े हत्यारे को इतनी आसानी से जाने दिया। आज हमारे नेता एक दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं कि हमने नहीं उन्होंने जाने दिया। लेकिन जो सबसे बड़ी बात है कि जिन्होंने एंडरसन को भारत से जाने दिया अब उनसे सवाल करना चाहिए। लेकिन अगर एंडरसन को भारत लाने की बात की जा रही है तो यह समझ से परे है। क्योंकि एंडरसन के खिलाफ जब 25 साल पहले कोई कार्रवाई नहीं की गई तो अब दिखावा करने से क्या फायदा।

हमारी सरकार गैस पीड़ितों को सिर्फ यह बताने की कोशिश कर रही है कि कुछ भी हो जाए हम तुम्हारे साथ हैं। लेकिन अब पीड़ितों को भी समझना होगा कि हमारे नेता हमें सिर्फ मूर्ख बना कर हमें बरगला रहे हैं। तो ये एंडरसन को अमेरिका से वापस बुला पाएंगे और ही लोगों को कोई आस लगाई चाहिए क्योंकि अब अमेरिका से एंडरसन को भारत लाना टेढ़ी खीर है। गैस पीड़ितों को अब सरकार से न्याय की मांग करनी चाहिए कि एंडरसन को भारत वापस बुलाने की।

Sunday, May 30, 2010

अब और नहीं देना चाहिए मौका

देश में अब एक बार फिर से नक्सिलयों ने खुली चुनौती दी है। पं. बंगाल के झारग्राम में जिस तरह से नक्सिलयों ने सुनियोजित तरीके से हावड़ा से मुंबई जा रही ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को निशाना बनाया यह पूरे देश के लिए शर्मनाक बात है।

अपने निजी स्वार्थ की खातिर नक्सली अब आम जनता को निशाना बना रहे हैं। कल तक विकास की मांग करने वाले नक्सली आम लोगों से जितना नजदीक थे आज वहीं पर आम जनता को नुकसान पहुंचाकर वे अपने स्वार्थों को पूरा करना चाहते हैं।

ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस हादसे में 145 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई जबकि उससे ज्यादा घायल हुए हैं। खैर नक्सलियों ने अपने प्लान को सही तरीके से अमली जामा पहना ही दिया लेकिन देश की सुरक्षा को नक्सलियों ने एक बार फिर से चुनौती दे दी।

इसके पहले बीजापुर में भी नक्सलियों ने नागरिक बस को निशाना बनाकर 40 लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया था। उस समय भी हमारे देश में सिर्फ सियासी रोटियां ही सेकीं गई। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल ही रहा था कि अब झारग्राम में नक्सलियों ने मौत का तांडव मचा दिया। इस हादसे के तीन दिन बीत चुके हैं लेकिन क्षतिग्रस्त बोगियों से आज भी लाशें निकल रही हैं।

सवाल अब नक्सलियों का नहीं है क्योंकि ये अब पूरी तरह से आतंकवादियों की राह पर चल पड़े हैं। ऐसे में अब राज्य सरकार और केन्द्र सरकार पर देश की आंखे जा टिकी हैं कि क्या इस बार भी नक्सलियों से निपटने का उपाय सिर्फ बयानों में ही रह जाएगा।

देश की जनता अब एक ही मांग कर रही है कि कल तक नक्सली हमारे देश के नागरिक हुआ करते थे लेकिन आज जिस तरह से वे खूंखार रास्ते पर निकल पड़े हैं और आम लोगों के खून से अपना हाथ रंग रहे हैं, ऐसे में इन्हें या तो निस्तेनाबूत कर दिया जाए या फिर सरकार इनकी मांगों के आगे पूरी तरह नतमस्तक हो जाए। अब इन्हें और मौका नहीं देना चाहिए क्योंकि अगर मौका दिया गया तो आज जिस तरह ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को तहस-नहस कर दिया उसी तरह कल कोई और ट्रेन इनके निशाने पर आ जाएगी।

Sunday, April 18, 2010

विवादास्पद अध्याय का समापन

संयुक्तराष्ट्र संघ के अध्यक्ष पद तक के लिए किस्मत आजमा चुके केरल के शशि थरूर ने भारतीय राजनीति में बड़ी आस लेकर उतरे थे। उन्होंने सोचा था कि वह अपने नए विचारों से भारतीय राजनीति की दिशा बदलने में कारगर भूमिका निभाएंगे लेकिन अपने सारे अरमानों पर उन्होंने खुद पानी फेर दिया।

राज्य विदेश मंत्री का ओहदा पाने के बाद से ही शशि थरूर के कदम बहकने लगे थे। उन्होंने न सिर्फ कई सारे विवादास्पद बयान दिए बल्कि अपनी पार्टी की छवि धूमिल करने में बड़ी भूमिका निभाई। थरूर ने सबसे ज्यादा विवादास्पद बयान ट्विटर पर दिया जिससे उन्हें बहुत पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिए था लेकिन आखिरकर आज वह दिन आ ही गया जब उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा।

ट्विटर पर कैटल क्लास को लेकर पूरे देश की आलोचना झेल चुके थरूर अब इस बार आईपीएल में नई टीम कोच्ची को लेकर ऐसे विवादों में फंसे कि विपक्ष का वार वह नहीं झेल पाए। आईपीएल में थरूर पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए अपनी सहयोगी सुनंदा पुष्कर को अच्छा-खासा शेयर दिलवाया। हालांकि इस मुद्दे पर थरूर ने अपने आपको पूरी तरह से पाकसाफ बताया लेकिन विपक्ष के कड़े तेवर और कांग्रेस आलाकमान के सामने थरूर अपना पक्ष ठीक तरह से नहीं रख सके।

कांग्रेस पार्टी थरूर के ट्विटर विवाद को किसी तरह से झेल ले गई लेकिन आईपीएल विवाद पर विपक्ष के उग्र मिजाज का सामना करने की हिम्मत पार्टी नहीं जुटा पाई। वैसे देखा जाए तो थरूर को बहुत पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि कांग्रेस पार्टी में इसी तरह से नटवर सिंह को भी इत्सीफा देना पड़ा, उन्हें ईरान में ऑयल डील विवाद पर पार्टी से रुख्सत होना पड़ा था।

कुछ इसी तरह से शशि थरूर के साथ हुआ हालांकि उन्हें किसी डील में फंसने की वजह से अपने पद से हाथ नहीं धोना पड़ा बल्कि उन पर लग रहे आरोपों में कहीं न कहीं सच्चाई को देखते हुए पार्टी अब नहीं चाहती की विपक्षी उनपर हावी हों। इस तरह से कांग्रेस पार्टी ने शशि थरूर का इस्तीफा मांगकर काफी दिनों से चले आ रहे विवादास्पद अध्याय को बंद कर दिया है।

Tuesday, March 16, 2010

करोड़ों का गिफ्ट, नहीं आया गरीबों का ख्याल

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने बड़ी ही धूमधाम से बीएसपी की 25वीं वर्षगांठ मनाई। इस अवसर पर एक महारैली का भी आयोजन किया गया था जिसमें दूर-दराज के लोग शिरकत करने आए थे। इन्हीं लोगों में कुछ ऐसे भी थे जो मायावती की सिर्फ एक झलक पाने के लिए आए थे।

अभी तक हमने देखा है कि लोग अपनी मुरादों को पूरा करने के लिए देवी-देवताओं के दर्शन करने जाते हैं। और कुछ तो ऐसे होते हैं जो घुटनों के बल, कुछ हांथ पर जलते हुए दिए लेकर.. कहने का मतलब कई तरह से अपनी मान्यताओं को पूरा करते हैं।

कुछ इसी तरह से हुआ माया की महारैली में भी। दलितों की देवी कही जाने वाली मायावती का सिर्फ एक दर्शन भर पाने के लिए एक इंसान इस रैली में घुटनों के बल रेंगता हुआ आ पहुंचा था। इसकी यही इच्छा थी कि वह अपनी देवी मायावती का दर्शन कर ले और उसने किया भी।

खैर यह बात तो हुई देवी के दर्शन की। अब बात आती है नोटों की देवी की अर्थात इस महारैली में बसपा कार्यकर्ताओं ने 20 मीटर लंबी नोटों की माला कुमारी बहन मायावती के गलों में सुशोभित किया। इस माला में एक-एक हजार के नोट लगे हुए थे। अनुमान लगाया गया कि इस माला में कई करोड़ के नोट का इस्तेमाल किया गया था।

धन्य हैं बहन मायावती, इतना बड़ा उपहार लेते वक्त उन्हें जरा भी झिझक महसूस नहीं हुआ। उन्हें यह भी खयाल नहीं आया कि मैनें तो एक बार मनगढ़ हादसे में पीड़ित परिवारों को मदद के नाम पर ठेंगा दिखा दिया था। उन्हें यह भी अहसास नहीं हुआ कि बरेली में कई परिवार घर के अंदर बंद रहकर घुटन महसूस कर रहे हैं।

खैर इस देवी को तो दौलत और लोगों के हुजूम के बीच महारैली का जुनून सवार था। इस जुनून के आगे उन्हें गरीब परिवारों का दुख जरा भी नहीं आया। यहां पर महारैली के नाम पर कई करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया गया लेकिन कोई यह पूछने वाला नहीं था कि उन्हीं के राज्य में कितने गरीब भूखे सो रहे हैं और यहां जश्न के नाम पर उड़ाने के लिए इतना पैसा कहां से आया।

इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि ऐसे नेता हमारे पालनहार बने हैं। हमारे देश की जनता भूखों मरना पसंद करेगी लेकिन ऐसे दैव्य स्वरूप नेता के खिलाफ आवाज उठाना इन्हें कतई बर्दास्त नहीं होगा।

Monday, March 15, 2010

महिलाओं को खुली हवा में सांस लेने दो

महिलओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाने के लिए सरकार 33 फीसदी महिला आरक्षण का नया कानून बनाने पर अमादा है। राज्यसभा में तो यह बिल ध्वनिमत से पास भी हो गया। लेकिन इस बिल के मौजूदा स्वरूप को लेकर विरोधी खेमें में हलचल भी है।

विरोधी खेमा चाहता है कि बिल में पिछड़ी और मुस्लिम महिलाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। इस बात को लेकर अब वे बिल में सिर्फ संशोधन चाहते हैं बल्कि 33 फीसदी बिल में एक अलग से कोटा बनाकर इन महिलाओं को जगह देने की मांग भी कर रहे हैं।

महिलाओं को आरक्षण मिलना भी चाहिए। आखिरकार आज के समय में वे हर काम कर रही हैं जो पुरुष कर रहे हैं। उन्हें और आगे बढ़ाने के लिए..उनके अंदर की दबी शक्ति को बाहर निकालने के लिए..राजनीतिक क्षेत्र में सहभागिता करने के लिए बिल का होना तो जरूरी हो गया था। इससे सिर्फ महिलाओं को हौसला मिलेगा बल्कि अब बड़ी संख्या में महिलाएं गांवों से भी निकलकर सामाजिक दायित्वों में सहभागिता करेंगी।

वैसे आज के समय को देखा जाए तो भी हमारे देश की महिला राष्ट्रपति महिला, किसी पार्टी (कांग्रेस) की अध्यक्ष महिला, रेल मंत्री महिला, लोकसभा स्पीकर महिला, लोकसभा में विपक्ष की नेता महिला, यूपी की मुख्यमंत्री महिला का डंका बज रहा है। ऐसे में बिल के जाने पर तो अब महिलाओं को और ज्यादा प्रोत्साहन और एक नई शक्ति मिलेगी।

इतनी शक्ति..इतना फायदा की बात तो हम कर रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ कुछ महिला वर्ग को उनकी हदें समझाई जा रही हैं। यह बात किसी और वर्ग की नहीं बल्कि मुसलमान महिलाओं के लिए हैं। इनके घर के मालिकों को अब यह डर सता रहा है कि आरक्षण का अधिकार मिल जाने पर हम तो घर में कैद हो जाएंगे, हमारे घर की महिलाएं हमसे कहीं आगे निकल जाएंगी।

इसी डर को देखते हुए पहले भी कई बार मुस्लिम महिलाओं को उनके बाहर निकलने, समाज में सक्रिय योगदान पर फतवा तक लगा दिया गया है। दूसरी तरफ महिलाओं को जंजीरों में बांधने के लिए शिया धर्म गुरू कल्‍बे जव्‍वाद ने तो यह तक कह डाला इस्लाम में महिलाओं को सिर्फ अच्छे नस्ल के बच्चा पैदा करने को कहा गया है। घर की चाहरदीवारी के अंदर रहकर उन्हें सिर्फ परिवार की देखभाल का अधिकार हैं। राजनीति और घर के बाहर का हर काम पुरुषों को ही करने का हक है।

आरक्षण पर बिलखते हुए उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े मदरसे नदवा-उल-उलेमा के प्रमुख मौलाना सर्रदुर रहमान आजमी नदवी ने तो मुस्लिम महिलाओं को कड़ी ताकीद दे डाले हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति करना सिर्फ पुरुषों का काम हैं, इस्लाम में महिलाओं को लोगों के बीच आकर किसी बात को कहने की सख्त मनाही है। मुस्लिम महिलाओं के लिए इस्लाम में सिर्फ घर की देखभाल करने को कहा गया है। नदवी साहब ने तो यहां तक कह डाला कि अगर मुस्लिम महिलाओं को राजनीति और सामाजिक कार्य करना है तो वे मर्द बन जाएं।

इन मौलवियों की ऐसी घटिया बयानबाजी सुनकर तो यही लगता है कि ये लोग अभी भी पुरानी और रूढीवादी विचारधारों पर जिंदा हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान को भी देखकर इन्हें शर्म नहीं आती कि यहां पर महिलाओं को किस तरह से अधिकार दिए गए हैं। बड़े से बड़ा पद भी यहां की महिलाओं ने संभालकर दुनिया को दिखा दिया की वे हम बुर्का जरूर पहनती हैं लेकिन हम किसी मर्द से कम नहीं हैं। ऐसे में हमारे यहां मुस्लिम महिलाओं के पैरों में जंजीर बांधना कितना सही है। कब तक ये महिलाएं बुर्का और बच्चा पैदा करने की मशीन बनी रहेंगी। दुनिया कहां से कहां जा रही है लेकिन हमारे मौलाना भाई अपनी वही घिसीपिटी और पुराने समाजिकता की दुहाई देते रहते हैं।

मौलवी साहब महिलाओं को खुली हवा में सांस लेने दो, उनके पैरों को मत बांधों। हर महिला की तरह इन्हें भी समाज और देश के विकास में हिस्सा लेने दो। पुरानी विचारधारा से निकलकर देश-दुनिया में क्या हो रहा है देखो। देश में स्वतंत्रा का अधिकार है, हर किसी को रहने खाने, नौकरी करने, कहीं भी आने जाने का अधिकार पहले से ही हैं। ऐसे में महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी करके उन्हें कैद करने की कोशिश भविष्य में हमारे लिए घातक साबित हो सकती है।

Saturday, March 13, 2010

IPL-3 दर्शकों को चाहिए सेक्सी शॉट्स

मुंबई. आईपीएल सीजन तीन का पहला मैच, हर साल की तरह इस बार भी खूब ताम झाम के साथ शुरु हुआ। विदेशी सिंगर, बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का रोमांटिक डांस और मैदान पर चीयर लीडर्स का जलवा। पूरे स्टेडियम में दर्शकों के हो हल्ले के बीच कोलकता नाईट राइडर्स और डेक्कन चार्जर्स में खेला गया पहला मैच काफी रोमांचक और दिलचस्प रहा।

टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने उतरी कोलकता की टीम का शुरुआती प्रदर्शन तो कुछ खास नहीं था लेकिन जैसे ही श्रीलंका के खिलाड़ी मैथ्यूज और इंग्लैंड के ओवेश शाह ने अपनी टीम का स्कोर बढ़ाना चालू किया तो दर्शकों में अलग ही रोमांच शुरु हो गया। ऐसा रोमांस और ऐसी डिमांड तो मैने आज तक नहीं देखी थी।

अभी तक स्टेडियम में बैठे दर्शक अपने प्रिय खिलाड़ियों से चौके-छक्कों, शतक, हाफ सेंचुरी, वेलडन जैसे तमाम पोस्टर लहराकर अपनी मांग रखते हैं लेकिन कल के मैच में दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों से कुछ अलग ही डिमांड की। हालांकि यह डिमांड मेरी समझ से परे हैं। मैथ्यूज और शाह जब क्रीज पर थे उस समय दर्शक उनसे सेक्सी शॉट्स लगाने की मांग कर रहे थे।

सेक्सी शॉट्स की मांग तो दर्शकों ने कर दी लेकिन रात भर मैं यह सोचता रहा कि आखिर यह सेक्सी शॉट्स होती कैसी है। यह किस तरह से खिलाड़ी खेलता है। लेकिन यह मैं सिर्फ सोचता ही रहा, पूरी तरह से अनुमान नही लगा पाया कि यह शॉट्स कैसा होता है।

दूसरे दिन ऑफिस आकर एक दोस्त ने इस सेक्सी शॉट्स की बारीकियों को बताया। उसने बताया कि एक ऐसा शॉट्स जिसपर चीयर लीडर्स झूमने और नाचने लगें।

Tuesday, March 9, 2010

महिलाओं की जय हो...

कुछ लोगों के विरोध के बावजूद राज्यसभा में ध्वनिमत से महिला आरक्षण बिल पास हो गया। बिल पास होते ही भारत में महिलाओं को और आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया।

मुलायम-लालू और शरदयादव के उग्र विरोध के बाद भी राज्यसभा में भारी बहुमत के साथ सिर्फ बिल पास हो गया बल्कि विपक्षी दल बीजेपी ने महिलाओं को बधाई भी दी।

बिल पास होने के साथ ही पूरे भारत में जश्न का माहौल छा गया है और इसी के साथ ही आज का दिन इतिहास में दर्ज हो गया है। अब महिलाओं को सिर्फ पुरुषों के बराबर चलने का हक मिल गया है बल्कि राजनीति में भी वे बढ़चढ़कर हिस्सा ले सकेंगी।

आजाद हिंदुस्तान की यह सबसे बड़ी जीत है जिसमें महिलाओं को इतना बड़ा सम्मान मिला है। प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के प्रयासों की आज जीत हो गई है। हालांकि उनके शासन काल में ऐसा नहीं हो सका लेकिन भाजपा शासन काल में भी महिला बिल पारित कराने की पुरजोर कोशिश की गई और अंततः कांग्रेस शासन में आज वह दिन गया जब महिलाओं का कद और ऊंचा हो गया है।
पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण तो दिया जा चुका है लेकिन अब राजनितिक रणक्षेत्र में भी महिलाएं पुरुषों की बराबरी करती हुई नजर आएंगी।

महिला बिल पास कराने में देश को शर्मसार भी होना पड़ा। यहां राज्यसभा में मुलायम और लालू यादव के सात सांसदों ने ऐसा कारनामा किया जिससे सिर्फ देश के दामन पर दाग लगा बल्कि इनकी घटिया हरकतों को पूरे विश्व ने देखा। इन सांसदों ने उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर बिल का विरोध करते हुए उनके उपर पर्चियां तक फाड़ी थी।

फिलहाल आज का दिन भारत और यहां की महिलाओं के लिए किसी दीवाली के त्योहार से कम नहीं है। हर तरफ जश्न और नगाड़ों की आवाज से उत्साह और दुगुना हो गया है।

Sunday, March 7, 2010

धर्म की आड़ में ये क्या हो रहा है

देश में मौजूदा समय में चल रहे ढोंगी बाबाओं के मायाजाल से पूरे संत समाज पर बदनुमा दाग लग गया है। धर्म की आड़ में ये बाबा लोगों को सिर्फ पैसा कमाने का साधन बना रखा है बल्कि उनका शोषण भी शुरु कर दिया है। देश मे एक के बाद एक बाबाओं की काली करतूतों का जिस तरह से पर्दाफाश हुआ उसे देखकर लोगों में संत समाज से विश्वास उठता जा रहा है।

धर्म के नाम पर अश्लीलता करने वाले इच्छाधारी बाबाओं के खिलाफ हालांकि प्रशासन के रूख कुछ कड़े हो गए हैं लेकिन इतना भर कर देने से क्या लोगों को अब धर्म के नाम पर बरगलाया नहीं जाएगा। जिस तरह से प्रतापगढ़ में कृपालु महाराज के आश्रम में खाने के नाम पर मौत बांटी गई उसे देखकर यही लगता है कि आज यदि देश में इतनी गरीबी होती तो क्या आश्रम में बड़ी संख्या में लोग बर्तन और खाना लेने गए होते।

आश्रम में 63 लोग मौत के गाल में समा गए लेकिन कृपालु महाराज ने कहा हमने कुछ नहीं किया यह सब प्रभू का किया धरा है। अब बताओ किसी भी संत-महात्मा को किसने यह अधिकार दिया कि लोगों की जान के साथ पैसा और बर्तन बांटकर खिलवाड़ करें।

इसके पहले दिल्ली में पकड़े गए इच्छाधारी बाबा और केरल के नित्यानंद स्वामी ने तो सारी हदें पार कर दी। ये बाबा धर्म की चादर ओढ़कर अश्लीलता करते हुए पकड़े गए। इच्छाधारी बाबा पर पुलिस ने मकोका लगा दिया तो नित्यानंद अपने किए पर सफाई दे रहे हैं। इसके भी पहले संत आसाराम बापू के आश्रम में तंत्र-मंत्र करने का भंड़ाफूट चुका है। इनके आश्रम में चार मासूम बच्चों के शव बरामद हुआ तो दूसरी तरफ इन पर हत्या का मामला भी दर्ज हुआ।

इन सभी घटनाओं के बाद यही लगता है कि देश में जहां पर एक बड़ा वर्ग गरीबी का दंश झेल रहा है वहीं पर ऐसे ढोंगी बाबाओं का इन पर कहर कब तक जारी रहेगा। भोली-भाली जनता कब तक इन बाबाओं के मकड़जाल में फंसते रहेंगे। जब तक हमारा प्रशासन इनके खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाएगी तब तक ऐसे बाबाओं की काली करतूतें सामने आती ही रहेंगी।

Friday, March 5, 2010

कलयुगी बाबाओं पर भगवान का कहर

विशेषः क्या भगवान अपने भोले-भाले भक्तो को बाबाओं और स्वामियों से दूर रहने का संकेत दे रहे हैं। हमारे देश में लोगों की धर्म पर अथाह आस्था है या यह कह सकते हैं कि धार्मिकता हमारी पहचान है।

शायद हमारे सीधे-साधे लोगों की इसी असीम भक्ती को बाबाओं और स्वामियों ने समझा और फैला दिया भक्ति के नाम पर मायाजाल। लेकिन अब लगता है कि भगवान के नाम पर लोगों को पाठ पढ़ाकर अपना सम्राज्य स्थापित करने वाले इन्हीं बाबाओं पर भगवान की नजर टेढ़ी हो गई है।

हाल ही में रह रहकर ऐसी घटनाएं घट रही हैं जिनसे यह प्रतीत होता है कि स्वयं भगवान अब लोगों को स्वामियों से दूर रहने की हिदायत देना चाहते हैं। जब हम भगवान में भक्ती रखते हैं तो हमें यह भी समझना होगा की जो हो रहा है उसके पीछे कोई कोई कारण जरूर छिपा है।

आज उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में संत कृपालु महाराज के आश्रम में जिस तरह से गरीबों की मौत का ताड़व हुआ उसको देखकर तो यही लगता है कि साधू-संतों पर गृह-नक्षत्र जरा भी मेहरबान नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश में कृपालू जी महाराज के आश्रम में मौत का खेल

कृपालु महाराज के आश्रम में उनकी पत्नी की बरसी आयोजन किया जा रहा था जिसमें बड़ी संख्या में गरीब लोग खाना खाने के लिए आए हुए थे लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि मौत की भूख उन्हें बुला रही है। इतना बड़ा आयोजन करने वाले कृपालु महाराज के आश्रम में सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर सब शून्य था। उनके अपने सुरक्षाकर्मी ही यहां पर थे जबकि भीड़ हजारों की संख्या में थी लेकिन भगदड़ मचने पर गरीब लोगों की भूख अंदर ही रह गई।

ढोंगी बाबा का सेक्स रैकेट

दिल्ली के इच्छादारी बाबा के सेक्स रैकेट ने धर्म के नाम पर ऐसे गोरखधंधे का पर्दाफाश किया जिससे किसी धार्मिक भक्त की भावनाएं आहत हो जाएं। इस बाबा का नाम इच्छाधारी बाबा उर्फ स्वामी भीमानंद है। दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में आए इच्छाधारी संत स्वामी भीमानंद जी महाराज का सैक्स रैकेट का जाल सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में ही नहीं बल्कि भारत के कई राज्यों में फैला हुआ था। दिन में भगवा चोला पहनने वाला यह स्वामी रात को चोला त्याग कर जींस, टी-शर्ट पहन लेता और प्रवचन छोड़ सेक्स के धंधे में लग जाता। संत के रैकेट में 500 लड़कियां है जो इसके माध्यम से सेक्स के धंधे में लिप्त पाई गई।

दक्षिण के बाबा का सेक्स वीडियो

बुधवार को तमिलनाडु के प्रसिद्ध स्वामी परंमहंस का एक सिने अभिनेत्री के साथ वीडियो प्रसारित हुआ। कनार्टक के स्वामी परमहंस नित्यानंद की अश्लील सीडी एक चैनल पर क्या आई, पूरे दक्षिण भारत में बवाल खड़ा हो गया। कनार्टक पुलिस ने नित्यानंद के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। वहीं, नित्यानंद ने अदालत में एक याचिका दायर कर सीडी के प्रसारण पर रोक लगाने की मांग की है।

डेरा सच्चा सौद के अनुयायियों का गुण्डाराज

बाबा राम रहीम के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज होने के बाद उनके अनुयायी हिंसा पर उतारु हो गए और समस्त पंजाब और हरयाणा में उन्होंने हिंसा फैलाकर सरकारी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया। सवाल खड़ा होता है कि शांति और सच का संदेश सुनाने वाले अनुयायी हिंसा पर उतारु कैसे हो गए। या उनकी भक्ती झूठी थी या बाबा का ज्ञान।

प्रसिद्ध गुरू आसारामजी बापू के खिलाफ भी कई मामले

आध्यात्मिक गुरू आसारामजी बापू पर भी तमाम तरह के आरोप लगते रहे है। ऐसे संकेत देकर क्या भगवान लोगों को आगाह करना चाहते है कि अब बहुत हुई मेरे नाम पर धोखाधड़ी, बंद करो यह नौटंकी।

एक बाबा की सेक्स सीडी, दूसरे का सेक्स रैकेट, अन्य पर हत्या का आरोप और अब स्वामी के मंदिर में हादसा। वैसे तो होनी को कोई नही टाल सकता, लेकिन इन सब घटनाओं का एक के बाद एक होना शायद दर्शाता है कि बाबाओं पर ग्रह-नक्षत्र भारी है।

यौनशोषण के आरोपी लाल सांई ने किया सरेंडर

मध्य प्रदेश में संत लाल सांईं ने लोगों के दिलों में अच्छी खासी जगह बना रखी थी। ये सिंधियों के आत्यात्मिक गुरू थे। लेकिन संत लाल सांई पर 18 अक्टूबर 2008 को उन पर पर बीई की एक छात्रा ने यौनशोषण का आरोप लगाया था, जिसके बाद से ही वह फरार थे। सीआईडी को भी लाल सांई की तलाश थी वहीं कोर्ट ने जल्दी ही लाल सांई को गिरफ्तार करने के आदेश दिए थे।