Sunday, August 15, 2010

क्या अब भी हम आजादी महसूस करते हैं?

आज हम 64वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं लेकिन क्या पता है हम कैसी आजादी में जी रहे हैं। यह शायद सबको पता होगा। देश में आज जो कुछ हो रहा है उसे देखकर जरा भी नहीं लगता कि हम आजाद देश के नागरिक हैं। न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका हर जगह मौजूदा समय में जो हालात देखे जा रहे हैं वह शायद पहले कभी रही होगी। न तो समय पर लोगों को न्याय मिल पा रहा है न ही कोई अधिकारी अपने कर्तव्यों का सही से निर्वहन करता दिख रहा है। रही बात हमारे नेताओं की तो उनकी बात भी करनी बेकार है।

हमारे नेता जिस तरह से सदन में गाली-गलौज करते हुए दिखते हैं वह हमारे लिए सबसे शर्मनाक है। हम कितनी आशाओं के साथ इन्हें अपना प्रतिनिधी चुनते हैं लेकिन सदन के अंदर जाते ही ये लोग जिस तरह का व्यवहार करते हुए दिखते हैं उससे हम क्या कल्पना कर सकते हैं कि अभी भी हमारे यहां पर कहीं न कहीं अशिक्षा की कमी है। हम उसी गुलामी वाले माहौल में जी रहे हैं।

दुनिया हमें सबसे विकसित देश के रूप में देख रही है लेकिन क्या हम उस रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं नहीं.। क्योंकि इसका एक उदाहरण अभी हाल ही में हमारे सामने आया। वह है कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए हो रहे काम में। पचासों देश और लाखों लोग हमारे मेहमान बनेंगे लेकिन उनके सामने अभी से जिस तरह का करप्शन नाम की आग उठी है वह हमें कितने पीछे ले जाएगी यह तो भविष्य ही बताएगा।

हम आज आजादी की बात करते हैं लेकिन महंगाई के ऐसे दौर से हम गुजर रहे हैं उससे न सिर्फ गरीब बल्कि अच्छे-भले मानुष भी झुलस रहे हैं। हर दिन पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ रहे हैं। सरकार घाटा बताकर इजाफा कर देती है। हम मंहगाई, करप्शन की जंजीरों में पूरी तरह से जकड़े हुए हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में गरीबों का पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है क्या कभी किसी ने यह भी सोचा कि जो गरीब हैं वो और गरीब हो जाएंगे। लेकिन गरीब से किसी का कोई लेना देना नहीं क्योंकि हमारे नेता तो अच्छे घरों में रहते हैं, अच्छा खाना खाते हैं, उन्हें गरीब के दुख: दर्द से क्या लेना देना।

हम विकास की बात करते हैं, आतंकवाद, करप्शन पर काबू पाने की बात करते हैं लेकिन जो यह बात करते हैं वही सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं। हमारी सुरक्षा को जिस तरह से ठेंगा दिखाया जा रहा है वह किसी भी गुलामी दौर से कम नहीं है। ट्रेन और हवाई जहाज में यात्रा करने से पहले आज हर इंसान डरता रहता है कि कहीं प्लेन क्रैस न हो जाए, कहीं ट्रेन नक्सलियों का निशाना न बन जाए। आज हम डर के शिकंजे में जी रहे हैं। पता नहीं कब और कहां पर आतंकवादी विस्फोट कर बैठें यह किसी को पता नहीं। हम बात करते हैं आजादी की, ऐसी आजादी किस काम की हर वक्त हम डर के आगोश में जिंदा रहें। घर से तो निकलते हैं लेकिन वापस आएंगे या नहीं यह कोई गारंटी नहीं।

आज भी हम अंग्रेजों के शासन काल में जी रहे हैं लेकिन उस समय एक चीज बढ़िया थी कि इतना करप्शन नहीं था। उस समय क्राइम पर सख्त सजा दी जाती थी लेकिन आज की बात हम करें तो कितना बड़ा अपराधी ही क्यों न हो उसे सजा तो क्या वह जेल में भी बंद होता है तो उसके लिए वीआईपी व्यवस्था होती है। कोर्ट में क्रिमिनल के खिलाफ केस चले तो वह जमानत पर फिर क्राइम करने के लिए छोड़ दिया जाता है। क्रिमिनल पर जुर्म साबित करने के लिए कई साल लग जाते हैं। ऐसी आजादी से तो अग्रेंजों का ही शासन ठीक था कम से कम इतना करप्शन और इतना क्राइम तो नहीं था।

कोई भी काम हो बिना पैसा दिए वह पूरा नहीं हो सकता। गरीब सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते भगवान को प्यारा हो जाता है लेकिन उसे न्याय नहीं मिल पाता। ऐसी आजादी में जी रहे हैं हम। कोर्ट की बात की जाए तो हम देखते हैं ३क्-३क् साल से केस चल रहे हैं लेकिन आज तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। इस बीच न्याय की चाह रखने वाला भले ही ऊपर चला गया हो।

हमने पिछले दिनों देखा ट्रैफिक पुलिस गाड़ी चेकिंग कर रहे थे, ये लोग खासकर स्कूली लड़कों को रोक रहे थे, उनसे गाड़ी का सारा कागजात मांग रहे थे। मैं बगल में खड़ा देख रहा था। पुलिस कागजात न रहने पर एक रसीद काटते थे खैर यह तो लीगल काम था लेकिन बगल में ही एक पुलिस दबे हाथों कुछ पैसे लेकर लोगों को जाने दे रहा था। मुझे यह देखकर काफी गुस्सा आया लेकिन उस समय मैं कुछ बोल न सका।

हर जगह करप्शन है, इस गुलामी से अब शायद ही आजादी मिल सके क्योंकि मैं यह भी देख रहा हूं कि बड़े-बड़े अधिकारी, नेता, मंत्री के यहां पर सीबीआई छापे मारती है और यहां पर करोड़ो रुपए बरामद होते हैं। अब जब यही लोग खा-खा के मोटे हो रहे हैं तो हमारे लिए तो यह आजादी नहीं हो सकती। आजाद तो हम तब होते जब ऊपर से नीचे तक सभी लोग बेदाग होकर काम करते।

2 comments:

  1. क्या बात है ! बहुत खूब !

    अंग्रेजों से हासिल मुक्ति-पर्व मुबारक हो !
    समय हो तो अवश्य पढ़ें :

    आज शहीदों ने तुमको अहले वतन ललकारा : अज़ीमउल्लाह ख़ान जिन्होंने पहला झंडा गीत लिखा http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_14.html

    शहरोज़

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  2. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    सादर

    समीर लाल

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