Monday, November 15, 2010

गेंदबाजी भूल बल्लेबाजी में निखर गए भज्जी!

न्यूजीलैंड के खिलाफ जिस तरह से हरभजन सिंह ने बल्लेबाजी की उसे देखकर तो यही लगता है जैसे अब भज्जी अपना स्टाइल बदलना चाहते हों। अहमदाबाद में पहला शतक और अब हैदराबाद में 111 रन की नाबाद पारी खेलकर हरभजन शायद यही जताना चाहते हैं कि उनकी गेंदबाजी में अब भले ही वह धार न रही हो लेकिन बल्लेबाजी में वे विपक्षी टीम को धूल चटा सकते हैं।

आज हैदराबाद टेस्ट के चौथे दिन हरभजन सिंह ने गेंदबाजी तो की लेकिन उनकी गेंद को किवी बल्लेबाजों ने जमकर प्रहार किया। टीम इंडिया के पहली पारी में लीड लेने के बाद दूसरी पारी की शुरुआत करने जब किवी बल्लेबाजी करने उतरे तो यही लग रहा था कि भज्जी शानदार बल्लेबाजी के साथ अब गेंदबाजी में भी जलवा दिखाएंगे। लेकिन लोगों का यह मानना बिल्कुल गलत साबित हुआ।
दूसरी पारी के चौथे दिन के खेल खत्म होने तक न्यूजीलैंड ने चार विकेट पर 237 रन बनाए। जिसमें से प्रज्ञान ओझा को दो विकेट, श्रीसंथ को एक विकेट और सुरैश रैना को एक विकेट मिला। लेकिन भज्जी के खाते में एक भी विकेट नहीं जा पाया।

भाई किसी को लगता हो या न लगता हो लेकिन मेरा जहां तक मानना है भज्जी का मूड चेंज होता दिखाई दे रहा है। तभी तो जिस आक्रामक रवैये के साथ हर गेंद को बाउंड्री के बाहर पहुंचा रहे थे, उसे देखकर तो यही लग रहा था जैसे अब भज्जी ने दूसरी राह पकड़ ली हो। वो टीम इंडिया को यह शायद दिखाना चाहते हैं कि अब उन्हें वन डाउन या फिर टो डाउन पर उतारा जाए।

भज्जी ने जिस अंदाज में खेला वह वाकई में एक चमत्कार था। आंखों को विश्वास नहीं हो रहा था कि क्रीज पर भज्जी बल्लेबाजी कर रहे हैं। ऐसा लग रहा था जैसे सहवाग या सचिन चौका छक्का जमा रहे हों। खैर कोई बात नहीं भज्जी जी अगर आप अपना ट्रेंड चेंज करके ऐसे ही चौके-छक्के की बारिश करते रहेंगे तो आप वन डाउन पर जरूर आ जाएंगे।

Tuesday, November 9, 2010

कथनी-करनी में बहुत अंतर होता है ओबामा जी!

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का भारत दौरा काफी सफल रहा। पूरा देश ओबामा के बेबाक अंदाज का गुणगान कर रहा है। हम जो चाह रहे थे वह ओबामा ने आखिरकार बोल ही दिया। हमें ढेर सारे आश्वासन भी मिले।

लेकिन अब देखना यह होगा कि ओबामा ने जो कहा है वह कितना सही होता है। क्या भारत में ओबामा कोई चाल के तहत भारतीयों को आश्वासन दे रहे थे या फिर वास्तव में वे भारत के साथ दोस्ती गांठना चाहते हैं। यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

वैसे ओबामा और उनकी पत्नी का अंदाज देखकर तो यही लगा कि उन्हें यहां पर काफी मजा आया और वे भारत से जो चाहते थे उन्हें वो सबकुछ मिला भी। भारत से भारी-भरकम बिजनेस तो ओबामा ले गए साथ ही वे हमें कई सारे लालच भी दे गए हैं।

ओबामा के भारत दौरे के पहले दिन भारत यही चाहता था कि उसके पड़ोसी देश पाकिस्तान के लिए ओबामा कुछ बोलें लेकिन उस समय उन्होंने बड़ी चतुराई दिखाई और साफ-सुथरे निकल गए। ऐसे में वे जब दिल्ली पहुंचे तो उस समय हमारे नेताओं के हाल खराब थे कि ओबामा क्या वाकई में दो नाव की सवारी करना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने संसद को संबोधित करते हुए वो सब कुछ बोला जो हम चाहते थे।

ओबामा ने पाकिस्तान को मुंबई हमले के गुनहगारों को न सिर्फ सजा देने को कहा, बल्कि उसकी सरजमी पर फैले आतंकवादी कैंपों को भी जड़ से खत्म करने का भी संदेश दिया। हालांकि ओबामा ने यह भी कहा कि पाकिस्तान उनके लिए अहम है और भारत के लिए भी। खैर हम यही चाहते थे कि ओबामा पाकिस्तान को दो-टूक कहे कि वह अपने यहां से आतंकवादियों की सप्लाई बंद करे।

अब देखना है ओबामा की कथनी पर पाकिस्तान का रुख क्या होता है। क्या ओबामा के कहने पर पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ थोड़ा सख्त रुख अपनाएगा। या फिर वही कर रहे हैं, हो रहा है, कर देंगे वाला पुराना राग अलापेगा। ओबामा जी आप अपनी बात पर थोड़ा अडिग रहेंगे तो अच्छा होगा नहीं तो हम थोड़ा चिल्लाएंगे, थोड़ा हताश होंगे बस। कुछ कर तो पाएंगे नहीं।

Sunday, November 7, 2010

प्रोटोकॉल तोड़ ओबामा की अगुवाई में पहुंचे पीएम!

दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रपति बराक ओबाम तीन दिन के दौरे पर भारत आए। ओबामा के साथ-साथ वहां का पूरा लाव-लश्कर भी आया। हालांकि ओबामा भारत दौरे को काफी अहम मान रहे हैं, भारत भी अमेरिका से कुछ पाने की आस लगाए हुए है। लेकिन सबसे मजेदार बात यह है कि अमेरिका ने भारत में भी आकर दादागिरी दिखा दी।

जिस तरह से अमेरिका पूरी दुनिया के सामने अपनी दादागिरी का परिचय देता है ठीक उसी तरह से ओबामा ने भारत में कुछ इसी अंदाज का परिचय दिया। हालांकि यह अंदाज काफी गोपनीय रहा। अमेरिका ने ओबामा के भारत दौरे के पहले ही यहां पर अपनी सेना, अपने वाहन और न जाने क्या-क्या उपकरण भेज दिये थे।

इससे तो एक बात साबित हो गई कि अमेरिका को न तो हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर विश्वास है और यहां के लोगों पर। क्योंकि अमेरिकी अधिकारी मुंबई में जिस तरह से महाराष्ट्र मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण से उनका जन्मतिथी प्रमाण पत्र और कुछ कागजात की डिमांड की वह हमें चुल्लू भर पानी में डूबने के लिए काफी है।

इससे तो यही लगता है कि जिस तरह से अमेरिकी सरजमी पर हमारे नेताओं के कपड़े उतरवाकर चेकिंग की जाती है, उसी तर्ज पर भारत में भी अमेरिकियों ने हमें ही नंगा किया। लेकिन इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हमें तो अमेरिका की रहनुमाई की सख्त जरूरत है। अमेरिकी हमें कितना भी अपमानित करें, हमें कोई एतराज नहीं।

अब हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को ही देख लीजिए। किसी देश में ऐसा नहीं होता कि वहां का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री किसी मेहमान की आगवानी करने जाए। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री ने तो सारे प्रोटोकॉल तोड़ते हुए इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर जा पहुंचे।

वैसे ओबामा का भारत दौरा अमेरिका में बढ़ रही बेरोजगारी को दूर करने को लेकर ज्यादा ही लग रहा है। क्योंकि उन्होंने भारतीय उद्योगपतियों से जिस अंदाज में कहा कि आप हमारे यहां पर आए और अपना बिजनेस डेवलपमेंट करें। अब बताओ भारत में क्या कम बेरोजगारी है, हमारे बिजनेसमैन यहां पर अपना कारोबार नहीं लगा सकते लेकिन यह तो यह लोग कर नहीं सकते।

Thursday, November 4, 2010

हर दिन हम क्यों नहीं मनाते दिवाली

दिपावली आते ही हम घरों की, ऑफिसों की साफ-साफ, रंगाई-पुताई करने में पूरी तरह से व्यस्त हो जाते हैं लेकिन हमने क्या कभी सोचा है कि साल के 12 महीने को दिवाली समझ कर साफ-सफाई पर ध्यान दें तो हमारे और पर्यावरण के लिए कितना लाभदायक होगा।

लेकिन ऐसा हम तो कर ही नहीं सकते क्योंकि यह हमारे आन-बान-शान के खिलाफ है। पर्यावरण गया तेल लेने हम तो दिवाली पर ही घरों को साफ रखेंगे। हां बाकी दिन हम कचरें में व्यतीत कर लेंगे क्योंकि हमें आसपास कचरा काफी अच्छा लगता है।

कचरा और साफ सफाई दोनों अलग-अलग चीज है। ये दोनों चीजें अपनी-अपनी जगह पर शोभा बढ़ाती हैं। हालांकि साफ-सफाई से साल में एक बार घर की शोभा बढ़ती है लेकिन कचरे से तो हमारा पुराना ताल्लुकात है। यह प्रतिदिन चार-चांद लगाती है। हम तो चाहते हैं कि दिवाली पर यह साफ-सफाई की प्रथा ही खत्म कर देनी चाहिए, फालतू की मेहनत होती है।

हम तो ऐसे ही ठीक हैं। जो शुकून और शांति कचरे में मिलती है वह शायद कहीं नहीं मिलती। साफ-सफाई सिर्फ टेंशन देते हैं, एक दिन एनर्जी उपर से खत्म हो जाती है। दीवाली आते ही पता नहीं क्यों लोग एकाएक जाग जाते हैं और दनादन साफ-सफाई, रंगाई-पुताई में जुट जाते हैं चाहे भले ही साल भर ढंग से नहाया न हो लेकिन उस दिन घर को सजाएंगे जरूर।

रोड पर चलते, ऑफिस में बैठे कचरे में पिच-पिच करने, रेलवे स्टेशन पर डस्टबिन में कचरा न फेंककर प्लेटफॉर्म पर ही गंदगी कर देना। यह सम हमारी परंपरा है और हम इसके खिलाफ नहीं जा सकते, कोई कुछ भी कहे। रही एक दिन की बात तो भले ही साफ-सफाई कर दी जाती है लेकिन भाई यह रोज-रोज नहीं हो सकता। इतनी एनर्जी हममें नहीं है।

ऐसे हम भारतीय। जहां खाते हैं वहीं फेंकते हैं। कचरे का डिब्बा बगल में रहता लेकिन हम उसका उपयोग नहीं करते। आखिर कब तक ऐसा चलेगा। हमें तो हर दिन दिवाली मनानी चाहिए। साफ-सफाई पर ध्यान अगर हम दें तो न पर्यावण ठीक रहेगा बल्कि हम भी निरोग और पूरी तरह से स्वस्थ्य रहेंगे।

Monday, November 1, 2010

कंगारुओं को अब तो भगवान ही बचाएं!

वनडे हो या फिर टेस्ट मैच सभी में सामने वाले को धूल चटाने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम का अब वो जलवा नहीं रहा। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले तो भारत से बुरी तरह से मात खाने के बाद अब श्रीलंका ने भी उन्हें धूल चटा दी।

क्रिकेट प्रेमियों को अब यकीन हो गया है कि कंगारू जो मैच को किसी भी समय पलटने का मद्दा रखते थे वे आज एकदम हतास और असहाय से हो गए हैं। अब लगता है कि उनमें वो जोश और जज्बा नहीं रहा जो पहले देखा जा रहा था। ऑस्ट्रेलियाई टीम ने सबसे ज्यादा विश्वकप जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से कंगारुओं का शिकार हो रहा है उसे देखते हुए तो यही लगता है कि समय बदल गया है।

टेस्ट और वनडे मैच में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को पानी पिलाते हुए यह दिखा दिया कि आने वाले समय के चैंपियन हम हैं। लेकिन श्रीलंका ने भी आज जिस तरह से कंगारुओं को औकात दिखाई है, उसकी भी दावेदारी भी मजबूत बन गई है। वह चाहे आने वाला वर्ल्डकप जीतने की दावेदारी हो या फिर वनडे और टेस्ट की रैकिंग का।

हर जगह अब ऑस्ट्रेलियाई शेरों का हौसला खत्म होते दिख रहा है। भारत, द. अफ्रीका, श्रीलंका जैसी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को कड़ी टक्कर देने की होड़ में लग गई हैं। अब तो कंगारुओं को भगवान ही बचाएं।