Thursday, October 2, 2014

एक दिन के इस अभियान से कुछ नहीं हो सकता मोदी जी...!!!

प्रधानमंत्री जी ने सफाई अभियान की शुरुआत तो जोर शोर से कर दी। अखबार से लेकर टीवी चैनलों तक में आज सफाई अभियान को लेकर भयंकर विज्ञापन देखने को मिले...। आज खबरें कम, सफाई पर रंग-बिरंगे विज्ञापन को देखकर दिमाग भन्ना गया। बाहर निकलने पर भी हर जगह सफाई के बारे में चर्चाएं सुनने को मिलीं रही हैं...। अच्छा है...। 

चलो कम से कम एक दिन तो थोड़ी गंदगी कम होगी...। लेकिन आज के इस भयंकर सफाई अभियान को देखकर मेरे जहन में एक सवाल बार-बार उठ रहा है...क्या हर दिन ऐसा ही एग्रेसिव सफाई कैंपेन होगा ? क्या हर दिन हमारे नेता ऐसे ही झाड़ू उठाएंगे ? क्या AC में बैठने वाले अधिकारीगण सफाई का जायजा लेने निकलेंगे धूम में निकलेंगे ? क्या नगर निगम के ठेकेदार सफाईकर्मियों से पैसा लेना बंद कर देंगे? (कॉलोनियों में घूमने वाले सफाई कर्मी अपने ठेकेदारों को कुछ पैसा देते हैं, जिससे उन्हें हर दिन कॉलोनियों में नहीं आना होता है।)


यह डर इसलिए है कि क्योंकि इतिहास गवाह रहा है...। जब-जब ऐसे बड़े कार्य का शुभारंभ हुआ है...तब-तब यह देखने को मिला है कि नये काम के लिए फीता तो कट जाता है लेकिन जिस मकसद के लिए यह होता है वो वहीं का वहीं रह जाता है। चंद दिनों तक तो सबकुछ रफ्तार से होता है, फिर टांय..टांय फिस्स हो जाता है। इसमें मोदी, नेता या अधिकारियों के झाडू उठाने से कुछ नहीं उखड़ जाएगा। चाहकर भी ये लोग देश को स्वच्छ नहीं कर पाएंगे। क्योंकि हमारे नेचर में ही है गंदगी करना...। ट्रेन देख लीजिए। बस स्टॉप देख लीजिए। सुलभशौचाल देख लीजिए...। सरकारी अस्पताल के टॉयलेट देख लीजिए...। ऐसे ही बहुत सारी जगहें हैं जहां पर सफाई को लेकर बड़ी-बड़ी बातें लिखी रहती हैं, लेकिन हम जस्ट उल्टा ही करते हैं। ट्रेन के स्टेशन पर खड़ी होने पर टॉयलेट के अंदर लिखा होता है कि कृपया इस समय शौचालय का प्रयोग न करें...। लेकिन क्या करें, हमारा नेचर ही कुछ ऐसा है कि साला प्रेशर ही वहीं बनता है...।


मोदी जी, लाख नहीं, करोड़ टॉयलेट बनवा, फिर भी आप गंदगी को साफ नहीं कर पाएंगे। इंडियन लोगों की मानसिकता को आप नहीं बदल पाएंगे। हां। देश में आप जरूर दो-चार दस शहरों को बदल देंगे। लेकिन 125 करोड़ की आबादी वाले देश को गंदगी मुक्त नहीं बना पाएंगे। आपका प्रयास अच्छा है। लेकिन इसको लेकर आपको कुछ और ठोस कदम उठाने होंगे। पश्चिमी देश गवाह है...।


हमें अगर गंदगी को जड़ से खत्म करना है तो हमें पश्चिमी देशों को फॉलो करना होगा, नहीं तो सफाई का यह अभियान एक दिन से ज्यादा नहीं चल पाएगा। पश्चिमी देश मतलब वहां के कानून को हमारे यहां पर भी लागू होना चाहिए। बाहर थूकने और कचरा फेकने पर भी जुर्माना है...। वैसा ही सिस्टम हमारे यहां होना चाहिए...। जब तक डर नहीं होगा, तब तक मुझे नहीं लगता है कि सफाई के इस अभियान को सार्थक किया जा सकेगा। इतना ही नहीं, इस कानून का डर दूर-दराज के गांव-गांव तक पहुंचाना होगा...तभी तो भारत एक स्वच्छ भारत बन पाएगा।

Saturday, May 31, 2014

बदायूं गैंगरेपः बंद कर दो यह नौटंकी, नहीं चाहिए तुम्हारी हमदर्दी!!!

दिल बहुत रो रहा है...। जबसे बदायूं की खबर पढ़ी है, रात में ठीक से नींद नहीं आ रही है। वो खौफनाक दृश्य बार-बार आंखों के सामने आ जा रहा है...। कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या होगा इस देश का...। इतना सख्त कानून बनने के बाद यह हालात हैं...। अब तो शर्म आ रही है, मुझे अपने आपको इस देश का नागरिक कहने में...। इस घटना को देखकर तो लगता है कि पूरी तरह से इंसानियत मर चुकी है। तभी तो इस तरह की हैवानियत आए दिन देखने और सुनने को मिल रही है।

बदायूं में रेप के बाद चचेरी बहनों का पेड़ पर लटका शव देखकर इंसानियत से नाता रखने वाले हर शख्स की आंख जरूर नम हुई होगी। इस घटना पर देश ही नहीं, वर्ल्ड मीडिया और संयुक्त राष्ट्र संघ को भी शर्म आ गई...। भले ही इस घटना पर देश शर्म कर ले, वर्ल्ड मीडिया शर्म कर ले, हमारे नेता शर्म कर लें...कोई कितना भी शर्म कर ले, लेकिन यह शर्म कुछ दिनों से ज्यादा नहीं रहेगी। दिल्ली में दामिनी गैंग रेप में भी सभी को शर्म आई थी, शर्म के मारे लोग सड़कों पर उतरे थे, देश की राजनीति को शर्म का एहसास करवाया था...तभी तो सरकार को भी शर्म का फील आया था। इस शर्मनाक घटना के चलते ही सरकार ने अपराधियों में खौफ पैदा करने के लिए एक कठोर कानून पर मुहर लगाई थी। दामिनी गैंग रेप केस में कोर्ट ने फटाफट फैसला भी सुना दिया, बावजूद इसके उन्हें कोई पश्चाताप नहीं। कोई डर नहीं...कोई शर्म नहीं...।


आज फिर वही हुआ। एक बार फिर देश-दुनिया को बदायूं गैंगरेप पर शर्म का बुर्का पहनते हुए देखा जा रहा है। हमारे नेता भी शर्म के मारे पानी-पानी हो रहे हैं। इस घटना पर उन्हें भी शर्म आ रही है। तभी तो कुछ नेता बेशर्मों की तरह शर्मनाक बयान भी दे रहे हैं। घटना पर पूछने पर नेताजी कह रहे हैं, अरे तुम तो सुरक्षित हो न...। अब अगर ऐसे बेशर्म नेता के हाथ में शासन की चाबी होगी तो निश्चित ही ऐसी शर्मनाक घटना तो होगी ही...। बेशर्म नेता...और शर्मनाक बयान...। ये लोग बेशर्मों की तरह इज्जत का सौदा भी करने से पीछे नहीं हैं...। जिस रेप की घटना को मीडिया ने हाईलाइट कर दिया, फौरन 05-10 लाख रु. मुआवजा देने का एलान कर देते हैं। अरे नेता जी, क्या इन पैसों से इज्जत वापस लाकर दे सकते हैं...। ऐसा करते इन्हें शर्म नहीं आ रही है। बेशर्म कहीं के...। चुल्लूभर पानी में डूब मरो...।


ऐसे नेताओं की अंतरात्मा से इंसानियत की आवाज तक नहीं निकल रही है...। तभी तो मुआवजे की रोटी फेंक रहे हैं। घटना के बाद, कुछ पुलिस वालों को बर्खास्त कर दिया, अरे इससे क्या उखाड़ लोगे नेताजी...। चार दिन बाद फिर से ये बहाल हो जाएंगे, फिर वही रेप की घटना...फिर वही थाने में दुत्कार की कहानी दोहराई जाएगी। इतना ही नहीं, बेशर्मों की तरह अब हर कोई छोटा-बड़ा नेता पीड़ित परिवार से मिलने पहुंच रहा है...। अरे भई काहे के लिए जले पर नमक छिड़क रहे हो...। तुम लोग तो अपने-अपने घर को चले जाओगे...। लेकिन क्या कभी पलटकर किसी ने उन पीड़ित परिवार की खबर ली, जिसकी बेटी रेप का शिकार हुई हो...। शायद कभी नहीं...।


इस परिवार को समाज किस गंदी नजर से देखता है, क्या कभी आपने जानने की कोशिश की है...। क्या किसी ने कभी पलटकर पूछा कि पीड़िता बेटी की शादी के लिए एक मां-बाप को किस कदर घर-घर जाकर गिड़गिड़ाना पड़ता है...। ऐसे परिवारों को समाज में उसको तिल-तिलकर दर्दभरी जिंदगी जीना पड़ता है...। दरिंदे तो एक बार इज्जत लूटते हैं, लेकिन उस पीड़िता और परिवार का यह समाज कई बार इज्जत लूटता है। बस चले आते हैं जख्मों पर मरहम लगाने...। बंद कर दो यह नौटंकी...। नहीं चाहिए तुम्हारी हमदर्दी। नहीं चाहिए तुम्हारी भीख...। अगर मुझे कुछ देना ही है तो हमारे दर्द पर राजनीति बंद कर दो...। हमारे जख्मों पर नमक छिड़कना बंद कर दो...। छोड़ दो मुझे अकेला...। आपके आने से उल्टा छीछालेधर होती है और जाने के बाद जिंदगी नासूर बन जाती है...। भगवान के लिए अगर करना ही है तो सारे नेता एक हो जाओ। समाज के ऐसे दंरिदों को शख्त से शख्त सजा दिलवाओ...। इनका फैसला कोर्ट में नहीं चौराहे पर करवाओ, जिंदा लटका दो इन्हें...। तिल-तिल कर ऐसे दरिंदों को सरेराह मौत की नींद सुला दो...। जब ऐसा घृणित कृत्य करने से पहले चौराहे की घटना को देखकर उस दरिंदे के रोंगटे खड़े हो जाएंगे, तब जाकर समाज और देश में बहन-बेटियों की इज्जत बच पाएगी वरना...।

Thursday, May 29, 2014

मामा...मामा...ये तो मोदी तलकाल है...

एक सप्ताह गांव की सैर पर था। खूब मौज-मस्ती हुई। गांव में खूब पानी पूरी खाई..। मुझे भोपाल में मिलने वाली पानी पूरी का टेस्ट आज तक नहीं जमा...। इसलिए तो जब भी गांव जाना होता है वहां पानी पूरी जमकर खाता हूं। ये तो खाने की बात हो गई...। लेकिन इस बार के गांव दौरे में चुनावी रंग भी खूब दिखा...। जिस दिन गांव पहुंचा उसके एक-दो दिन पहले लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आ चुका था...। 
जितनी चर्चा मीडिया में नहीं होगी, उससे ज्यादा चर्चा गांव के बड़े बुजुर्गों के पास बैठकर सुनने को मिली...। देश की राजनीति की इनको इतनी ज्यादा जानकारी है, मुझे लगता है टीवी चैनल वालों को गांव से ही एक्सपर्ट बुलाने चाहिए। हर तरफ मोदी की चर्चा...। सुबह-शाम हर कोई बस राजनीति की ही बात कर रहा था...। जो नेता हार गए उनके कारण गिनाए जा रहे थे...। जो जीते उनको कोसा जा रहा था कि ये ससुरा तो मोदी की हवा में जीत गया नहीं तो जमानत जब्त हो जाती...।

यह बात मुझे भी कुछ हद तक एकदम सही लगी...। क्योंकि कई लोगों से बात करने पर पता चला कि स्थानीय सांसद को तो कोई जानता ही नहीं है...। मैंने पूछा फिर आपने वोट क्यों और किसको दिया...। जवाब मिला - स्थानीय सांसद को नहीं, बल्कि हम सभी ने तो मोदी को वोट दिया है...। हर बार हम लोकल प्रत्याशियों को जिताने के लिए वोट करते थे, लेकिन इसबार देश के लिए वोट किया...। ये जनाब तो कभी दर्शन तक नहीं देते हैं...। मोदी की लहर का इतना ज्यादा अंदाजा मुझे भी नहीं था...। मेरी आंख तब खुली जब एक सुबह लैपटॉप ओपन ही कर रहा था कि मेरा भांजा पास आकर खड़ा हो गया। उसने पूछा मामा त्या कल लहे हो...। बच्चों की तोतली भाषा बहुत प्यारी होती है। भांजा भी अभी इसी स्टाइल में बात करता है...। मैंने कहा-काम कर रहा हूं, तुम जाओ खेलो...।


वो गया नहीं, बगल में चुपचाप खड़ा होकर मेरी गतिविधियों को एकटक से देखने लगा। साइट देखी...जीमेल चेक किया...। इसके बाद फेसबुक ओपन किया...। न्यूज...फोटो..लाइक और कमेंट करता जा रहा था...अचानक भांजे की आवाज आई...मामा..मामा.. मोदी तलकाल...। मैं चौंक गया...। क्या हुआ...। फेसबुक पर मोदी की फोटो दिखाकर उसने कहा मामा- मोदी तलकाल है...। इसके बाद नीचे मनमोहन सिंह की फोटो भी थी, उसको दिखाकर मैंने पूछा-इनको जानते हो...। उसने कहा- न...। मैंने कहा मोदी को कैसे पहचानते हो...। उसने कहा तीवी में मोदी तलकाल आता है...।


मैं शॉक्ड रह गया था...। तीन साल का बच्चा। भारत के किसी भी नेता को नहीं जानता है...। सिर्फ मोदी का न सिर्फ चेहरा पहचानता है बल्कि उनके स्लोगन को भी याद किया हुआ है। मुझे लगा हो न हो मोदी की जीत के पीछे यही कारण है...। देश की जनता ने मोदी पर भरोसा जताया है...। कम से कम इस बार तो देश की जनता ने मोदी को वोट किया है...। हर दिल में मोदी ने जगह बनाई और अंजाम आज सबके सामने है...।

स्थिर मोदी सरकार...गांव में अस्थिरता...

अबकी बार...मोदी सरकार...यह सरकार तो अब बन चुकी है। वो भी पूर्ण बहुमत से...। देश को स्थिर सरकार का तोहफा मिल चुका है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ गांव में इस सरकार की वजह से अस्थिरता का माहौल पैदा हो गया है। मतलब, अब मोदी की विजय के बाद, अन्य राजनीतिक दल हार के कारण खंगालने में जुट गए हैं। जांच का यह दायरा गांव से शुरू हुआ है। यह जांच किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं है, जहां पर सारे वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी धरी की धरी रह गई। इस जांच से निकलने वाला सच सुनकर मैं खुद हैरान था। लेकिन गांव के ही कुछ लोगों से मिलने के बाद हकीकत लेकिन कड़वा सच सुनने और जानने को मिला। यहां राजनीति के कीचड़ में सना हुआ सबसे गंदा चेहरा निकलकर मेरी आंखों के सामने आया।


गांव की यात्रा पर एक सप्ताह रहा। इस बीच काफी कुछ नई बात जानने को मिली। यूपी में हर कोई बीजेपी को 40 से 50 के बीच सीट मिलने का दावा कर रहा था। लेकिन यहां बीजेपी की ऐसी आंधी चली कि अन्य सभी दल खर-पतवार की तरह उड़ गए। कोई किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं बचा। ये नेता और पार्टियां जिसके भरोसे कूदती हैं, उन्हीं लोगों ने इस बार उनकी लुटिया डुबो दी। जनता को मूर्ख समझने वाले खुद मूर्ख बन गए। लेकिन कुछ भी हो गांव स्तर पर जितने भी नेता होते हैं, उनकी चुनाव में जमकर जेब गरम होती है। अबकी बार भी यही हुआ। कुछ पार्टियों ने गांव के सदस्यों पर जमकर पैसा लगाया, सिर्फ इसी लालच में कि इनके हाथ में जितने वोट हैं वो उन्हें जरूर मिलेंगे।


सदस्यों ने भी खूब हवा बांधा था...। खूब भरोसा दिलाया था...। तभी तो सदस्यों को मुंह मांगी कीमत दी गई थी। लेकिन इतनी करारी हार के बाद हर तरफ सन्नाटा फैल गया है। सारे सदस्यों के पैरों तले जमीन खिसक गई है। हार के हर कारण का जवाब इन्हीं से मांगा जा रहा है। अब देंगे कहां से...। क्योंकि जनता ने इनको मूर्ख बना दिया है। अन्य पार्टियां हार के तिनके की खोज में खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली हकीकत में चली गई हैं। यूपी राजनीति की दो दिग्गज पार्टियों का अस्तित्व इस बार के चुनाव में पूरी तरह से खत्म हो चुका है। मोदी हवा के आगे सब बिखर गए। ये पार्टियां अब उन धोखेबाज सदस्यों से पाई-पाई वसूलने के लिए कमर कस रही हैं। हर गांव में कुछ दिग्गज लोग पार्टियों की आंख-कान होती हैं। इनसे पूछा गया था कि आप मुझे कितने वोट दिलवा सकते हो। इसके बदले में फिक्स हुआ पैसे का बहुत बड़ा खेल।


एक वोट की कीमत 500 रु.। यह रेट मैं नहीं, बल्कि जिसको ठेका मिला था उसने बताया। अब यह कितना सही है, कितना गलत इसका मेरे पास कोई प्रूफ नहीं है। गांव के ही एक भाई को पूर्व मंत्री साब ने सुबह-सुबह तलब कर लिया। उनके सामने एक लिस्ट दे मारी...। पूछा...का हो, तू तो कहत रहा कि भैया फला बूथ से 380 वोट की गारंटी हई...। ई बूथ से तो 80 वोट भी न मिली। भाई साब ने अपना दुखड़ा नेताजी को सुनाना चाहा लेकिन फटकार के सिवा कुछ न मिला। उन्होंने कह दिया कि सारे रु. मेरे पास पहुंच जाने चाहिए वरना अंजाम बुरा होगा।


मंत्री साब की लताड़ तक तो ठीक थी, लेकिन बड़े दुख की बात तो यह है कि भाई साब ने वो सारे पैसे खर्च कर डाले थे। एक नई बाइक खरीद ली और घर में टाइल्स लगवा लिया...। अब कहां से इतने पैसों का इंतजाम होगा। खैर इस बहाने नात-रिश्तेदार, दोस्त-यार सबका दरवाजा खटखटा लिया। घर बनवाने के नाम पर सभी से पैसे इकट्ठा कर रहे हैं। क्योंकि अगर पैसा नहीं पहुंचा तो मामला गंभीर हो सकता है, इसी डरवश वो भाई साब पैसा जुगाड़ रहे हैं। यह तो सिर्फ एक बूथ की बात है, ऐसे न जाने कितने बूथों पर लाखों रु. का दांव खेला गया था। अब सारे लोग तलब किए जा रहे हैं...। भले ही मोदी को एकछत्र विजय हासिल हुई हो लेकिन इस खरीद-फरोख्त के तिलिस्म से देश को कब आजादी मिलेगी...पता नहीं...।

Monday, April 28, 2014

...और फिर कभी प्यार न हुआ...

टीवी पर आ रही फिल्म में प्यार का सीन देख मैंने रिंकू (दोस्त) से पूछा, क्या आज तक किसी लड़की को सेट किया है? 

जवाब आया - क्या भैया...क्या पूछ लिया...आपने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया...। आपके पास पूछने के लिए कुछ और नहीं था। काहे के लिए प्यार की बात छेड़ दी...। अच्छा-खासा फिलम् देख रहे थे...। आप भी न...। काफी ना नुकुर करने के बाद...आखिरकार भाई साब ने वो हसीन प्यार की दर्दनाक कहानी बयां कर ही दी...।

कहानी शुरु...मैं उस समय 10 वीं में पढ़ रहा था। सबकुछ अच्छा चल रहा था...। एक सुबह दोस्तों संग स्कूल जाने के लिए निकला। बीच में रेलवे क्रॉसिंग पड़ता है। उस दिन फाटक बंद था। हम ट्रेन के जाने का इंतजार करने लगे। हमारे बगल में कुछ लड़कियां भी खड़ी थीं। ये मेरे ही स्कूल में पढ़ने वालीं थीं। फाटक खुलते ही लड़कों से पहले लड़कियां आगे बढ़ गईं। यहीं से मेरी दुर्दशा शुरु होने वाली थी...। पता नहीं कैसे आगे जा रही एक लड़की (पूनम) का दुपट्टा जमीन पर घिसट गया और उसपर मेरा पैर पड़ गया। पैर पड़ते ही दुपट्टा नीचे आ गया। लड़की सहसा ठिठक गई। उसको लगा, मैंने उसका दुपट्टा जानबूझकर खींचा है। उस समय उसने घूरकर देखा और चलती बनी...। ऐसा लगा जैसे उसने मन ही मन मुझे सबक सिखाने का अल्टीमेटम दे दिया हो..।

मुझे पता नहीं था कि यह तमतमाहट बाद में काली का रूप धारण कर लेगी। स्कूल में कदम रखते ही वो मेरे पास आई...। कहा-तुमने मेरा दुपट्टा क्यों खींचा। मैं कुछ बोलता, इसके पहले उसने गुस्से से कहा, ''मैं प्रिंसिपल के पास जा रही हूं। तुम्हारी सारी मजनूगिरी अभी निकलवाती हूं। मन कर रहा है तुम्हे चप्पल से मारूं।'' मेरे काफी हाथ-विनती करने पर भी उसका दिल नहीं पसीझा। वो अपनी बात पर कायम थी, मैं अपनी बात पर...। वो एक बार फिर गुस्से से चली गई। मेरी धुकधुकी अब और बढ़ गई थी...। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं...। आव देखा न ताव...बैग उठाकर स्कूल से भाग खड़ा हुआ। शाम तक एक मंदिर में बैठकर पूजा-अर्चना करता रहा कि भगवान पूनम को सद्भुद्दी दे...। स्कूल छूटने के बाद दोस्तों से स्टेटस पता किया। उन्होंने कहा ऐसा कुछ नहीं था...। एक दोस्त ने बताया कि यार तुम्हारी धुकधुकी देखकर पूनम तुमपर इंप्रेस हो गई है...। उसने किसी को कुछ नहीं बताया, उल्टा मजा ले रही थी कि वो कितना डरपोक है। शर्म के मारे मेरा सिर नीचे हो गया। मन ही मन कहा चलो अच्छा हुआ नहीं तो प्रिंसिपल के सामने जलील होना पड़ता। दूसरे दिन भरी क्लास में पूनम बार-बार मुझे ही देख रही थी, मैं चाहकर भी उससे नजरें नहीं मिला पा रहा था...। यह सिलसिला दो-तीन दिन तक चलता रहा...। फिर वही हुआ जिसकी मुझे आशंका थी...। लंच टाइम में पूनम मेरे पास आई और सॉरी बोलने लगी...।

बातचीत का सिलसिला बढ़ गया..। अब लंच साथ में होने लगा। नौबत यहां तक आ गई कि हम दोनों ने एक दूसरे से मोबाइल नंबर तक शेयर कर डाला...। मुझे नहीं पता था कि यह नंबर मेरे गले की फांस बन जाएगी। हर रात बिना बात किए नींद नहीं आती थी। मैसेज से काफी रोमांस भरी बातों का सिलसिला शुरु हो चुका था..। इतना ही नहीं, हम दोनों एक-दूसरे को बहुत पसंद करने लग थे। धीरे-धीरे हमारा प्यार परवान चढ़ने लगा था, लेकिन मुझे क्या पता था कि यह बात किसी की आंख में गड़ रहा है। हुआ कुछ यूं कि पूनम का पहले एक लड़के से चक्कर चल चुका था, जिसमें दरार पड़ चुकी थी। उसको मेरे और पूनम के गुटुरगूं के बारे में पता चल चुका था। लेकिन मेरे रास्ते में आने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी, क्योंकि स्कूल में मेरे कई दबंग दोस्त थे। वो डर रहा था, लेकिन अंदर ही अंदर हम दोनों को अलग करने का प्लान भी बना रहा था।

एक दिन उसने मौका देखकर पूनम के भाई (बबलू) को सारी कहानी बयां कर दी। भाई ने पूनम का मोबाइल चेक किया तो मेरे नाम के कई मैसेज मिल गए। वो तमतमाया। पूनम को बुरा-भला कहने के साथ-साथ दो-चार तमाचे भी रसीद कर दिए। लेकिन पूनम ने अपने भाई और परिवार वाले से जो कुछ कहा उसके बारे में मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। पूनम ने कहा, वो लड़का हर दिन मुझे परेशान करता है। पता नहीं कहां से मेरा नंबर उसको मिल गया। हर दिन वो मुझे इस तरह के मैसेज करता है। मैं उसको नहीं जानती। वो मेरे पीछे पड़ा हुआ है। कुल मिलाकर प्यार के उगते पौधे को एक झटके में जड़ से उखाड़कर फेंक दिया। खुद पाकसाफ बन गई और मुझे फिल्म का विलेन बना दिया।

इतना तक तो ठीक था...। जिस रात को पूनम ने मेरे खिलाफ जहर उगला, उसके दूसरे दिन मेरे लिए आफत बनकर आ गई। बबलू गुंड़ो की गैंग तैयार कर स्कूल पहुंच गया। संयोग अच्छा था कि मैं अभी रास्ते में ही था। अचानक मेरे दोस्त का फोन आया। उसने सारा वाकया बता दिया। मैं उसी वक्त वापस लौट पड़ा। लेकिन वापस लौटते समय मेरे दिमाग में डॉन भाईयों की खुराफात घूम रहा था। मुझे लगा कि आज नहीं तो कल ये लोग मुझे निपटा के ही दम लेंगे। छोड़ेंगे नहीं। मैंने घर की तरफ जाने वाला रास्ता छोड़ दिया। मैं शहर के पार्षद के पास जा पहुंचा। वो एक दबंग पार्षद थे। मुझे अच्छी तरह से जानते थे।

सबसे बड़ी बात वो अपनी जाति के थे। जाते ही पैर पकड़कर रोना शुरु कर दिया। बचा लो भैया..। बचा लो भैया...। वो लोग मुझे बहुत पीटेंगे...। भैया ने मुझे उठाया और सारा माजरा समझा। मैंने उनको बताया कि किस तरह से मुझे फंसाया जा रहा है। अपना मोबाइल भी उनको दिखाया, जिसमें पूनम के सारे मैसेज पड़े थे। आग दोनों तरफ लगी हुई थी। फंस मैं अकेला रहा था। पार्षद जी ने मुझे समझा। अपने चार-पांच गुर्गों को इकट्ठा किया और मुझे लेकर स्कूल पहुंच गए। वहां पर अब भी भाई लोग मेरा इंतजार कर रहे थे। पार्षद जी सबको जानते थे। उनको देखकर सभी लोग इनके पैर छूने लगे। यह देख मेरी धुकधुकी थोड़ी कम हुई।

पार्षद ने उनको बताया कि यह मेरा छोटा भाई है। गलती इसकी नहीं है, आपकी बहन की भी है। मेरा मोबाइल लेकर उन्होंने भाई लोगों को दिखाया। और उनसे पूछा कि अब बताओ क्या अकेले सिर्फ इसी की गलती है। पार्षद जी ने कहा पहले अपनी बहन को समझाओ। और आज के बाद मेरा भाई आपकी बहन से कोई संपर्क नहीं रखेगा, इसकी गारंटी मैं देता हूं। भाई लोगों ने भी हाथ जोड़कर माफी मांगी और चलते बने। उसी दिन से मैंने कान पकड़ लिया कि किसी की बहन से चोंचलेबाजी नहीं करूंगा। फिर कभी प्यार-व्यार के चक्कर में पड़ा ही नहीं। लड़कियों से कोसो दूरी बनाकर रखता हूं।

यहीं हुआ कहानी का द एंड। मुझे भी लगा ऐसा खौफनाक मंजर देखने के बाद किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वो प्यार की बंशी बजाएगा।