अबकी बार...मोदी
सरकार...यह सरकार तो अब बन चुकी है। वो भी पूर्ण बहुमत से...। देश को स्थिर सरकार
का तोहफा मिल चुका है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ गांव में इस सरकार की वजह
से अस्थिरता का माहौल पैदा हो गया है। मतलब, अब
मोदी की विजय के बाद, अन्य राजनीतिक दल हार के कारण खंगालने में जुट गए
हैं। जांच का यह दायरा गांव से शुरू हुआ है। यह जांच किसी प्राकृतिक आपदा से कम
नहीं है, जहां पर सारे वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी धरी की
धरी रह गई। इस जांच से निकलने वाला सच सुनकर मैं खुद हैरान था। लेकिन गांव के ही
कुछ लोगों से मिलने के बाद हकीकत लेकिन कड़वा सच सुनने और जानने को मिला। यहां
राजनीति के कीचड़ में सना हुआ सबसे गंदा चेहरा निकलकर मेरी आंखों के सामने आया।
गांव की यात्रा पर एक सप्ताह रहा। इस बीच काफी कुछ नई बात जानने को मिली। यूपी में हर कोई बीजेपी को 40 से 50 के बीच सीट मिलने का दावा कर रहा था। लेकिन यहां बीजेपी की ऐसी आंधी चली कि अन्य सभी दल खर-पतवार की तरह उड़ गए। कोई किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं बचा। ये नेता और पार्टियां जिसके भरोसे कूदती हैं, उन्हीं लोगों ने इस बार उनकी लुटिया डुबो दी। जनता को मूर्ख समझने वाले खुद मूर्ख बन गए। लेकिन कुछ भी हो गांव स्तर पर जितने भी नेता होते हैं, उनकी चुनाव में जमकर जेब गरम होती है। अबकी बार भी यही हुआ। कुछ पार्टियों ने गांव के सदस्यों पर जमकर पैसा लगाया, सिर्फ इसी लालच में कि इनके हाथ में जितने वोट हैं वो उन्हें जरूर मिलेंगे।
सदस्यों ने भी खूब हवा बांधा था...। खूब भरोसा दिलाया था...। तभी तो सदस्यों को मुंह मांगी कीमत दी गई थी। लेकिन इतनी करारी हार के बाद हर तरफ सन्नाटा फैल गया है। सारे सदस्यों के पैरों तले जमीन खिसक गई है। हार के हर कारण का जवाब इन्हीं से मांगा जा रहा है। अब देंगे कहां से...। क्योंकि जनता ने इनको मूर्ख बना दिया है। अन्य पार्टियां हार के तिनके की खोज में ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ वाली हकीकत में चली गई हैं। यूपी राजनीति की दो दिग्गज पार्टियों का अस्तित्व इस बार के चुनाव में पूरी तरह से खत्म हो चुका है। मोदी हवा के आगे सब बिखर गए। ये पार्टियां अब उन धोखेबाज सदस्यों से पाई-पाई वसूलने के लिए कमर कस रही हैं। हर गांव में कुछ दिग्गज लोग पार्टियों की आंख-कान होती हैं। इनसे पूछा गया था कि आप मुझे कितने वोट दिलवा सकते हो। इसके बदले में फिक्स हुआ पैसे का बहुत बड़ा खेल।
एक वोट की कीमत 500 रु.। यह रेट मैं नहीं, बल्कि जिसको ठेका मिला था उसने बताया। अब यह कितना सही है, कितना गलत इसका मेरे पास कोई प्रूफ नहीं है। गांव के ही एक भाई को पूर्व मंत्री साब ने सुबह-सुबह तलब कर लिया। उनके सामने एक लिस्ट दे मारी...। पूछा...का हो, तू तो कहत रहा कि भैया फला बूथ से 380 वोट की गारंटी हई...। ई बूथ से तो 80 वोट भी न मिली। भाई साब ने अपना दुखड़ा नेताजी को सुनाना चाहा लेकिन फटकार के सिवा कुछ न मिला। उन्होंने कह दिया कि सारे रु. मेरे पास पहुंच जाने चाहिए वरना अंजाम बुरा होगा।
मंत्री साब की लताड़ तक तो ठीक थी, लेकिन बड़े दुख की बात तो यह है कि भाई साब ने वो सारे पैसे खर्च कर डाले थे। एक नई बाइक खरीद ली और घर में टाइल्स लगवा लिया...। अब कहां से इतने पैसों का इंतजाम होगा। खैर इस बहाने नात-रिश्तेदार, दोस्त-यार सबका दरवाजा खटखटा लिया। घर बनवाने के नाम पर सभी से पैसे इकट्ठा कर रहे हैं। क्योंकि अगर पैसा नहीं पहुंचा तो मामला गंभीर हो सकता है, इसी डरवश वो भाई साब पैसा जुगाड़ रहे हैं। यह तो सिर्फ एक बूथ की बात है, ऐसे न जाने कितने बूथों पर लाखों रु. का दांव खेला गया था। अब सारे लोग तलब किए जा रहे हैं...। भले ही मोदी को एकछत्र विजय हासिल हुई हो लेकिन इस खरीद-फरोख्त के तिलिस्म से देश को कब आजादी मिलेगी...पता नहीं...।
गांव की यात्रा पर एक सप्ताह रहा। इस बीच काफी कुछ नई बात जानने को मिली। यूपी में हर कोई बीजेपी को 40 से 50 के बीच सीट मिलने का दावा कर रहा था। लेकिन यहां बीजेपी की ऐसी आंधी चली कि अन्य सभी दल खर-पतवार की तरह उड़ गए। कोई किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं बचा। ये नेता और पार्टियां जिसके भरोसे कूदती हैं, उन्हीं लोगों ने इस बार उनकी लुटिया डुबो दी। जनता को मूर्ख समझने वाले खुद मूर्ख बन गए। लेकिन कुछ भी हो गांव स्तर पर जितने भी नेता होते हैं, उनकी चुनाव में जमकर जेब गरम होती है। अबकी बार भी यही हुआ। कुछ पार्टियों ने गांव के सदस्यों पर जमकर पैसा लगाया, सिर्फ इसी लालच में कि इनके हाथ में जितने वोट हैं वो उन्हें जरूर मिलेंगे।
सदस्यों ने भी खूब हवा बांधा था...। खूब भरोसा दिलाया था...। तभी तो सदस्यों को मुंह मांगी कीमत दी गई थी। लेकिन इतनी करारी हार के बाद हर तरफ सन्नाटा फैल गया है। सारे सदस्यों के पैरों तले जमीन खिसक गई है। हार के हर कारण का जवाब इन्हीं से मांगा जा रहा है। अब देंगे कहां से...। क्योंकि जनता ने इनको मूर्ख बना दिया है। अन्य पार्टियां हार के तिनके की खोज में ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ वाली हकीकत में चली गई हैं। यूपी राजनीति की दो दिग्गज पार्टियों का अस्तित्व इस बार के चुनाव में पूरी तरह से खत्म हो चुका है। मोदी हवा के आगे सब बिखर गए। ये पार्टियां अब उन धोखेबाज सदस्यों से पाई-पाई वसूलने के लिए कमर कस रही हैं। हर गांव में कुछ दिग्गज लोग पार्टियों की आंख-कान होती हैं। इनसे पूछा गया था कि आप मुझे कितने वोट दिलवा सकते हो। इसके बदले में फिक्स हुआ पैसे का बहुत बड़ा खेल।
एक वोट की कीमत 500 रु.। यह रेट मैं नहीं, बल्कि जिसको ठेका मिला था उसने बताया। अब यह कितना सही है, कितना गलत इसका मेरे पास कोई प्रूफ नहीं है। गांव के ही एक भाई को पूर्व मंत्री साब ने सुबह-सुबह तलब कर लिया। उनके सामने एक लिस्ट दे मारी...। पूछा...का हो, तू तो कहत रहा कि भैया फला बूथ से 380 वोट की गारंटी हई...। ई बूथ से तो 80 वोट भी न मिली। भाई साब ने अपना दुखड़ा नेताजी को सुनाना चाहा लेकिन फटकार के सिवा कुछ न मिला। उन्होंने कह दिया कि सारे रु. मेरे पास पहुंच जाने चाहिए वरना अंजाम बुरा होगा।
मंत्री साब की लताड़ तक तो ठीक थी, लेकिन बड़े दुख की बात तो यह है कि भाई साब ने वो सारे पैसे खर्च कर डाले थे। एक नई बाइक खरीद ली और घर में टाइल्स लगवा लिया...। अब कहां से इतने पैसों का इंतजाम होगा। खैर इस बहाने नात-रिश्तेदार, दोस्त-यार सबका दरवाजा खटखटा लिया। घर बनवाने के नाम पर सभी से पैसे इकट्ठा कर रहे हैं। क्योंकि अगर पैसा नहीं पहुंचा तो मामला गंभीर हो सकता है, इसी डरवश वो भाई साब पैसा जुगाड़ रहे हैं। यह तो सिर्फ एक बूथ की बात है, ऐसे न जाने कितने बूथों पर लाखों रु. का दांव खेला गया था। अब सारे लोग तलब किए जा रहे हैं...। भले ही मोदी को एकछत्र विजय हासिल हुई हो लेकिन इस खरीद-फरोख्त के तिलिस्म से देश को कब आजादी मिलेगी...पता नहीं...।
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