मैं तो पूरी तरह से हिल गया, मुझे लगा खबर की हेडिंग गलत है लेकिन अंदर झांककर देखा तो बहुत गहराई थी। यहां एक पत्नी अपने पति को इस बात के लिए कोस रही थी क्योंकि उसने दहेज में कार की मांग नहीं की थी। कल तक जहां बाप के घर से विदा होने के बाद बेटियां कसम खा लेती थी कि कुछ भी हो जाए बाप का सिर नीचा नहीं होने देंगे। ससुराल में दहेज के लिए प्रताड़ित होने पर भी बेटी अपने मां-बाप के सामने हाथ फैलाने से डरती थीं आज वही बहू-बेटियां समाज में हो रहे बदलाव के रंग में इतनी ज्याद रंग गई हैं कि सारे रिश्ते-नाते की मां की आंख हो गई है।
यहां पर वो गाना जिसमें एक बाप अपनी बेटी को घर से विदा करते समय रो-रोकर कहता है...बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले...वह सब भौतिकतावाद के हवनकुंड में झोंक दिए गए हैं। शादी के बाद जो दहेज ससुराल वालों की तरफ से बहू को मोहरा बनाकर मांगा जाता था आज वही बहू सबको साइड में करके मां-बाप की खुशियों पर खुद लात रख रही है।
इसका कारण आज सिर्फ एक ही है समाज में भौतिकतावाद का बढ़ता दायरा। चीन में ट्रेन की रफ्तार सबसे तेज है लेकिन हमारे यहां भौतिक रूपी गाड़ी की स्पीड उस ट्रेन से भी ज्यादा तेज है जो हर घर से होकर गुजर रही है।
आज कुछेक को छोड़कर हर घर में दहेज की दबंगई चलती है। दहेज न लेने वालों को समाज में बहुत ही गिरी निगाह से देखा जाता है। अच्छा दहेज मिला है तो समाज में बहुत इज्जतदार हो अगर कम दहेज लिया तो वह आपको नीचा दिखाने के लिए काफी है। बाप अपनी बेटी के लिए वर की तलाश में जाने से पहले अपनी जेब टटोल लेता है कि हमारा बजट क्या है। इतने में सौदा होगा या नहीं, कम ज्याद भी होना पड़ता है। मंड़ी में जिस तरह से हर सामान की बोली लगती है उसी तरह समाज में दूल्हों की बोली लगती है।
लेकिन सोचने की बात है यह सौदा लड़के का परिवार करता है। दहेज का एमाउंट क्या होगा, कौन सी टीवी लेनी है, किस कंपनी का फ्रिज रहेगा, कूलर, डाइंग टेबल, प्रेस, बाइक या कार कौन से मॉडल की होगी..वगैरह-वगैरह। यह सब लड़के का परिवार ही डिसाइड कर लेता है और लड़की का बाप बेचारा चुपचाप उनकी सारी मांगे सिर झुकाकर मान लेता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बिना दहेज के योग्य लड़का नहीं मिल सकता। लड़की ससुराल जाती है लेकिन दहेज रूपी दानव सबकुछ लेने के बावजूद भी मुंह बनाना नहीं छोड़ता।
सास-ससुर-ननद-देवर-जेठ यहां तक की पति भी दहेज के लालच में अपनी पत्नी को न सिर्फ प्रताड़ित करता है बल्कि अब तो आए दिन यह खबर आती ही रहती है कि दहेज के लिए बहू को जला दिया, काटकर फेंक दिया, प्रताड़ित होकर बहू ने आत्महत्या कर ली, घर से निकाल दिया, जहर खा ली, ट्रेन के नीचे आ गई, नदी में कूद गई, मारा-पीटा गया, लज्जित करना-जलील करना, दहेज के लिए खून के आंसू रो रही है बहू, आदि। लेकिन दहेज में क्यों नहीं मांगी कार...वाली खबर ने गंगा के बहने की दिशा ही बदल दी।
लेकिन इस खबर से क्या हमें मान लेना चाहिए कि दहेज का स्वरूप विकराल हुआ है लेकिन उसका रंग बदल गया है। जो बाप अपनी बेटी को विदा करने के पहले सबकुछ न्योछावर कर देता है और उसे ससुराल में हमेशा सुखी रहने की दुआ देता है आज वही बेटी अपने बाप की खुशियां छीनने के लिए पति को कोस रही है। अब फंस रहा है बेचारा पति। पति ने तो शादी के पहले यही सोचा होगा कि चलो सरकारी नौकरी है जो कुछ होगा अपने दम पर कर लेंगे। लेकिन उसकी सोच पर पानी फिर गया। पत्नी ने पति की गर्दन पर दोधारी तलवार रखकर पूछ ही लिया अब बताओ मेरे बाप से दहेज में कार क्यों नहीं मांगी थी। लेकिन यहां पर लड़की को दोषी ठहराना जल्दबाजी होगी क्योंकि समाज में पश्चिमी सभ्यता पूरी तरह से हावी हो चुकी है। और ऐसे में आज हर इंसान अपना दायरा भूलकर यह सोचने लगा है कि उसके पास जरूरत का हर सामान मौजूद हो। इसके लिए किसी भी रिश्ते का खून हो जाए तो हो जाने दो परवाह नहीं...।
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