दिपावली आते ही हम घरों की, ऑफिसों की साफ-साफ, रंगाई-पुताई करने में पूरी तरह से व्यस्त हो जाते हैं लेकिन हमने क्या कभी सोचा है कि साल के 12 महीने को दिवाली समझ कर साफ-सफाई पर ध्यान दें तो हमारे और पर्यावरण के लिए कितना लाभदायक होगा।
लेकिन ऐसा हम तो कर ही नहीं सकते क्योंकि यह हमारे आन-बान-शान के खिलाफ है। पर्यावरण गया तेल लेने हम तो दिवाली पर ही घरों को साफ रखेंगे। हां बाकी दिन हम कचरें में व्यतीत कर लेंगे क्योंकि हमें आसपास कचरा काफी अच्छा लगता है।
कचरा और साफ सफाई दोनों अलग-अलग चीज है। ये दोनों चीजें अपनी-अपनी जगह पर शोभा बढ़ाती हैं। हालांकि साफ-सफाई से साल में एक बार घर की शोभा बढ़ती है लेकिन कचरे से तो हमारा पुराना ताल्लुकात है। यह प्रतिदिन चार-चांद लगाती है। हम तो चाहते हैं कि दिवाली पर यह साफ-सफाई की प्रथा ही खत्म कर देनी चाहिए, फालतू की मेहनत होती है।
हम तो ऐसे ही ठीक हैं। जो शुकून और शांति कचरे में मिलती है वह शायद कहीं नहीं मिलती। साफ-सफाई सिर्फ टेंशन देते हैं, एक दिन एनर्जी उपर से खत्म हो जाती है। दीवाली आते ही पता नहीं क्यों लोग एकाएक जाग जाते हैं और दनादन साफ-सफाई, रंगाई-पुताई में जुट जाते हैं चाहे भले ही साल भर ढंग से नहाया न हो लेकिन उस दिन घर को सजाएंगे जरूर।
रोड पर चलते, ऑफिस में बैठे कचरे में पिच-पिच करने, रेलवे स्टेशन पर डस्टबिन में कचरा न फेंककर प्लेटफॉर्म पर ही गंदगी कर देना। यह सम हमारी परंपरा है और हम इसके खिलाफ नहीं जा सकते, कोई कुछ भी कहे। रही एक दिन की बात तो भले ही साफ-सफाई कर दी जाती है लेकिन भाई यह रोज-रोज नहीं हो सकता। इतनी एनर्जी हममें नहीं है।
ऐसे हम भारतीय। जहां खाते हैं वहीं फेंकते हैं। कचरे का डिब्बा बगल में रहता लेकिन हम उसका उपयोग नहीं करते। आखिर कब तक ऐसा चलेगा। हमें तो हर दिन दिवाली मनानी चाहिए। साफ-सफाई पर ध्यान अगर हम दें तो न पर्यावण ठीक रहेगा बल्कि हम भी निरोग और पूरी तरह से स्वस्थ्य रहेंगे।
लेकिन ऐसा हम तो कर ही नहीं सकते क्योंकि यह हमारे आन-बान-शान के खिलाफ है। पर्यावरण गया तेल लेने हम तो दिवाली पर ही घरों को साफ रखेंगे। हां बाकी दिन हम कचरें में व्यतीत कर लेंगे क्योंकि हमें आसपास कचरा काफी अच्छा लगता है।
कचरा और साफ सफाई दोनों अलग-अलग चीज है। ये दोनों चीजें अपनी-अपनी जगह पर शोभा बढ़ाती हैं। हालांकि साफ-सफाई से साल में एक बार घर की शोभा बढ़ती है लेकिन कचरे से तो हमारा पुराना ताल्लुकात है। यह प्रतिदिन चार-चांद लगाती है। हम तो चाहते हैं कि दिवाली पर यह साफ-सफाई की प्रथा ही खत्म कर देनी चाहिए, फालतू की मेहनत होती है।
हम तो ऐसे ही ठीक हैं। जो शुकून और शांति कचरे में मिलती है वह शायद कहीं नहीं मिलती। साफ-सफाई सिर्फ टेंशन देते हैं, एक दिन एनर्जी उपर से खत्म हो जाती है। दीवाली आते ही पता नहीं क्यों लोग एकाएक जाग जाते हैं और दनादन साफ-सफाई, रंगाई-पुताई में जुट जाते हैं चाहे भले ही साल भर ढंग से नहाया न हो लेकिन उस दिन घर को सजाएंगे जरूर।
रोड पर चलते, ऑफिस में बैठे कचरे में पिच-पिच करने, रेलवे स्टेशन पर डस्टबिन में कचरा न फेंककर प्लेटफॉर्म पर ही गंदगी कर देना। यह सम हमारी परंपरा है और हम इसके खिलाफ नहीं जा सकते, कोई कुछ भी कहे। रही एक दिन की बात तो भले ही साफ-सफाई कर दी जाती है लेकिन भाई यह रोज-रोज नहीं हो सकता। इतनी एनर्जी हममें नहीं है।
ऐसे हम भारतीय। जहां खाते हैं वहीं फेंकते हैं। कचरे का डिब्बा बगल में रहता लेकिन हम उसका उपयोग नहीं करते। आखिर कब तक ऐसा चलेगा। हमें तो हर दिन दिवाली मनानी चाहिए। साफ-सफाई पर ध्यान अगर हम दें तो न पर्यावण ठीक रहेगा बल्कि हम भी निरोग और पूरी तरह से स्वस्थ्य रहेंगे।
बढ़िया आलेख ...
ReplyDeleteदीपावली पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं....