धरती पर स्वर्ग की नगरी कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर के हालात अब देखे नहीं जा रहे हैं। पिछले कई महीनों से यहां पर जो हो रहा है उसके लिए हम किसको दोष दें यह समझ में नहीं आ रहा है। ताजा झड़प में आज भी चार लोग मौत की नींद सो गए और पिछले चार दिनों में तो पुलिस और लोगों में पथराव और गोलियां चलीं उसमें अब तक १७ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।
जहां तक मैंने सुना है इतनी जबरदस्त हिंसा पहले कभी नहीं हुई, अगर हुई भी तो वह कुछ ही दिनों के लिए। लोगों में इतना ज्यादा क्रोध, गुस्सा है कि वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। सुबह सोकर उठते हैं तो मन में यह विचार आता है कि भगवान आज तो वहां पर माहौल अमन और चैन भरा हो लेकिन ऑफिस आकर सबकुछ पिछले दिनों जैसा घटित होता है।
सरकार भी यहां के लोगों के सामने पूरी तरह से बेबस हो चुकी है, तभी तो बार-बार अपील करने पर भी कोई ऐसा नहीं है जो शांति का पैगंबर बनकर सामने आए। लोगों में अब भारी निराशा छा गई है कि यहां पर अब कब सुबह होगी। कब तक यह अंधेरा छाया रहेगा। हिंसा के डर से लोग घरों से निकलने में पूरी तरह सिहर रहे हैं। कई दिनों से दुकाने नहीं खुलीं, स्कूलों में ताला लटका है, सरकारी दफ्तरों में काम करने वालों की संख्या भी न के बराबर हो गई है।
आखिर यहां पर लोग क्यों शांती नहीं आने देना चाहते हैं, क्यों लगातार कानून की सरेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। यह समझ से परे हैं, क्योंकि अगर सरकार इनके साथ बैठने को तैयार है तो फिर इन्हें हिंसा का रास्ता क्यों सबसे बेहतर मालूम पड़ रहा है। मुझे याद है कुछ दिन पहले केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि जैसे ही घाटी में थोड़ा माहौल शांत होता है, वैसे ही यहां से सेना हटा दी जाएगी। इतना आश्वासन देने के बावजूद भी यहां के लोगों के कानों में जूं तक नहीं रेंगा है। बस हिंसा, मार-धाड़, गाड़ी फूंकना, पत्थरबाजी करना, सरकारी मकानों को बुरी तरह से नष्ट करना, यही रह गया है।
ये लोग यह जरा भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आज तक हिंसा का रास्ता अपनाकर किस समस्या का हल निकला है। बैठकर अच्छे से बातचीत हो तो सब कुछ ठीक हो सकता है लेकिन इसके लिए किसी न किसी को आगे आना होगा। सरकार को पूरी तरह से दोष नहीं दिया जा सकता है, अगर कोई मुद्दा है जिसको लेकर लोग हिंसा पर उतारू हैं तो उन्हें सामने आना होगा।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुला ने भी लोगों से आग्रह किया कि बैठकर समस्या का समाधान करते हैं लेकिन यहां सुनने को कोई तैयार नहीं है। खैर अब सरकार को कुछ तो करना होगा जिससे यहां पर फिर वहीं अमन-चैन आ सके जो पहले था। आज यहां पर सैलानी आने से पूरी तरह से डरते हैं कि कहीं कुछ घटना न घट जाए। तो सरकार को सैलानिकों के दिलों में बैठे डर को भी निकालना होगा साथ ही यहां के लोगों में एक विश्वास की आस जगानी होगी कि हम आपकी हर उस बात को मानेंगे जो देश हित में होगा लेकिन सबसे पहले आप लोग हिंसा का रास्ता छोड़ें।
जहां तक मैंने सुना है इतनी जबरदस्त हिंसा पहले कभी नहीं हुई, अगर हुई भी तो वह कुछ ही दिनों के लिए। लोगों में इतना ज्यादा क्रोध, गुस्सा है कि वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। सुबह सोकर उठते हैं तो मन में यह विचार आता है कि भगवान आज तो वहां पर माहौल अमन और चैन भरा हो लेकिन ऑफिस आकर सबकुछ पिछले दिनों जैसा घटित होता है।
सरकार भी यहां के लोगों के सामने पूरी तरह से बेबस हो चुकी है, तभी तो बार-बार अपील करने पर भी कोई ऐसा नहीं है जो शांति का पैगंबर बनकर सामने आए। लोगों में अब भारी निराशा छा गई है कि यहां पर अब कब सुबह होगी। कब तक यह अंधेरा छाया रहेगा। हिंसा के डर से लोग घरों से निकलने में पूरी तरह सिहर रहे हैं। कई दिनों से दुकाने नहीं खुलीं, स्कूलों में ताला लटका है, सरकारी दफ्तरों में काम करने वालों की संख्या भी न के बराबर हो गई है।
आखिर यहां पर लोग क्यों शांती नहीं आने देना चाहते हैं, क्यों लगातार कानून की सरेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। यह समझ से परे हैं, क्योंकि अगर सरकार इनके साथ बैठने को तैयार है तो फिर इन्हें हिंसा का रास्ता क्यों सबसे बेहतर मालूम पड़ रहा है। मुझे याद है कुछ दिन पहले केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि जैसे ही घाटी में थोड़ा माहौल शांत होता है, वैसे ही यहां से सेना हटा दी जाएगी। इतना आश्वासन देने के बावजूद भी यहां के लोगों के कानों में जूं तक नहीं रेंगा है। बस हिंसा, मार-धाड़, गाड़ी फूंकना, पत्थरबाजी करना, सरकारी मकानों को बुरी तरह से नष्ट करना, यही रह गया है।
ये लोग यह जरा भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आज तक हिंसा का रास्ता अपनाकर किस समस्या का हल निकला है। बैठकर अच्छे से बातचीत हो तो सब कुछ ठीक हो सकता है लेकिन इसके लिए किसी न किसी को आगे आना होगा। सरकार को पूरी तरह से दोष नहीं दिया जा सकता है, अगर कोई मुद्दा है जिसको लेकर लोग हिंसा पर उतारू हैं तो उन्हें सामने आना होगा।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुला ने भी लोगों से आग्रह किया कि बैठकर समस्या का समाधान करते हैं लेकिन यहां सुनने को कोई तैयार नहीं है। खैर अब सरकार को कुछ तो करना होगा जिससे यहां पर फिर वहीं अमन-चैन आ सके जो पहले था। आज यहां पर सैलानी आने से पूरी तरह से डरते हैं कि कहीं कुछ घटना न घट जाए। तो सरकार को सैलानिकों के दिलों में बैठे डर को भी निकालना होगा साथ ही यहां के लोगों में एक विश्वास की आस जगानी होगी कि हम आपकी हर उस बात को मानेंगे जो देश हित में होगा लेकिन सबसे पहले आप लोग हिंसा का रास्ता छोड़ें।
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