Saturday, July 17, 2010

आज नहीं तो कल ये होना ही था

झारखंड़ के जमशेदपुर में जिस तरह से शराब के नशे में धुत जवान ने अपने ही साथियों को मौत की नींद सुला दिया वह तो एक न एक दिन होना ही था। कहने का तात्पर्य यह है कि पिछले कुछ दिनों पर झारखंड और छत्तीसगढ़ के नक्सली क्षेत्र में तैनात सीआरपीएफ जवानों की गतिविधियों पर नजर दौड़ाए तो निकलता है कि यहां पर नक्सलियों के हाथों सबसे ज्यादा परेशान सीआरपीएफ के जवान ही हुए हैं। नक्सली क्षेत्र में अब तक सीआरपीएफ के जवान ही मारे गए हैं।

ऐसे में जहां तक मेरा अनुमान है इन जवानों में अंदर ही अंदर विद्रोह की आग सुलग रही है। यह आग चाहे बड़े अधिकारियों द्वारा दिशा निर्देश को लेकर हो या फिर अपने जवानों के मारे जाने के बाद। वैसे बताया जा रहा है कि जवान को शराब पीने पर उसके अधिकारी ने जमकर फटकार लगाई थी।

माना जा रहा है कि अधिकारी की फटकार सुनकर जवान बुरी तरह से झल्ला गया और अपने ही साथियों पर अंधाधुंध फायरिंग करके ६ साथियों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन यह बात मेरी समझ से परे है। क्योंकि कल तक जो जवान साथ में बैठकर खाना खाते थे आज वही जवान अपने भाईयों की जान का दुश्मन कैसे बन सकता है।

कहीं न कहीं जवान अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रहे हैं, इसके पीछे का कारण साफ है। नक्सलियों से निपटने का दबाव उनके ऊपर ज्यादा रहता है। इस वजह से न तो वे ठीक से छुट्टी ले पाते हैं और न ही घर से ठीक तरह से कोई तालमेल हो पाता है। जवान दिन-रात नक्सलियों से निपटने की रणनीति बनाने में ही व्यस्त रहते हैं। साथ ही कुछ दिन पहले यह भी खबर आई थी कि जवानों के सामने चुनौती तो बहुत बड़ी है लेकिन उन्हें ठीक से खाना भी नसीब नहीं हो पा रहा है।

ऐसे में जवान मानसिक रूप से शराब पीकर हथियार नहीं उठाएंगे तो और क्या करेंगे। यह सीआरपीएफ के लिए एक सबक हो सकता है कि जवानों के लिए चुनौती का सामना करना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही उनके लिए सुख-सुवधाओं का होना भी। साथ में नक्सली जैसे क्षेत्रों में रहने वाले जवानों को तो समय-समय पर घर जाने की छुट्टी भी मिलना चाहिए, जिससे फायदा यह होगा कि हमारे जवान पूरी तरह से तरोताजा होते रहेंगे और उन्हें किसी भी प्रकार की मानसिक परेशानी नहीं होगी। इसके लिए सरकार को पूरी तरह से सबक लेते हुए आगे आना होगा जिससे इस तरह के वारदात को जल्द से जल्द रोका जा सके।

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