Wednesday, July 14, 2010

हमारे समाज के कैसे हो सकते हैं नक्सली

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने आज जो कहा वह बिल्कुल सही है कि नक्सली हमारे ही बीच का कोई है और इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को सारे रास्तों पर जाना होगा, सेना और सीआरपीएफ के इस्तेमाल से किसी समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला।

जी हां मुख्यमंत्री जी आपने बिल्कुल सही कहा, लेकिन जहां तक मेरा व्यक्तिगत विचार है, आपका यह सोचना बिल्कुल गलत और निराधार है। क्योंकि नक्सलियों को हम अब अपने बीच का नहीं कह सकते। कारण कि अगर नक्सली पने बीच के होते तो आज झारग्राम ट्रेन हादसे से लेकर दंतेवाड़ा जैसी क्रूरतम घटनाओं को अंजान न देते और बेकसूर लोगों को मौत की नींद न सुलाते।

नक्सलियों को अगर कोई समस्या है तो वह सरकार और प्रशासन से है। उसमें आम जनता का क्या कसूर है। आए दिन नक्सली अपना रास्ता साफ करने के लिए एक आम इंसान की हत्या कर देते हैं। सिर्फ शकमात्र से लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। ऐसे में नक्सलियों को हम अपने बीच का कैसे कह सकते हैं।

अगर नक्सली हमारे बीच के होते तो ये आम लोगों को हथियार न बनाकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ सीधा संघर्ष करते। सीएमजी कहते हैं, नक्सली हमारे समाज का हिस्सा हैं। हिंसा करने वाला समाज का हिस्सा कैसे बन सकता है। डर के मारे आम लोग भले ही नक्सलियों के खिलाफ आवाज न उठा सकें लेकिन उनके मन में नक्सलियों के प्रति सिर्फ ईष्र्या है और कुछ नहीं।

नीतिश कहते हैं कि सेना से नहीं बल्कि विकास से नक्सली समस्या का समाधान हो सकता है। ऐसे में हम पूछते हैं कि करो न विकास कौन रोक रहा है। रही बात केन्द्र से मदद की तो वो मिल रही है इसके बावजूद अगर राज्य सरकार रोना रोए तो वह उसकी समस्या है।

कुल मिलाकर मेरा मानना है कि नक्सल समस्या का समाधान विकास है और इसके लिए राज्य सरकार को खुद आगे आना होगा, न की किसी का मुंह ताकना। लेकिन यह भी देखना होगा कि विकास के काम में लगे हमारे अधिकारी क्या नक्सली इलाकों में काम कर पा रहे हैं, नहीं। पहले तो सरकार को नक्सलियों के मन में विश्वास जगाना होगा, फिर जाकर कहीं बात बनेगी। सरकार और नक्सलियों के बीच अभी तक विश्वास की भारी कमी देखी गई है और इसी का नतीजा रहा है कि सरकार बार-बार नक्सलियों को बातचीत के लिए आमंत्रित करती है लेकिन बीच में ही टाल-मटोल हो जाता है।

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