उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने बड़ी ही धूमधाम से बीएसपी की 25वीं वर्षगांठ मनाई। इस अवसर पर एक महारैली का भी आयोजन किया गया था जिसमें दूर-दराज के लोग शिरकत करने आए थे। इन्हीं लोगों में कुछ ऐसे भी थे जो मायावती की सिर्फ एक झलक पाने के लिए आए थे।
अभी तक हमने देखा है कि लोग अपनी मुरादों को पूरा करने के लिए देवी-देवताओं के दर्शन करने जाते हैं। और कुछ तो ऐसे होते हैं जो घुटनों के बल, कुछ हांथ पर जलते हुए दिए लेकर.. कहने का मतलब कई तरह से अपनी मान्यताओं को पूरा करते हैं।
कुछ इसी तरह से हुआ माया की महारैली में भी। दलितों की देवी कही जाने वाली मायावती का सिर्फ एक दर्शन भर पाने के लिए एक इंसान इस रैली में घुटनों के बल रेंगता हुआ आ पहुंचा था। इसकी यही इच्छा थी कि वह अपनी देवी मायावती का दर्शन कर ले और उसने किया भी।
खैर यह बात तो हुई देवी के दर्शन की। अब बात आती है नोटों की देवी की अर्थात इस महारैली में बसपा कार्यकर्ताओं ने 20 मीटर लंबी नोटों की माला कुमारी बहन मायावती के गलों में सुशोभित किया। इस माला में एक-एक हजार के नोट लगे हुए थे। अनुमान लगाया गया कि इस माला में कई करोड़ के नोट का इस्तेमाल किया गया था।
धन्य हैं बहन मायावती, इतना बड़ा उपहार लेते वक्त उन्हें जरा भी झिझक महसूस नहीं हुआ। उन्हें यह भी खयाल नहीं आया कि मैनें तो एक बार मनगढ़ हादसे में पीड़ित परिवारों को मदद के नाम पर ठेंगा दिखा दिया था। उन्हें यह भी अहसास नहीं हुआ कि बरेली में कई परिवार घर के अंदर बंद रहकर घुटन महसूस कर रहे हैं।
खैर इस देवी को तो दौलत और लोगों के हुजूम के बीच महारैली का जुनून सवार था। इस जुनून के आगे उन्हें गरीब परिवारों का दुख जरा भी नहीं आया। यहां पर महारैली के नाम पर कई करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया गया लेकिन कोई यह पूछने वाला नहीं था कि उन्हीं के राज्य में कितने गरीब भूखे सो रहे हैं और यहां जश्न के नाम पर उड़ाने के लिए इतना पैसा कहां से आया।
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि ऐसे नेता हमारे पालनहार बने हैं। हमारे देश की जनता भूखों मरना पसंद करेगी लेकिन ऐसे दैव्य स्वरूप नेता के खिलाफ आवाज उठाना इन्हें कतई बर्दास्त नहीं होगा।
अभी तक हमने देखा है कि लोग अपनी मुरादों को पूरा करने के लिए देवी-देवताओं के दर्शन करने जाते हैं। और कुछ तो ऐसे होते हैं जो घुटनों के बल, कुछ हांथ पर जलते हुए दिए लेकर.. कहने का मतलब कई तरह से अपनी मान्यताओं को पूरा करते हैं।
कुछ इसी तरह से हुआ माया की महारैली में भी। दलितों की देवी कही जाने वाली मायावती का सिर्फ एक दर्शन भर पाने के लिए एक इंसान इस रैली में घुटनों के बल रेंगता हुआ आ पहुंचा था। इसकी यही इच्छा थी कि वह अपनी देवी मायावती का दर्शन कर ले और उसने किया भी।
खैर यह बात तो हुई देवी के दर्शन की। अब बात आती है नोटों की देवी की अर्थात इस महारैली में बसपा कार्यकर्ताओं ने 20 मीटर लंबी नोटों की माला कुमारी बहन मायावती के गलों में सुशोभित किया। इस माला में एक-एक हजार के नोट लगे हुए थे। अनुमान लगाया गया कि इस माला में कई करोड़ के नोट का इस्तेमाल किया गया था।
धन्य हैं बहन मायावती, इतना बड़ा उपहार लेते वक्त उन्हें जरा भी झिझक महसूस नहीं हुआ। उन्हें यह भी खयाल नहीं आया कि मैनें तो एक बार मनगढ़ हादसे में पीड़ित परिवारों को मदद के नाम पर ठेंगा दिखा दिया था। उन्हें यह भी अहसास नहीं हुआ कि बरेली में कई परिवार घर के अंदर बंद रहकर घुटन महसूस कर रहे हैं।
खैर इस देवी को तो दौलत और लोगों के हुजूम के बीच महारैली का जुनून सवार था। इस जुनून के आगे उन्हें गरीब परिवारों का दुख जरा भी नहीं आया। यहां पर महारैली के नाम पर कई करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया गया लेकिन कोई यह पूछने वाला नहीं था कि उन्हीं के राज्य में कितने गरीब भूखे सो रहे हैं और यहां जश्न के नाम पर उड़ाने के लिए इतना पैसा कहां से आया।
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि ऐसे नेता हमारे पालनहार बने हैं। हमारे देश की जनता भूखों मरना पसंद करेगी लेकिन ऐसे दैव्य स्वरूप नेता के खिलाफ आवाज उठाना इन्हें कतई बर्दास्त नहीं होगा।
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