Monday, March 15, 2010

महिलाओं को खुली हवा में सांस लेने दो

महिलओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाने के लिए सरकार 33 फीसदी महिला आरक्षण का नया कानून बनाने पर अमादा है। राज्यसभा में तो यह बिल ध्वनिमत से पास भी हो गया। लेकिन इस बिल के मौजूदा स्वरूप को लेकर विरोधी खेमें में हलचल भी है।

विरोधी खेमा चाहता है कि बिल में पिछड़ी और मुस्लिम महिलाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। इस बात को लेकर अब वे बिल में सिर्फ संशोधन चाहते हैं बल्कि 33 फीसदी बिल में एक अलग से कोटा बनाकर इन महिलाओं को जगह देने की मांग भी कर रहे हैं।

महिलाओं को आरक्षण मिलना भी चाहिए। आखिरकार आज के समय में वे हर काम कर रही हैं जो पुरुष कर रहे हैं। उन्हें और आगे बढ़ाने के लिए..उनके अंदर की दबी शक्ति को बाहर निकालने के लिए..राजनीतिक क्षेत्र में सहभागिता करने के लिए बिल का होना तो जरूरी हो गया था। इससे सिर्फ महिलाओं को हौसला मिलेगा बल्कि अब बड़ी संख्या में महिलाएं गांवों से भी निकलकर सामाजिक दायित्वों में सहभागिता करेंगी।

वैसे आज के समय को देखा जाए तो भी हमारे देश की महिला राष्ट्रपति महिला, किसी पार्टी (कांग्रेस) की अध्यक्ष महिला, रेल मंत्री महिला, लोकसभा स्पीकर महिला, लोकसभा में विपक्ष की नेता महिला, यूपी की मुख्यमंत्री महिला का डंका बज रहा है। ऐसे में बिल के जाने पर तो अब महिलाओं को और ज्यादा प्रोत्साहन और एक नई शक्ति मिलेगी।

इतनी शक्ति..इतना फायदा की बात तो हम कर रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ कुछ महिला वर्ग को उनकी हदें समझाई जा रही हैं। यह बात किसी और वर्ग की नहीं बल्कि मुसलमान महिलाओं के लिए हैं। इनके घर के मालिकों को अब यह डर सता रहा है कि आरक्षण का अधिकार मिल जाने पर हम तो घर में कैद हो जाएंगे, हमारे घर की महिलाएं हमसे कहीं आगे निकल जाएंगी।

इसी डर को देखते हुए पहले भी कई बार मुस्लिम महिलाओं को उनके बाहर निकलने, समाज में सक्रिय योगदान पर फतवा तक लगा दिया गया है। दूसरी तरफ महिलाओं को जंजीरों में बांधने के लिए शिया धर्म गुरू कल्‍बे जव्‍वाद ने तो यह तक कह डाला इस्लाम में महिलाओं को सिर्फ अच्छे नस्ल के बच्चा पैदा करने को कहा गया है। घर की चाहरदीवारी के अंदर रहकर उन्हें सिर्फ परिवार की देखभाल का अधिकार हैं। राजनीति और घर के बाहर का हर काम पुरुषों को ही करने का हक है।

आरक्षण पर बिलखते हुए उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े मदरसे नदवा-उल-उलेमा के प्रमुख मौलाना सर्रदुर रहमान आजमी नदवी ने तो मुस्लिम महिलाओं को कड़ी ताकीद दे डाले हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति करना सिर्फ पुरुषों का काम हैं, इस्लाम में महिलाओं को लोगों के बीच आकर किसी बात को कहने की सख्त मनाही है। मुस्लिम महिलाओं के लिए इस्लाम में सिर्फ घर की देखभाल करने को कहा गया है। नदवी साहब ने तो यहां तक कह डाला कि अगर मुस्लिम महिलाओं को राजनीति और सामाजिक कार्य करना है तो वे मर्द बन जाएं।

इन मौलवियों की ऐसी घटिया बयानबाजी सुनकर तो यही लगता है कि ये लोग अभी भी पुरानी और रूढीवादी विचारधारों पर जिंदा हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान को भी देखकर इन्हें शर्म नहीं आती कि यहां पर महिलाओं को किस तरह से अधिकार दिए गए हैं। बड़े से बड़ा पद भी यहां की महिलाओं ने संभालकर दुनिया को दिखा दिया की वे हम बुर्का जरूर पहनती हैं लेकिन हम किसी मर्द से कम नहीं हैं। ऐसे में हमारे यहां मुस्लिम महिलाओं के पैरों में जंजीर बांधना कितना सही है। कब तक ये महिलाएं बुर्का और बच्चा पैदा करने की मशीन बनी रहेंगी। दुनिया कहां से कहां जा रही है लेकिन हमारे मौलाना भाई अपनी वही घिसीपिटी और पुराने समाजिकता की दुहाई देते रहते हैं।

मौलवी साहब महिलाओं को खुली हवा में सांस लेने दो, उनके पैरों को मत बांधों। हर महिला की तरह इन्हें भी समाज और देश के विकास में हिस्सा लेने दो। पुरानी विचारधारा से निकलकर देश-दुनिया में क्या हो रहा है देखो। देश में स्वतंत्रा का अधिकार है, हर किसी को रहने खाने, नौकरी करने, कहीं भी आने जाने का अधिकार पहले से ही हैं। ऐसे में महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी करके उन्हें कैद करने की कोशिश भविष्य में हमारे लिए घातक साबित हो सकती है।

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