चौराहे पर पहुंचते ही आंखों को सहसा एक झटका लगा, ऐसा मालूम पड़ रहा था जैसे सपना देख रहा हूं। लेकिन वह जश्न सचमुच अभी तक की जिंदगी का सबसे बड़ा जश्न था। जिधर नजर जाती उधर सिर्फ लोगों का हुजूम ही दिखाई पड़ रहा था। कोई गांगुली की स्टाइल में शरीर से कपड़े उतार हाथ में लहरा रहा था तो कोई मोटरसाइकल पर खड़े होकर जश्न में अपनी भागीदारी दे रहा था। चौराहे पर ढोल-नगाड़े की गूंज के साथ हर कोई डांस में इतना मशगूल था कि रोड़ पर आने-जाने वाली गाड़ियों के पों...पों..की आवाज भी नहीं सुनाई पड़ रही थी। हम बात कर रहे हैं 2 अप्रैल 2011 की रात की। जिस दिन टीम इंडिया ने श्रीलंका को पटखनी देकर 28 साल के सूखे को हरा भरा कर दिया। वर्ल्डकप जीत के साथ टीम इंडिया ने जैसे ही वर्ल्डकप पर एकाधिकार जमाया वैसे ही पूरा देश और देश के बाहर रह रहे हमारे एनआरआई भाईयों ने जश्न मनाना शुरु कर दिया। जीत का ऐसा जश्न तो आज तक मैंने नहीं देखा। मैं उस समय ऑफिस में ही था। रात तकरीबन 12 बजे मैच जीत की कुछ साइड स्टोरी लगाने के बाद ऑफिस के बाहर निकला। सुबह ऑफिस जल्दी आना था इसलिए घर निकलने का मन बनाया। लेकिन मेरे कुछ मित्रों (पाशा और संजीव) ने जीत के जश्न को शहर में देखने का मन बनाया। काफी ना नुकुर के बाद मैं भी तैयार हो गया और एक टू व्हीलर पर थ्री लोग सवार हो जश्न मनाने निकल पड़े। यह टीम इंडिया की जीत नहीं थी हर भारतीय की जीत थी। ऐसे में भला मैं अपने आपको कैसे रोक पाता। रोड़ पर हाथ लहराते, नारे लगाते हुए हम निकल पड़े। सड़क पर हर आने जाने वाला शख्स भारत माता की जय...जैसे कई नारे लगा रहा था। हम जैसे ही डीबी सिटी पहुंचे वहां का नजारा देखने लायक था। ऐसे लग रहा था जैसे पूरा देश जीत का जश्न मनाने यहां पर इकट्ठा हो गया है। इतनी भीड़ किसी चुनावी रैली और समारोह में भी नहीं दिखती जितनी यहां पर मौजूद थी। सभी नाच रहे थे, रंग-अबीर-गुलाल उड़ रहा था। दिवाली पर भी आकाश में इतना रंगीन नजारा नहीं दिखता जितना आज था। हर सेकेंड में ऐसे लग रहा था जैसे खुद भगवान ऊपर से रंगीन फूलों की बारिश कर रहे हैं। उस दिन मैं इतना खुश था कि बयां नहीं कर सकता। उस भीड़ में हालांकि मैं घुसा नहीं बस दूर खड़े होकर उस जश्न को अपनी खुली आंखों में कैद कर रहा था। मेरे दोनों दोस्त लोगों के साथ भंगड़ा कर रहे थे। वो नजारा ऐसे था जैसे धरती पर स्वयं भगवान उतर आएं हो और जश्न हो रहा हो। उस रात मुझे नहीं लगता किसी घर में कोई रुका होगा। मैं भोपाल में जहां-जहां भी घूमा मुझे परिवार के संग लोग जीत का जश्न मनाते हुए दिखे। क्या बूढ़े-क्या जवान सभी मानों एक ही रंग में रंग गए हों। डीबी सिटी के बाद न्यू मार्केट की तरफ हम गए उसके बाद फिर कहीं जाने की हिम्मत नहीं हुई। क्योंकि ऐसा जश्न देखने के बाद मैं अपना होश ही खो बैठा था। ऐसी खुशी और जश्न में जिस ढंग से भोपाल डूबा था उसे देखकर तो यह अंदाजा लग गया कि आज हर घर में दिवाली मन रही होगी। इतना घूमने फिरने के बाद अब थोड़ा भूख लग आई थी लेकिन कहीं खाने की दुकान नहीं दिखी, सभी दुकान बंद करके खुशियां मना रहे थे। काफी घूमने-फिरने के बाद एक जगह भोजन की दुकान दिखी। अंदर काफी देर बैठने के बाद थोड़ा खाना नसीब हुआ। लगभग 3 बजे रात घर पहुंचा। वाकई में वो रात यादगार बन गई।
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