Wednesday, August 3, 2011

बेचके सहनशीलता कमाएंगे विदेशी मुद्रा

भारतवासी धैर्य रखते हैं।

विकट सहनशील होते हैं।



इतने सहनशील होते हैं कि बम पटक दो, मारकाट मचा दो चूं तक न करेंगे। हालांकि कई बार जनता उकता जाती है तो उत्पात पर उतर आती है। लेकिन हमारी सरकार तो ससुरी इतनी भयंकर सहनशीलता रखती है कि अगर इसका ही निर्यात करने लगें तो सारी विदेशी मुद्रा की जरूरत ही खत्म हो जाए। हर देश को सप्लाई करेंगे सहनशीलता। यह आईडिया एकदम सॉलिड है।


दुनिया में सहनशीलता के निर्यात में हमारा ही एकाधिकार होगा। वैसे हम प्राचीनकाल से ही इसे विश्व को सप्लाई करते आ रहे हैं बस पहले रोकड़ा कमाने की नहीं सोचते थे। अब भई व्यापार का जमाना है। धंधा अगर ट्रैक पर आ गया न तो समझो निकल पड़ी...।


संयम-धैर्य...हम कड़ा जवाब देंगे...हमें कमजोर न समझें...समय आने दो बता देंगे...आदि मदों में पूरा सहनशीलता का पैकेज तैयार है। गोदाम में यह इतना भर गया है कि कहीं सड़ने की नौबत न आन पड़े। भिजवा दो दुनिया के किसी भी देश में। जहाजों से..., हवाई जहाजों से। बोरों में लदवाकर, गधों पर भी रवाना किया जा सकता है। अरे भई कई देशों में जहाज या हवाई जहाज का जुगाड़ जो नहीं है। कैसा चोखा धंधा है, कितनी जोरदार है व्यापारी बुद्धि। वैसे यह धंधा सिर्फ हमारे ही बूते की बात है, सबके बस की नहीं...।


हालांकि आप कह सकते हो कि इसे खरीदेगा कौन सा देश? हमें छोड़कर दुनिया में कोई बचा ही नहीं सहनशील? वैसे कोई तो देश होगा ही...। इतनी बड़ी दुनिया है..किसी को तो पकड़ ही लेंगे। गुरू, व्यापारी वही जो अंधे तक को आईना बेच दे...। तो संभावना विकट है। विदेशी मुद्गा भारी है। आंखें खुल गईं न लालच से...। लालची कहीं के...।आप कहते हो क्या होता है सहनशीलता से...अरे करोड़ों की विदेशी मुद्रा कमाई जा सकती है। बस वो तो हम कमा नहीं रहे हैं। ये भी हमारी सहनशीलता ही है।


ही में सरकार ने सहनशीलता अच्छा खासा नया स्टॉक भी जमा किया है।मुंबई ब्लास्ट के बाद दिखाई गई सहनशीलता के माध्यम से।


इससे बड़ा एक्जांपल और क्या हो होगा। आर्थिक राजधानी दहल गई, लाशों का ढेर लग गया, खून से सनी सड़कें लेकिन हम आरोपी तक नहीं खोज पाए। धीरे से इस घमाके को भी भूल जाएंगे..पहले भी एक बार भूल चुके हैं। इससे ज्यादा सहनशीलता और क्या होगी।


तो हो सकता है कि अब आपके मन एक प्रश्न कुलांचे भरने लगे...यह सहनशीलता आती कहां से? तो भई इसका जवाब बड़ा ही सिंपल है। हमारे देश में तो नेता पैदा ही सहनशीलता के साथ होते हैं। केवल घपले-घोटाले में अगर कोई अड़ंगा लगे तो वहीं उनका खून खौलता है, वरना तो हम जन्मजात सहनशील हैं ही। आपको तो पता ही है। फिर हमारे देश की सरकार इन्हीं सहनशील नेताओं से मिलकर बनती है।


देश ही क्या हम तो आसपड़ोस के देशों में भी सहनशीलता भरने के चक्कर में रहते हैं लेकिन क्या करें ससुरे लेते नहीं हैं, तो क्या करें हम तो देने के लिए तैयार बैठे हैं। पिद्दी से हैं हमई को आंखें दिखाते हैं।


लेकिन मजाल है कि हम गुस्साएं, खुदई का मुंह दूसरी तरफ कर लेते हैं। तो दूसरी तरफ वाला आंखें दिखाने लगता है। हम उसे भी सहनशीलता सीखने लगते हैं। वो भी हरकतों से बाज नहीं आता। हम घिरे हैं लेकिन जनम के सहनशील ठहरे...दोनों को माफ करके भूल जाते हैं। वे फिर भी हमारे देश में घुसकर घमाके करते हैं, गोलियां बरसाते हैं, हमें ललकारते हैं...हम भूल जाते हैं, सहनशील जो ठहरे।आपको तो पता ही है।