Sunday, August 22, 2010

शनि भगवान से अब भाग रहे हैं लोग!

अभी तक मंदिरों में ही देखा जाता रहा है कि यहां पर मौजूद पंड़ित बाहर से आए लोगों से जमकर पैसा वसूलते हैं लेकिन इन दिनों शहरों में भगवान को आगे करके एक और तरीके से पैसा वसूला जा रहा है। यह कोई और नहीं बल्की जल्दी ही क्रोधित हो जाने वाले भगवान शनि हैं। इनके तेज और इनके स्वभाव से आज भी लोग डरे रहते हैं।

शनि भगवान के मंदिर में लोग जाकर जहां पर पूजा करते हैं वहीं आज खुद भगवान घर-घर जाकर चढ़ावा मांग रहे हैं। ऐसा लग रहा है भगवान को भी खाने के लाले पड़ गए हैं। आज कल शहरों में खासकर छोटे-छोटे बच्चे एक छोटी सी बाल्टी लेकर, उसमें भगवान शनिदेव की मूर्ति और उसमें तेल और अगरबस्ती लेकर रोड़ों पर भारी संख्या में देखे जा सकते हैं। यह आमतौर पर शनिवार को ही दिखाई देते हैं लेकिन इतने दिखते हैं कि देखने वाला बोर हो जाता है।

छोटे-छोटे बच्चे रस्ते पर चलते हर आदमी, हर दुकानदार के सामने जाकर पहले तो भगवान को आगे करने के साथ ही कुछ चढ़ावे के लिए भी बार-बार आग्रह करता है। इतना ही नहीं एक लड़के के जाने के तुंरत बाद ही पीछे से एक और लड़का उसी अंदाज में भगवान के नाम पर पैसा मांगता है। हद तो तब हो जाती है जब ये बच्चे तब तक नहीं जाते जब तक उस बाल्टी में कुछ पैसे न डाला जाए।

अब तो इतने बच्चे दिखने लगे हैं कि भगवान की तरफ लोग देखना तक बंद कर दिए हैं, जिस भगवान के दर्शन करने के लिए लोग महाराष्ट्र के शनि शिग्नापुर और अन्य जगह पर जाते हैं और अपनी मनोकामना पूरा करने के लिए भगवान के सामने मत्था टेकते हैं लेकिन अब तो हद ही हो गई है। अब भगवान स्वयं दर्शन दे रहे हैं। शनि भगवान के नाम पर जितना ही लोग डरते थे अब उतना ही भगवान से लोग पीछा छुड़ाने लग गए हैं।

सही भी है लोगों का जीना दूभर हो गया है, खासकर शनिवार को सड़को पर निकलना दूभर हो जाता है। अगर किसी दुकान पर खड़े होकर चाय पी रहे हो या फिर नाश्ता कर रहे हो तो फिर शनि भगवान को लेकर छोटे बच्चों का आना-जाना लगा रहेगा। और यह बच्चे इतने ढीठ़ होते हैं कि एकदम सिर पर चढ़ आते हैं, कुछ खा रहे हो या पी रहे हो तो मुंह ताकते रहेंगे। जब तक न दो यह बच्चे टस से मस नहीं होते।

हे भगवान क्या अब आपके घर खाने के इतने लाले पड़ गए हैं कि घर-घर जाकर पैसा मांगना पड़ रहा है। अभी तक लोग आपके पास जाते थे अब आप स्वंय लोगों को दर्शन दे रहे हैं लेकिन यह तरीका देख लोग आपसे पीछा छुड़ा रहे हैं।

Friday, August 20, 2010

दहेज लोभी दानवों से किसी तरह मिली मुक्ति

दहेज लोभी दानव कलयुग में कुछ ज्यादा ही पैर पसारने लगे हैं। आए दिन दहेज को लेकर घर की बहू-बेटियां प्रताड़ित हो रही हैं, जहां देखो वहां दहेज के नरभक्षी अपनी प्यास बुझाने के लिए हैवानियत की सारी हदें पार करने में जरा भी गुरेज नहीं करते, वे यह भी जानते हैं कि उनकी भी बेटी किसी दूसरे घर में जाएगी लेकिन वे दूसरे घर से आई हुई लड़की के ऊपर चंद रुपयों की खातिर ऐसे सितम बरपाते हैं जो मानवता को पूरी तरह से शर्मसार कर देने वाली होती है। दहेज की मांग न पूरा होने पर लड़कियों को जला देना, जहर देकर मार डालना, फांसी लगा देना आदि घटनाएं प्रतिदिन देखने को मिल ही जाती हैं।

दहेज लोभी दानवों का एक किस्सा हमारे घर के बगल में ही पिछले दिनों देखने को मिला। यहां पर हुआ कुछ इस तरह जिसे सुनकर आप भी इन दहेज लोभी राक्षसों को गाली दिए बिना नहीं रहेंगे। घर के बगल में रहने वाले एक काका अपनी सबसे छोटी लड़की की शादी करने के लिए काफी परेशान थे। उनकी पांच लड़की और एक लड़का हैं सभी की शादी हो गई है और मौजूदा समय में एक लड़की की शादी करनी बाकी है। शादी को लेकर काका काफी परेशान रहते थे, संयोग से इसी बीच किसी ने उन्हें एक शादी बताई कि लड़का एमआर है, और लड़के का पिता कोई पुलिस अधिकारी है। उसका इलाहाबाद में अच्छा मकान भी है। लड़के का पूरा परिवार पढ़ा-लिखा है, सब अच्छी-पोस्ट पर मौजूद हैं। इतना सुनकर काका तो फूले नहीं समाए और झटपट कि कहीं दूसरा कोई मौका न मार ले इसके पहले हम ही चढ़ाई कर देते हैं। बस क्या था काका कुछ लोगों को साथ लेकर उनके घर पहुंच गए।


हालांकि लड़का काफी स्मार्ट दिख रहा था, वह किसी दवा कंपनी में 15 हजार कुछ पाता था। काका ने लड़के और उसके पिता से बातचीत की तो वे मस्त हो गए कि ऐसा लड़का तो चिराग लेकर ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। सब कुछ बातचीत हो गई, अब बारी आई दहेज की तो लड़के वाले पहले ही समझ गए थे कि सामने वाला आसामी काफी दमदार है (काका मुंबई में एक बड़े सरकारी अधिकारी थे)। इसलिए साढ़े तीन लाख कैस और एक पांच लाख की कार की मांग कर डाली। काका ने भी सोचा चलो आखिरी लड़की है दिल खोलकर खर्चा करेंगे। उनके लिए इतना दहेज देना कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन लड़का सिर्फ एमआर था कोई आईएएस अधिकारी नहीं। इसके पहले काका दो बार लड़के के घर जाकर सब कुछ देख आए थे साथ में भारी-भरकम विदाई (बख्सीस) भी दिए थे।


सब कुछ फिक्स हो गया। अब बात आई लड़की को देखने की। काका ने कहा इलाहाबाद में एक होटल में कुछ कमरे बुक करा देते हैं, वहीं आकर आप लोग लड़की को देख लेना। होटल का कमरा बुक हो गया, काका ने पहले ही पूछ लिया था कि कितने लोग आएंगे, तो सामने से जवाब मिला था तकरीबन 15-20 लोग। काका ने पूरे पचास लोगों के खाने-पीने का अच्छा इंतजाम करवा दिया था। घर से मेरे पापा भी गए हुए थे और काका की बड़ी लड़की, उनकी बहू और कुछ और रिश्तेदार। तकरीबन इधर से 20 लोग हो गए थे। लेकिन हैरानी तो तब हो गई जब लड़के वाले पूरे 35 के लगभग आ धमके।

काका ने किसी तरह से इंतजाम करवा दिया। जमकर खातिरदारी हुई। लड़की को दिखाने की रश्म भी पूरी हो गई। काका ने जितने भी लोग आए थे सबके लिए अच्छे कपड़े और पांच-पांच सौ रुपए दिए लेकिन हैरानी वाली बात तो यह थी कि लड़के वाले जरा भी शर्म महसूस नहीं किए और सिर्फ एक डिब्बा सोहनपापड़ी लाए थे। लड़की को पहनाने के लिए एक अंगूठी और कुछ रुपया। लेकिन जितने लोग आए थे सबको बिदाई दिलवाने के लिए लड़के के बाप ने काका को जमकर चूसा।

बात यहीं नहीं रुकती अभी तो पिक्चर पूरा बाकी है। इसके कुछ दिन बाद लड़के के पिता ने गांव जाकर काका का मकान और हमारे घर का कच्चा मकान देखा। यहां पर भी ये भाई साहब कंजूसी की हदें पार करते हुए सिर्फ एक किलो मीठा लेकर गए थे। मैं किसी लालच वश ऐसा नहीं कह रहा हूं कि इन्होंने कुछ नहीं लाया मैं तो यह कहना चाहता हूं कि इतना लेने के बाद खर्च करने की भी हिम्मत जुटाओ। घर पर ही काका ने यह पूछा कि आप शादी कहां से करेंगे तो लड़के के बाप ने बोला हम तो गांव से शादी करेंगे। इसके बाद इन्होंने (लड़के के बाप) कहा कि अगले सप्ताह बरक्षा करने का शुभ मुहूर्त (बरक्षा जिसमें लड़के को जनेऊ और कुछ रुपए दिए जाते हैं) है आज ज्यादा कुछ नहीं सिर्फ जनेऊ लेकर आ जाना, बाकी तिलक हम नवंबर में करेंगे। शादी की भी तारीख दिसंबर में तय हो गई थी। इसी बीच लड़के की तरफ से जिस कार की डिमांड की गई थी उससे थोड़ा अलग की डिमांड कर दी गई। अब की बार जो कार मांगी गई वह पहले वाली की अपेक्षा लगभग 50 हजार मंहगी आती है। खैर काका ने यह भी मांग तहेदिल से स्वीकार कर ली। अब काका को लग रहा था कि यह रिश्ता हाथ से नहीं जाना चाहिए, अगर यह चला गया तो इतना अच्छा दामाद नहीं मिलेगा लेकिन वे शायद यह नहीं समझ पा रहे थे कि उनके साथ कितनी बड़ी साजिश रची जा रही है।

बरक्षा देने के लिए काका ने मेरे पिताजी और घर में एक सीनीयर है उनको लेकर लड़के के गांव गए। इसके पहले काका ने पांच प्रकार का फल, ढ़ेर सारी मिठाई, कुछ बर्तन और 51 हजार रुपए नगद ले गए थे। हालांकि मेरे पिताजी मना कर रहे थे कि जब उन्होंने बोला है तो आप कम ही पैसा दें। लेकिन सही ही कहा गया हो जो होना वह होकर ही रहता है। वहां पहुंचकर सबकुछ अच्छे से हो गया लेकिन जब निकलने की बारी आई तो फिर सबको विदाई देने को कहा गया। खैर काका यहां पर भी पीछे नहीं रहे और सबको पांच-पांच सौ रुपए दिए। लड़के के बाप को इतने से भी संतोष नहीं हुआ और यह दहेज लोभी दानव ने जो घर में नहीं थे उनकी भी विदाई काका से मांगी। काका ने सबको संतुष्ट किया।

लेकिन काका जब घर आए तो किसी तीसरे आदमी से खबर आती है कि ठीक से विदाई नहीं की। इसके बाद खबर आई कि इलाहाबाद से शादी होगी। इसके बाद काका का मूड बुरी तरह से ठनक गया। उन्होंने जो शादी के अगुआ थे उनको सारी बात बताई और फिर यह निश्चय हुआ कि कुछ ज्यादा ही तीन-पांच हो रहा है, लगता है शादी कैंसल करनी पड़ेगी। हालांकि इस बात के लिए मैंने भी काफी जोर दिया था कि ये साले काफी घटिया लग रहे हैं, दहेज लोभी है, काका को चूसकर खा जाएंगे। लेकिन मेरी बात का असर नहीं पड़ा। यह सब बात मैं काका के बेटे से की थी। वे मुंबई में रहते थे।

इसके बाद काका बुरी तरह से झल्ला गए और एक बार अगुआ के माध्यम से पूरी बात क्लियर करना चाह रहे थे। हमने और काका के लड़के ने तो साफ कह दिया था कि अगर ज्यादा इधर-उधर की बात हो तो तत्काल शादी रद्द कर दो। लेकिन काका ने एक बार बात करना उचित समझा। मेरा पिताजी, काका और घर के सीनियर ये लोग प्रतापगढ़ (जहां पर लड़के का घर और अगुआ का घर था) में अगुआ के घर गए, वहां पर लड़के के पिता को भी बुलाया गया। फिर उनसे हर बात को लेकर गर्मागर्म बहस हुई। लड़के के पिताजी ने माना कि हां मुझसे गलती हुई है लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। लेकिन काका ने कहा कि अब तो आप हर बात क्लियर कर लें तो ज्यादा अच्छा होगा।

अब यहां पर फिर दहेज का लोभ चरम पर पहुंचने वाला था, काका ने एक डायरी में उनकी डिमांड लिखनी शुरु कर दी। काका ने पूछा कितने लोग आप आएंगे, क्या-क्या चाहिए, कौन सी कंपनी का सामान हो, कितनी विदाई चाहिए.वगैरह.वगैरह। घर आने पर फिर काका का मूड गरम हो गया और अब यह सोचने लगे कि क्यों न एक बार लड़के और लड़की का कुंडली मिलवाया जाए। यह सोच काका एक पंड़ित के पास जा पहुंचे। पंड़ित ने दोनों की कुंडली देखते ही काका पर भड़क गया और बोला अगर यह शादी होगी तो भविष्य में दोनों को भयंकर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। काका ने कई पंड़ितों को कुंड़ली दिखाई लेकिन सबने यही बात कही।

इसके बाद काका के समधी (लड़के के ससुर जो कि इलाहाबाद में रहते हैं) ने लड़के पक्ष वालों के बारे में थोड़ी जानकारी निकाली, तो एक कड़वे सच का खुलासा हुआ। यह पता चला कि इनका न तो इलाहाबाद में कोई मकान है और बाप तो एक तरह का हरामी किस्म का इंसान है। जबकि लड़के वालों ने यह बताया था कि हमारा गांव के साथ इलाहाबाद में भी जगह-जमीन है। खैर इतना पता होने के बाद मेरे पिताजी और काका ने एक प्लान के तहत लड़के के गांव जाकर कुछ और हकीकत जाननी चाही। फिर क्या था दोनों गांव पहुंचे और आस-पड़ोस के लोगों से पूछताछ शुरु कर दी। तो यहां पर भी कुछ हैरान-परेशान कर देनी वाली बातें सामने आईं। यह पता चला कि लड़के का बाप एक नंबर का हरामी है, उसका गांव में इमेज गंदी है। वह रेप केस में फंस चुका है। काका को यह भी पता चला कि लड़का शादी के बाद नौकरी छोड़ना चाहता है, और दहेज में जो पैसा मिलेगा उससे बिजनेस करेगा। यह सब जानने के बाद काका का दिमाग बुरी तरह से खराब हो गया। इसके पहले पंड़ितों ने कुंड़ली पर भी एतराज जताया था।

सब कुछ पता चलने के बाद काका ने लड़के वालों को बताया कि दोनों की कुंडली नहीं मिल रही है इसलिए शादी नहीं कर सकते। जबकि इसके पहले काका का कम से कम दो लाख रुपए खर्च हो चुका था। लेकिन काका को इस बात की परवाह नहीं थी, उनको एक सुकून था कि चलो देर से ही सही कम से कम लड़के वालों की हकीकत तो पता चल गई। नहीं तो लड़की के जाने के बाद ये लोग पता नहीं क्या-क्या डिमांड करते। काका के इनकार के बाद लड़के वालों ने कहा कि हम कुंडली जैसी बातों को नहीं मानते हैं और आप भी इस चक्कर में न पड़े तो ज्यादा ही बेहतर होगा। लेकिन काका ने एक न सुनी। काका को तो अब उनसे पीछा छुड़ाना था।

मौजूदा समय में यह शादी कैंसल हो चुकी है, काका को अपने दो लाख का गम नहीं है, उन्हें सुकून है कि हमारी लड़की की जिंदगी बच गई। हमारी लड़की दानवों के घर जा रही थी लेकिन समय पर आंख खुल गई। भगवान ऐसे दहेज लोभियों से बचाए। इस पूरे घटना में मेरा सिर्फ यही कहना है कि जहां पर इस तरह के दहेज लोभी पड़े हैं उनके घर लड़की वालों को सोच-समझ के कदम रखना चाहिए। यह दहेज के दानव न सिर्फ अपने लड़के का सौदा करते हैं बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ी को भी गर्त में डालने का काम करते हैं। हालांकि हमारे इधर बिना दहेज दिए लड़की का ब्याह करना मुमकिन नहीं है लेकिन फिर भी इस तरह के लालची आदमियों की पहचान तो हो गई।

Sunday, August 15, 2010

क्या अब भी हम आजादी महसूस करते हैं?

आज हम 64वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं लेकिन क्या पता है हम कैसी आजादी में जी रहे हैं। यह शायद सबको पता होगा। देश में आज जो कुछ हो रहा है उसे देखकर जरा भी नहीं लगता कि हम आजाद देश के नागरिक हैं। न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका हर जगह मौजूदा समय में जो हालात देखे जा रहे हैं वह शायद पहले कभी रही होगी। न तो समय पर लोगों को न्याय मिल पा रहा है न ही कोई अधिकारी अपने कर्तव्यों का सही से निर्वहन करता दिख रहा है। रही बात हमारे नेताओं की तो उनकी बात भी करनी बेकार है।

हमारे नेता जिस तरह से सदन में गाली-गलौज करते हुए दिखते हैं वह हमारे लिए सबसे शर्मनाक है। हम कितनी आशाओं के साथ इन्हें अपना प्रतिनिधी चुनते हैं लेकिन सदन के अंदर जाते ही ये लोग जिस तरह का व्यवहार करते हुए दिखते हैं उससे हम क्या कल्पना कर सकते हैं कि अभी भी हमारे यहां पर कहीं न कहीं अशिक्षा की कमी है। हम उसी गुलामी वाले माहौल में जी रहे हैं।

दुनिया हमें सबसे विकसित देश के रूप में देख रही है लेकिन क्या हम उस रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं नहीं.। क्योंकि इसका एक उदाहरण अभी हाल ही में हमारे सामने आया। वह है कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए हो रहे काम में। पचासों देश और लाखों लोग हमारे मेहमान बनेंगे लेकिन उनके सामने अभी से जिस तरह का करप्शन नाम की आग उठी है वह हमें कितने पीछे ले जाएगी यह तो भविष्य ही बताएगा।

हम आज आजादी की बात करते हैं लेकिन महंगाई के ऐसे दौर से हम गुजर रहे हैं उससे न सिर्फ गरीब बल्कि अच्छे-भले मानुष भी झुलस रहे हैं। हर दिन पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ रहे हैं। सरकार घाटा बताकर इजाफा कर देती है। हम मंहगाई, करप्शन की जंजीरों में पूरी तरह से जकड़े हुए हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में गरीबों का पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है क्या कभी किसी ने यह भी सोचा कि जो गरीब हैं वो और गरीब हो जाएंगे। लेकिन गरीब से किसी का कोई लेना देना नहीं क्योंकि हमारे नेता तो अच्छे घरों में रहते हैं, अच्छा खाना खाते हैं, उन्हें गरीब के दुख: दर्द से क्या लेना देना।

हम विकास की बात करते हैं, आतंकवाद, करप्शन पर काबू पाने की बात करते हैं लेकिन जो यह बात करते हैं वही सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं। हमारी सुरक्षा को जिस तरह से ठेंगा दिखाया जा रहा है वह किसी भी गुलामी दौर से कम नहीं है। ट्रेन और हवाई जहाज में यात्रा करने से पहले आज हर इंसान डरता रहता है कि कहीं प्लेन क्रैस न हो जाए, कहीं ट्रेन नक्सलियों का निशाना न बन जाए। आज हम डर के शिकंजे में जी रहे हैं। पता नहीं कब और कहां पर आतंकवादी विस्फोट कर बैठें यह किसी को पता नहीं। हम बात करते हैं आजादी की, ऐसी आजादी किस काम की हर वक्त हम डर के आगोश में जिंदा रहें। घर से तो निकलते हैं लेकिन वापस आएंगे या नहीं यह कोई गारंटी नहीं।

आज भी हम अंग्रेजों के शासन काल में जी रहे हैं लेकिन उस समय एक चीज बढ़िया थी कि इतना करप्शन नहीं था। उस समय क्राइम पर सख्त सजा दी जाती थी लेकिन आज की बात हम करें तो कितना बड़ा अपराधी ही क्यों न हो उसे सजा तो क्या वह जेल में भी बंद होता है तो उसके लिए वीआईपी व्यवस्था होती है। कोर्ट में क्रिमिनल के खिलाफ केस चले तो वह जमानत पर फिर क्राइम करने के लिए छोड़ दिया जाता है। क्रिमिनल पर जुर्म साबित करने के लिए कई साल लग जाते हैं। ऐसी आजादी से तो अग्रेंजों का ही शासन ठीक था कम से कम इतना करप्शन और इतना क्राइम तो नहीं था।

कोई भी काम हो बिना पैसा दिए वह पूरा नहीं हो सकता। गरीब सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते भगवान को प्यारा हो जाता है लेकिन उसे न्याय नहीं मिल पाता। ऐसी आजादी में जी रहे हैं हम। कोर्ट की बात की जाए तो हम देखते हैं ३क्-३क् साल से केस चल रहे हैं लेकिन आज तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। इस बीच न्याय की चाह रखने वाला भले ही ऊपर चला गया हो।

हमने पिछले दिनों देखा ट्रैफिक पुलिस गाड़ी चेकिंग कर रहे थे, ये लोग खासकर स्कूली लड़कों को रोक रहे थे, उनसे गाड़ी का सारा कागजात मांग रहे थे। मैं बगल में खड़ा देख रहा था। पुलिस कागजात न रहने पर एक रसीद काटते थे खैर यह तो लीगल काम था लेकिन बगल में ही एक पुलिस दबे हाथों कुछ पैसे लेकर लोगों को जाने दे रहा था। मुझे यह देखकर काफी गुस्सा आया लेकिन उस समय मैं कुछ बोल न सका।

हर जगह करप्शन है, इस गुलामी से अब शायद ही आजादी मिल सके क्योंकि मैं यह भी देख रहा हूं कि बड़े-बड़े अधिकारी, नेता, मंत्री के यहां पर सीबीआई छापे मारती है और यहां पर करोड़ो रुपए बरामद होते हैं। अब जब यही लोग खा-खा के मोटे हो रहे हैं तो हमारे लिए तो यह आजादी नहीं हो सकती। आजाद तो हम तब होते जब ऊपर से नीचे तक सभी लोग बेदाग होकर काम करते।

Friday, August 13, 2010

कश्मीर में फहरा पाक का झंडा

आज यह देखकर एक बार फिर हैरानी हुई कि आखिर ये लोग किस हद तक जा सकते हैं। सरकार चाह कर भी इनके लिए कुछ नहीं कर सकती क्योंकि यह लोग खुद नहीं चाहते कि मुल्क में अमन-चैन आए। आज एक रैली निकाली गई जिसमें देखा गया कि कुछ युवक पाकिस्तानी झंड़े को हवा में लहरा रहे हैं। भारत में इस तरह के किसी भी देश के झंड़े को फहराना एक तरह का अपराध है।

पिछले कुछ दिनों से आग में जल रही घाटी में सुकून के वो पल कब आएंगे यह तो पता नहीं लेकिन आज जिस तरह से यहां पर देखा गया वह हैरान कर देने वाला था हालांकि पिछले कुछ दिनों पर नजर डाले तो यह अपने आपमें कोई पहली घटना नहीं है जब यहां के लोगों ने पाकिस्तानी झंड़े फहराए हैं। पहले भी कई बार इस तरह की हरकतें की जा चुकी हैं।

वैसे यह सब अलगाववादी नेताओं का किया धरा है जो अपने स्वार्थ को सीधा करने के लिए आम लोगों को पहले तो उकसाते हैं उसके बाद इन्हें आगे करके अमन और चैन के रास्तें में कांटे बिछा देते हैं। आम लोगों को चंद रुपए देकर पुलिस पर पत्थरबाजी करवाना, भारतीय झंडे को जलाना, पाकृति सौंदर्य को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाना आखिर कब तक चलेगा। इन लोगों को क्या मिलबैठकर बातचीत करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, स्वर्ग की घाटी को कब तक जलाया जाएगा।

प्रधानमंत्री चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं, यहां पर माहौल आज एक बार फिर से खराब हो गया है लेकिन आज ही क्यों पिछले कितने दिनों से यहां पर क्या हो रहा है वह भारत के लोग ही नहीं पूरा विश्व देख रहा है। दुनिया के सामने हमारी क्या इमेज बन रही होगी, इसकी किसी को खबर नहीं। अब तो सैलानी भी यहां पर आने से डरने लगे हैं।

अमरनाथ यात्रा आतंकी हमले के खौफ में किसी तरह से समाप्त हो गई लेकिन अब इन अलगाववादियों का खौफ बरकरार बना हुआ है। मेरे हिसाब से तो अब यहां पर सरकार को पूरी तरह से आगे आना चाहिए क्योंकि मुझे तो अब नहीं लगता कि बैठकर कोई रास्ता निकाला जा सकता है।

Monday, August 2, 2010

घाटी में कब लौटेगा अमन-चैन

धरती पर स्वर्ग की नगरी कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर के हालात अब देखे नहीं जा रहे हैं। पिछले कई महीनों से यहां पर जो हो रहा है उसके लिए हम किसको दोष दें यह समझ में नहीं रहा है। ताजा झड़प में आज भी चार लोग मौत की नींद सो गए और पिछले चार दिनों में तो पुलिस और लोगों में पथराव और गोलियां चलीं उसमें अब तक १७ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।

जहां तक मैंने सुना है इतनी जबरदस्त हिंसा पहले कभी नहीं हुई, अगर हुई भी तो वह कुछ ही दिनों के लिए। लोगों में इतना ज्यादा क्रोध, गुस्सा है कि वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। सुबह सोकर उठते हैं तो मन में यह विचार आता है कि भगवान आज तो वहां पर माहौल अमन और चैन भरा हो लेकिन ऑफिस आकर सबकुछ पिछले दिनों जैसा घटित होता है।

सरकार भी यहां के लोगों के सामने पूरी तरह से बेबस हो चुकी है, तभी तो बार-बार अपील करने पर भी कोई ऐसा नहीं है जो शांति का पैगंबर बनकर सामने आए। लोगों में अब भारी निराशा छा गई है कि यहां पर अब कब सुबह होगी। कब तक यह अंधेरा छाया रहेगा। हिंसा के डर से लोग घरों से निकलने में पूरी तरह सिहर रहे हैं। कई दिनों से दुकाने नहीं खुलीं, स्कूलों में ताला लटका है, सरकारी दफ्तरों में काम करने वालों की संख्या भी के बराबर हो गई है।

आखिर यहां पर लोग क्यों शांती नहीं आने देना चाहते हैं, क्यों लगातार कानून की सरेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। यह समझ से परे हैं, क्योंकि अगर सरकार इनके साथ बैठने को तैयार है तो फिर इन्हें हिंसा का रास्ता क्यों सबसे बेहतर मालूम पड़ रहा है। मुझे याद है कुछ दिन पहले केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि जैसे ही घाटी में थोड़ा माहौल शांत होता है, वैसे ही यहां से सेना हटा दी जाएगी। इतना आश्वासन देने के बावजूद भी यहां के लोगों के कानों में जूं तक नहीं रेंगा है। बस हिंसा, मार-धाड़, गाड़ी फूंकना, पत्थरबाजी करना, सरकारी मकानों को बुरी तरह से नष्ट करना, यही रह गया है।

ये लोग यह जरा भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आज तक हिंसा का रास्ता अपनाकर किस समस्या का हल निकला है। बैठकर अच्छे से बातचीत हो तो सब कुछ ठीक हो सकता है लेकिन इसके लिए किसी किसी को आगे आना होगा। सरकार को पूरी तरह से दोष नहीं दिया जा सकता है, अगर कोई मुद्दा है जिसको लेकर लोग हिंसा पर उतारू हैं तो उन्हें सामने आना होगा।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुला ने भी लोगों से आग्रह किया कि बैठकर समस्या का समाधान करते हैं लेकिन यहां सुनने को कोई तैयार नहीं है। खैर अब सरकार को कुछ तो करना होगा जिससे यहां पर फिर वहीं अमन-चैन सके जो पहले था। आज यहां पर सैलानी आने से पूरी तरह से डरते हैं कि कहीं कुछ घटना घट जाए। तो सरकार को सैलानिकों के दिलों में बैठे डर को भी निकालना होगा साथ ही यहां के लोगों में एक विश्वास की आस जगानी होगी कि हम आपकी हर उस बात को मानेंगे जो देश हित में होगा लेकिन सबसे पहले आप लोग हिंसा का रास्ता छोड़ें।