देश में सच बोलने, सच के खिलाफ लड़ने की कीमत बहुत खौफनाक हो सकती है। इसकी एक बानगी मप्र में एक आईपीएस ऑफीसर की मौत ने दिखा दिया है। इस आईपीएस ऑफीसर नरेन्द्र का कसूर सिर्फ इतना था कि वह भूमाफियाओं के रास्ते में आ गया था। होली के रंग को भी दरकिनाकर कर उसने अपनी जिम्मेदारी निभाई। लेकिन उसे मिली मौत। इन माफियाओं को पनाह देने वालों की आंख की किरकिरी भी यह जांबाज बन चुका था।
पनाह देने वाले कोई और नहीं बल्कि सत्ता में काबिज कई बड़े नेता हैं। तभी तो आईपीएस की मौत के बाद इनकी गंदी जुबान से वही निकला जो आम नागरिक उम्मीद नहीं कर सकता था। शर्म तो तब आई जब इस अधिकारी की मौत के जिम्मेदार लोगों को सजा दिलाने के लिए न्यायिक जांच के आदेश दिए गए।
यह आदेश कोई और नहीं प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने दिए। एक आम आदमी की मौत की जांच अगर सीबीआई कर सकती है तो एक आईपीएस अधिकारी की मौत की जांच सीबीआई से क्यूं नहीं। हमें तो अपने आप पर शर्म आती है, जब इन नेताओं के भाषण को सुनते हैं। आईपीएस की मौत पर कोई भी नेता ढंग से मुंह नहीं खोल सका। अब तो मध्यप्रदेश को माफिया प्रदेश कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा।
यही किसी नेता के साथ हुआ होता तो पूरे देश में हो हल्ला, दंगा फसाद, शुरु हो गया होता। लेकिन एक ईमानदार ऑफीसर की मौत का तमाशा हर किसी ने देखा लेकिन कार्रवाई के नाम पर सब पीछे हट जा रहे हैं। पता नहीं किस भार के नीचे हमारे नेतागण दब गए हैं। मुझे तो लगता है, इसके पीछे इन माफियाओं का ही हाथ है, रुपए-पैसों से इनके मुंह को बंद कर दिया गया है। गुंड़े-बदमाशों के इशारों पर ही नेताओं का हरकदम आगे बढ़ता है। तभी तो सच को इतनी बेरहमी से कुचल दिया जाता है।
क्या होगा हमारे देश, हमारे नेताओं और हम सबका। क्योंकि अब बड़े अधिकारी ही सुरक्षित नहीं हैं तो एक आम नागरिक अपने आपको कैसे सुरक्षित समझेगा।
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