Tuesday, February 26, 2013

'सरचार्ज' की कैंची से आम आदमी की काट ली...'जेब'!

कुछ भी हो जाए रेल किराया तो नहीं बढ़ाएंगे...कहा न...एक बार कह दिया सो कह दिया...किराया नहीं बढ़ेगा तो नहीं बढ़ेगा...। इतना सुन आम आदमी मस्त। खुशी से गदगद। बेफिक्र...बेपरवाह...। मंत्री जी ने आश्वासन जो दिए थे...। ममता, त्रिवेदी के पहले लालू जैसे फेंकाफांकी वाले ये मंत्री नहीं हैं...। इनकी बात में दम है...। आम आदमी का अपनी आंख, कान अलग जो हैं...। आम आदमी जो ठहरा...ज्यादा सोचेगा तो आम आदमी का दर्जा नहीं न छिन जाएगा...। इसलिए ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है...टीवी पर मंत्री जी ने जो कुछ कहा शत-प्रतिशत सत्य।

कहीं भी घटना होती है...लोग चीखते-चिल्लाते हैं तो बेचारे मंत्री जी फौरन नींद से उठकर दर्द बांटने सड़क पर आ जाते हैं। दर्द बांटने का सिलसिला जब से रेल मंत्री का कार्यभार संभाला तभी से करते आ रहे हैं...। आज एक बार फिर किया...। बड़ी राहत दी है..। आम आदमी बौखलाया हुआ था, लेकिन उसकी बौखलाहट मंत्री जी ने पूरी तरह से शांत कर दी है...। आखिरकार रेल का किराया नहीं बढ़ा...। इससे बड़ी खुशी की बात भला क्या होगी...। मंत्री जी ने संसद में कहा, ''वैसे तो भारतीय रेल घाटे में है लेकिन बावजूद इसके हम किराया नहीं बढ़ाएंगे...।'' टीवी पर ये बात सुन तालियों की गड़गड़ाहट से सड़कों पर चलने वाला आदमी भी ठहर गया...। नाच-गाना शुरु हो गया...मिठाईयां बटंने लगीं...पटाखे फूटने लगे...। 2 करोड़ जनता रेल से सफर जो करती है...खुशी तो होगी न...। टीवी पर सुना... रेल का किराया नहीं बढ़ेगा...बस इतना सुना...आगे मंत्री जी ने क्या कहा...किसी ने नहीं सुना...।

पड़ोसी अपना धर्म निभाते हुए, एक बार फिर आम आदमी को डिस्टर्ब करता है...। रेल बजट पर पूरा अपडेट जो देना था...। भईया, अब सरचार्ज लगेगा...। आम आदमी ने कहा, क्या ऊल...जलूल बक रहे हो...कोई काम धंधा नहीं है क्या...बड़े आए सरचार्ज लगाने वाले...। तो लगे न...मैं क्या करूं...। मुझे तो बस इतना चाहिए था कि रेल का किराया न बढ़े...। दिन में चार चक्कर ट्रेन से लगाता हूं...। मंत्री जी ने बड़ी मेहरबानी दिखाई है...। आम आदमी का दर्द समझा है...। पड़ोसी से एक बार फिर रहा नहीं गया...। भाई, साब शायद आपको कोई गलतफहमी हो गई है...। किराया तो बहुत बढ़ चुका है...। सरचार्ज रूपी कैंची से इस बार मंत्री जी ने तुम्हारी जेब में सेंध लगा दी है...अब चिल्लाते रहो...गुणगान करते रहो...तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता...। बुड़बक कहीं के, कह रहे हैं रेल का किराया नहीं बढ़ा...अरे साल में दो बार सरचार्ज की कैंची से तुम्हारी जेब काटने का फरमान तुम्हारे मंत्री जी ने ही सुनाई है...बड़े आए मंत्री जी..मंत्री करने वाले...।

आम आदमी फुल टेंशन में...दिमाग की दही हो चुकी थी...कहने सुनने को अब ज्यादा कुछ बचा नहीं था...। सिर के बाल नोचते हुए...। अबे मुझे क्या बुड़बक समझ रखा है...। क्या मैंने टीवी नहीं देखी...। क्या मंत्री जी को मैंने नहीं सुना...। अपने कानों से सुनकर ही मिठाई बांट रहा हूं...किसी के कहने पर विश्वास नहीं करता हूं...। अपना ज्ञान अपने पास ही रखो...। कुल मिलाकर सरचार्ज का ज्ञान पड़ोसी को भारी पड़ गया...। हालांकि मंत्री जी ने अपना काम कर दिया था...। जेब काटने के लिए इस बार ऐसी कैंची इस्तेमाल की, जिसे आम आदमी हो सकता है थोड़ी देर में समझे...लेकिन देर-सबेर समझेगी जरूर...!!!

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